कर्मों का फ़ल

सर्वप्रथम आप सभी प्रिय पाठकों का हमारी वेबसाइट के इस पेज़ मे हार्दिक स्वागत है। आज मैं आपके लिए,एक ऐसी कहानी लेकर आई हूँ। जहाँ पर एक कुंवारी लड़की एक शादीशुदा आदमी से दिल लगा बैठती है। और वह अपनी इस चाहत की ज़िद में आकर एक बसा-बसाया घर उजाड़ देती है। और एक शादीशुदा आदमी जो की तीन बच्चों का पिता होनें के बाद भी किसी दूसरी औरत के चक्कर में आकर अपना बसा-बसाया घर बर्बाद कर देता है। और वहीँ दूसरी तऱफ बच्चों की अपनी माँ तक अपने बच्चों की परवरिश अकेले करने से घबरा जाती है। और, बच्चों को उनके पिता और सौतेली माँ के भरोसे छोड़कर कहीं और अपना ठिकाना ढूंढ लेती है। कहीं न कहीं दोनों माता पिता अपनेअपने स्वार्थ मे इतने अंधे हो जाते है। कि अपने बच्चों की ज़िंदगी बर्बाद कर देतें है। पर वो कहते है, न कि जाको राखे साइयां मार सके न कोए । भले ही उन बच्चों का बचपन दुःखदाई बीता हो पर वो आगे चलकर सफ़ल हो जाते है। पर क्या उन बच्चों के बचपन के साथ छल करनें वाले माता-पिता को, उनके कर्मों का फ़ल मिलता है या नहीं ?? जाननें के लिए पूरी कहानी पढ़िए..

आशा करतीं हूं, कि आपको यह कहानी ज़रूर पसंद आई होगी। आप सभी प्रिय पाठकों के कमेंट्स के इंतज़ार मे लेखिका Nisha Shahi

आप सभी की जानकारी के लिए बता दूँ। कि यह कहानीं और इसके सभी पात्र पूर्णतया काल्पनिक है। तथा इस कहानी का एवं इसके पत्रों का किसी व्यक्ति विशेष या किसी के निजी जीवन से कोई लेना – देना नहीं है। और यह कहानीं स्वयं मेरे द्वारा लिखित है। इसमें मेरे सिवाए अन्य कोई दूसरा भागीदार नहीं है। यह कहानी सिर्फ़ और सिर्फ़ पाठकों के मनोरंजन हेतु प्रस्तुत की गई है।

अपने बेटे की जली-कटी बातें सुनने के बाद, आज पता नहीं क्यों? नीलम बैठे-बैठे अतीत की यादों में खो सी गई वह अपने जीवन के लगभग 35 – 40 साल पहले की दुनियां में अपने अतीत की परछाइयां देख रही थी। कि कैसे रमेश उसका पति उसकी ज़िंदगी में आया और पहले ही मुलाकात में एक दूसरे को दिल दे बैठे थे। वे दोनों पहली बार परिवार की एक शादी समारोह में मिले थे। रमेश की चचेरी बहन जो कि नीलम की सगी भाभी थी। और उसकी भाभी ने ही पहली बार उन दोनों का परिचय करवाया था।

और रमेश ने जब नीलम को पहली बार देखा तो बस देखता ही रह गया। क्योंकि वह गोरी चिट्टी और आकर्षक नैन-नक्श वाली लड़की थी। और उधर रमेश भी एक बहुत ही अच्छी सरकारी कंपनी में अच्छे ओहदे पर था। धीरे-धीरे दोनों में जान-पहचान बढ़ने लगी और दोनों एक दूसरे को पसंद करने लगे क्योंकि नीलम एक ऐसी लड़की थी। जिसे शानो शौकत से जीना बेहद पसंद था और जहां तक उसे पता था। कि रमेश एक अच्छी post पर और काफ़ी अच्छा कमाता है। और मेरा ख़्याल भी बहुत रखता है। और मुझे बेहद प्यार करता है। दोनों में नज़दीकियां बढ़ने लगी। आए दिन दोनों साथ-साथ मिलकर सिनेमा जाते जब भी कभी मौका मिलता तो मिलना जुलना होता ही रहता।

पर एक दिन बातों ही बातों में नीलम को पता चला,कि रमेश पहले से ही शादीशुदा है। वैसे तो नीलम को अब कुछ ख़ास फ़र्क पड़ता नहीं था। पर फ़िर भी उसनें रमेश पर थोड़ा बहुत गुस्सा दिखाया। और रमेश से बोली कि “रमेश तुमनें मुझसे यह बात छुपाई कि तुम पहले से ही शादीशुदा हो? देखो अब हम इतनें आगे बढ़ चुके हैं। कि अब मैं तुम्हें नहीं छोड़ सकती हूं, मैं प्यार करती हूं, तुमसे! अब बताओ मैं क्या करूं? रमेश बोला “मुझे समझने की कोशिश करो नीलम वो मैं डर गया था। कि कहीं तुम्हें इस बात का पता चले कि मैं पहले से ही शादीशुदा हूं। और मेरे तीन बच्चे हैं। कहीं तुम मुझे छोड़ न दो, और कहीं मैं तुम्हें खो ना दूं, , मैं भी तुमसे दूर होकर जी नहीं पाऊंगा। तुम मुझे बस थोड़ा समय और दो मैं सब कुछ ठीक कर दूंगा। और हाँ नीलम तुम मेरी बात का यकीन करो मैं मेरी पत्नी से बिल्कुल भी प्यार नहीं करता हूं। क्या करूं माँ बाबा की ज़िद की वज़ह से जबरजस्ती कीशादी को निभा रहा हूँ। अब माँ बाबा तो रहे नहीं, पर अब मेरे बच्चे हैं। अब उसे अपने बच्चों की ख़ातिर झेल रहा हूं। देखो नीलम तुम मेरा यकीन मानो कि मेरे जीवन में सिर्फ़ तुम ही रहोगी। कुछ दिनों की बात है। फ़िर हम दोनों साथ-साथ रहेंगे”। ऐसा कहकर रमेश ने नीलम का हाथ कसकर पकड़ लिया”। पर नीलम उसका हाथ झटकते हुए बोली “देखो रमेश मैं कुछ नहीं जानती, मुझे तो बस इतना पता है। कि आज समाज की नजरों में विमला ही तुम्हारी पत्नी है। तो फ़िर मेरा क्या मैं कौन हूँ ? कुछ करो रमेश जिससे कि हम दोनों जल्द ही साथ रहने लगे”। रमेश नीलम से बोला “हां बा-बा हां वह दिन बहुत ज़ल्द आएगा। मैं भी जल्द से जल्द उस औरत से छुटकारा चाहता हूं”।

और यह बात बिलकुल सच थी। रमेश अपनी पत्नी विमला से ज़रा भी प्यार नहीं करता था। क्योंकि वह दिखने में साधारण से नैन-नक्श वाली थी। और उसका रंग भी थोड़ा गहरा था। रमेश को लगता था। कि जैसे वहाइस रिश्ते को किसी तरहं मज़बूरी में निभा रहा हो, और वह सोच-सोच कर हैरान होता कि यह रिश्ता मैने 11 साल तक कैसे खींच लिया क्योंकि रमेश की शादी को पूरे 11 साल हो चुके थे। और उसके तीन बच्चे थे। दो बेटा और एक बेटी। और जब से उसकी मुलाकात नीलम से हुई, तो जैसे उसकी दुनियां ही बदल गई हो। वह नीलम के रूप में ऐसे मोहित हुआ कि सब कुछ भूल गया। वह यह भी भूल गया कि वह तीन बच्चों का बाप है।

अब उसे अपनी पत्नी विमला से और चिढ़ होनें लगी। वह आए दिन उससे लड़ाई झगड़ा करता। उसे भली बुरी सुनाता। और उससे कहता कि न जाने तुमसे कब मेरा पीछा छूटेगा? मेरे मां-बाप ने आख़िर तुममें ऐसा क्या देखा कि तुम्हें मेरे पल्ले बांध दिया। काश! तुम मेरी ज़िंदगी में आई ही नहीं होती, तो, मेरी जिंदगी आज कुछ और ही होती। रूप रंग देखा है। अपना, तुम्हें अपने साथ कहीं ले जाते हुए भी मुझे शर्म आती है। बस ऐसे ही लड़ते-झगड़ते लगभग एक साल बीत गया।

रमेश और नीलम की नजदीकियां और बढ़ने लगी। इधर रमेश की पत्नी भी अब रमेश के तानों से तंग आने लगी थी। वैसे तो वह बहुत गुणी थी। लेकिन बस उसमें रंग रूप की कमी थी। उसने रमेश का घर और बच्चों को बहुत अच्छे से संभाला हुआ था। लेकिन अब उसकी सहनशक्ति भी जवाब दे चुकी थी।और वह रोज़-रोज़ के तानों से तंग आ चुकी थी। और तभी इसी बीच उनके ही पड़ोस में रहने वाला एक आदमी महेश जिसकी पत्नी की मृत्यु हो चुकी थी। वह उनके घर के पास किराए के मकान में रहता था। और विमला की हालत को वह भली प्रकार जानने लगा था। धीरे-धीरे रमेश की पहली पत्नी विमला और महेश दोनों में मेल-जोल बढ़ने लगा। महेश ने विमला का रंग रूप न देखकर केवल उसके गुणों को ही देखा।

एक दिन बातों ही बातों में उसनें विमला से कहा कि “कैसे रह सकती हो तुम ऐसे इंसान के साथ, जो हर रोज़ तुम्हारी बेइज्जती करता है। अगर तुम बुरा न मानो तो मैं तुमसे कुछ कहना चाहता हूँ। मैं तुम्हें पसंद करने लगा हूं। क्या तुम मुझसे शादी करोगी। उस वक्त विमला ने उसे कुछ जवाब न दिया और दौड़कर घर वापस आ गई। और मन ही मन सोचने लगी कि हाय मैं यह क्या करने जा रही थी। आख़िर कैसे मैंने एकअज़नबी के सामने अपना दिल खोलकर ऱख दिया। जैसा भी है। मेरा पति है। मेरे बच्चे हैं। आख़िर लड़ाई-झगड़ा किस घर मे नहीं होता। मैं ऐसे कैसे किसी के इतना करीब आ सकती हूँ। उसे आत्मज्ञानी होनें लगी, और फ़िर वह कुछ दिनों तक महेश से नहीं मिली।

एक दिन अचानक जब नीलम की भाभी के कानों तक यहां बात पहुंची, कि, नीलम और रमेश एक दूसरे को पसंद करते हैं। तो वह एकदम से भड़क कर तिलमिला उठी उसने नीलम के भाई यानी अपने पति को सारी बात बताई तब सारा परिवार इकट्ठा हुआ जिसमें नीलम की मां भी शामिल थी। नीलम की भाभी सरला ने बताया कि उसका चचेरा भाई रमेश पहले से ही शादीशुदा है। तब नीलम ने झट से बोली कि, “मुझे कोई फ़र्क नहीं पड़ता” तब सरला भी एकदम तपाक से बोली कि “उसके तीन बच्चे भी हैं ! उनका क्या”? तब जैसे कि नीलम की माँ के पैरों के नीचे से जैसे ज़मीन खसक गई हो! उनकी हालत ऐसी हो गई कि काटो तो खून नहीं, कुछ देर तक कमरे में सन्नाटा पसरा रहा,

फ़िर अचानक से नीलम की मां की आवाज सन्नाटे को चीरती हुई वहां पर उपस्थित सभी लोगो के कानों में पड़ी। वह बोली कि “देख नीलम जो हुआ सो हुआ जाने दे, वह सब एक सपना था। भूल जा अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा तू अपने कदम पीछे कर ले सच्चाई तेरे सामने है। क्यों किसी का घर बिगाड़ने पर तुली हुई है”! तभी नीलम तपाक से बोली कि “ऐसी कोई बात नहीं है। मैं किसी का घर नहीं बिगाड़ रही हूं। बेचारे रमेश जी तो पहले से ही अपनी पत्नी से परेशान है। वह तो उनका ज़रा भी ख़्याल नहीं रखती है। ये शादी उनके माता पिता के ज़िद के कारण हुई थी। वो उस औरत को ज़रा भी पसंद नहीं करते हैं । वो उसको ज़ल्द ही तलाक़ दे देंगे। और हो सकता है। कि वो औरत अपने बच्चों को भी अपने साथ ही ले जाये। माँ मेरी बात समझने की कोशिश करो, अब मे पीछे नहीं हट सकती हूँ, मैंने फ़ैसला कर लिया है। कि मैं रमेश से ही शादी करूंगी”

नीलम की मां और बबूला हो उठी और यह कहते हुए नीलम पर हाथ उठाने ही वाली थी कि, “इस लड़की का मैं क्या करूं यह तो प्यार में अंधी हो चुकी है। इसे अपना भला बुरा कुछ दिखाई नहीं पड़ रहा सारी दुनियां में इसे केवल बस यही एक तीन बच्चों का बाप मिला था”। उस दिन से नीलम की माँ ने जैसे उस पर पहरा लगा दिया हो। उसने अपने बहू बेटे को साफ़ कह दिया कि आज से इसका बाहर आना-जाना किसी से मिलना-जुलना बंद। जल्दी से कहीं अच्छा रिश्ता देखकर हम इसकी शादी कर देंगे”।

कुछ दिनों तक माहौल शांत रहा फ़िर एक दिन नीलम की मां सुबह सोकर उठी। और नहा धोकर मंदिर जाने लगी तब बहू को आवाज देकर कहने लगी, कि “बहू में मंदिर जाकर आती हूं, तो, वहां से आने के बाद ही नाश्ता करुंगी मुझे घर लौटते-लौटते थोड़ा वक्त लग जाएगा। तो तुम लोग खा लेना। और हां नीलम से को कह देना कि मैंने बाथरूम में कुछ चादरे और पर्दे भिगोकर रखें उन्हें धोकर सुखा देगी” ऐसा कहकर वह मंदिर की ओर चली गई। थोड़ी देर बाद जब नीलम की माँ मंदिर से आई तो नीलम की भाभी सरला दौड़कर अपनी सास के पास पहुंची। और हांफते हुए बोली “माँ नीलम अपने कमरे में नहीं है”। माँ बोली क्या मतलब कमरे में नहीं है। होगी नहीं कहीं” सरला बोली “नहीं मैंने पूरा घर पड़ोस छान मारा कहीं भी नहीं है”। पूरा दिन निकल गया पर नीलम का कोई पता न लगा आख़िर वही हुआ जिसका सभी को डर था। अगले दिन पता चला कि नीलम और रमेश ने घर से भाग कर मंदिर में शादी कर ली है।

और जब नीलम और रमेश कीशादी की बात रमेश की पहली पत्नी विमला के कानो में पड़ी, पहले तो उसे को ज़ोर का धक्का लगा। उसकी कुछ समझ में नहीं आ रहा था, किआख़िर ये सब हो की रहा है। विमला आज पहली बार रमेश से अपने सवालों के जवाब मांगते हुए बोली “बताइए ऐसी क्या गलती थी, मेरी ? कि तुमने इतना बड़ा फैसला ले लिया। चलो मेरी छोड़ो एक बार अपने बच्चों का तो ख़्याल किया होता”, कि उन्हें माँ-बाप दोनों का प्यार चाहिए।

विमला ने रमेश को खूब खरी-खोटी सुनाई दोनों में खूब झगड़ा हुआ। लेकिन रमेश को अब कुछ फर्क नहीं पड़ता था। वह ढ़ीट खड़ा रहा जैसे उसने कोई गलती ही ना कि हो और उल्टा विमला से कहने लगा। कि “अगर तुहारी बकवास पूरी हो गई हो, तो अब मेरी सुनो , तुम रहो इस घर में अपने बच्चों के साथ। मैं नीलम साथ किराए के मकान में रह लूंगा।
तुम्हारे बच्चों का और तुम्हारा हर महीने का खर्चा दे दूंगा यही तो चाहिए ना तुम्हें?


कुछ देर शांत रहने के बाद न जाने विमला के अंदर कौन सी शक्ति समा गई। और वह जोर से चिल्ला कर बोली “नहीं चाहिए तुम्हारा कोई खर्चा पानी, अगर तुम किसी और को चाहते हो, तो मुझे भी चाहने वाला है, कोई!
और हाँ , एक बात कान खोल कर सुन लो, यह सिर्फ़ मेरे बच्चे नहीं है तुम्हारे भी हैं। और इस घर पर और तुम्हारी कमाई पर सिर्फ़ और सिर्फ़ इन बच्चों का अधिकार है। मैं इन्हें अपने साथ नहीं ले जाऊंगी रखो तुम तुम्हारे बच्चे तुम्हारे पास”।

और फ़िर रोकर अपने आंसू पोंछती हुई, वह सीधा दौड़कर महेश के पास गई। और बोली। कि “महेश अब तो हद हो गई पानी सर के ऊपर से निकल चुका है। रमेश ने दूसरी शादी कर ली है। मुझे तुमसे अच्छा जीवन साथी नहीं मिल सकता। क्या तुम अभी भी मुझसे शादी करोगे? रमेश ने मुस्कुरा कर आंखों ही आंखों में हांमी भर दी, साथ ही नीलम से एक बात साफ़ करते हुए महेश नीलम से बोला कि “लेकिन विमला मेरी एक शर्त है। मैं तुम्हारे तीन बच्चों को नहीं पाल सकता मेरी इतनी औकात नहीं है। हाँ अगर बाद मे मेरा काम अच्छा चलने लगे तो बच्चे हमारे पास रहे सकते है।

अब विमला के पास कोई चारा नहीं था। क्योंकि विमला रमेश से बहुत दुःखी हो चुकी थी। और वह यह भी जानती थी, कि वह अकेले बच्चों की ज़िम्मेदारी नहीं उठा सकती उसने देरतक सोचने के बाद फ़ैसला लिया कि रमेश की इअच्छी-ख़ासी नौकरी है। मोटी कमाई है।और फ़िर कोई और औरत आकर क्यों खाए, रमेश की कमाई पर केवल उसके बच्चों का अधिकार है। मेरे अकेले के बच्चे थोड़े ही न है, वैसे भीरमेश के साथ तो मेरा जीवन नर्क के समान है, और मैं अपने बच्चों को पढ़ाने के लिए समर्थ भी नहीं हूं। वो ही करें अपने बच्चों का लालन-पालनआखिर विमला ने भी बच्चों को छोड़कर महेश को ही चुना। और महेश के साथ जाने का फैसला कर लिया।

“विमला महेश से बोली तुम बच्चों की चिंता मत करो उनका बाप है न उन्हें पालने के लिए, और महेश तुम बस मेरे लिए इतना कर दो कि आज के आज ही कही और कमरा ढूंढ लो में यहाँ रहकर बच्चों का सामना नहीं कर पाऊँगी। अभी बच्चे स्कूल में है। उनके आने से पहले ही मैं अपना कुछ सामान ले आती हूँ। फ़िर हम यहाँ से कहीं दूर चले जायँगे”।

विमला आँसू पौंछते हुए रमेश के घर पहुँची। आनन् -फानन में जल्दी से अपना बैग पैक करके जैसे ही बाहर जाने लगी दीवारों पर लगी बच्चों की तस्वीररों को निहारने लगी। जाते-जाते रमेश से एक बात साफ़ करके कह गई। कि “रमेश यह जो हमारा बसा बसाया घर बिख़रा है, न! इसके ज़िम्मेदार सिर्फ़ तुम हो! मैं तो तुम्हारे तानों और तुम्हारी नफरतों के साथ भी अपने बच्चों के साथ ख़ुश थी। ये घर देख रहे हो न इसका हर एक कोना मेरा सजाया हुआ है। पर आज तुमनें मुझे इस घर से क़दम बाहर निकालने पर मज़बूर कर दिया है। लेकिन तुमनें तो आज दूसरी शादी करके यह साबित कर दिया, कि तुम्हारी ज़िंदगी में मेरी रत्ती भर भी अहमियत नहीं है। और हां मैं तो तुम्हें यह बद्दुआ भी नहीं दे सकती कि तुम कभी ख़ुश न रहो क्योंकि अपने बच्चे जो छोड़े जा रहीं हूं, तुम्हारे पास, लाओ कहां है ,तलाक़ के काग़ज़ ? वह भी दे ही दो, लगे हाथ यह आख़िरी रही सही कसर भी पूरी कर लेते हैं। वैसे तलाक़ के काग़ज़ तो तुमनें पहले से ही तैयार रखे होंगे, न! बहुत जल्दी जो है! तुम्हें मुझसे छुटकारा पाने की”, इतने मे, रमेश विमला की बात अधूरी सुन झट से भीतर जाकर तलाक़ के काग़ज़ ले आया। विमला नें उन काग़जों पर साइन किए और फ़िर अपना सामान उठा कर चली गई। फ़िर कभी न आने के लिए।

विमला के जाते ही रमेश ने चैन की सांस ली उसे ऐसा लग रहा था। कि मानो सालो से चुभा काँटा जैसे निकल गया हो, वो नीलम की यादों में खो गया। अचानक से दरवाज़े की घंटी ने उसे चौंका दिया। उसने जैसे ही दरवाज़ा खोला सामने देखा तो उसके तीन बच्चे खड़े थे। वह सन्न रह गया। कि अगर बच्चों ने अपनी माँ के बारे में पूछ लिया तो अब वह उनको की ज़वाब देगा। तभी रमेश की बेटी नैना बोली पापा आज आप ऑफिस नहीं गए?

फ़िर अचानक से रमेश का छोटा बेटा गुड्डू बोला अरे बुद्धू पापा, मम्मी को स्टेशन छोड़ने गए होंगे। रमेश चौंक कर बोला, तुम्हे कैसे पता ? रमेश अपनी बात पूरी करता इससे पहले ही उसका बड़ा बेटा वैभव बोल पड़ा “वो पापा मम्मी लंच टाइम में स्कूल आई थी। और उन्होंने कहा कि उनकी एक ख़ास सहेली बहुत बीमार है, तो वो उनसे मिलने के लिए कुछ दिनों के लिए उनके पास जा रही हैं”। आज पहली बार रमेश को विमला की कोई बात पसंद आई। अब रमेश सोचने लगा की आधी कहानी तो विमला ने बना दी, क्यों न आधी कहानी मे बना लूं ? ताकि नीलम को आराम से शांति पूर्वक घर मे ला सकूं।

उसने बच्चों से कहा कि, देखो बच्चों तुम्हारी मम्मी का वहाँ जाना ज़रूरी था। पर तुम्हे तो पता ही है। कि मैं ऑफिस और घर एक साथ नहीं संभाल सकता। इसलिए अभी थोड़ी देर बाद यहाँ पर एकऑन्टी आयेंगी। जो तुम्हारा ख़्याल रखेंगीं। बच्चे ओके पापा कहकर अपने कमरे में चले गए।शाम होनें वाली थी। रमेश ने बच्चों से कहा कि बच्चो “मैंने कहा था, न कि आज एक ऑन्टी आएँगीतो मैं उन्हें ही लेने जा रहा हूँ। जब तक मैं न आऊं तुम लोग अपना ख़्याल ऱखना”। बच्चों से ऐसा कहकर रमेशनीलम को लेने के लिए होटल चला गया। जहाँ उसने नीलम को ठहराया हुआ था।

और फ़िर शाम को रमेश नीलम को घर ले आया। जब नीलम रमेश के घर पहुंची तो वहां उसने जैसे ही घर में क़दम रखा तो उसका सामना रमेश के तीन बच्चो से हुआ। बच्चे उसे दरवाज़े के पीछे से झांककर देख़ रहे थे। उन बच्चों को देखते ही उसका माथा ठनक गया। उसने तो सोचा था, कि बच्चे भी अपनी मां के साथ निकल लिए होंगे। और फ़िर वह गुस्से में तिलमिलाकर बच्चों की तरफ़ इशारा करते हुए, रमेश पर भड़कते हुए बोली, कि “यह सब क्या है”?

रमेश बोला “यह मेरे बच्चे हैं। और आज से तुम्हारे भी” यह सुनकर जैसे नीलम की सारी ख़ुशी एकदम से जैसे छूमंतर हो गई हो , उसने आव देखा न ताव और दनदनाती हुई रमेश का हाथ पकड़कर उसे खींचते हुए अंदर, दूसरे कमरे मे ले गई। और रमेश पर गुस्सा करते हुए बोली “मैंने तुम्हें चुना है, तुम्हारे बच्चों को नहीं। देखो रमेश एक बात कान खोलकर सुन लो इस घर मे या तो ये बच्चें रहेंगे, या फिर मैं”

रमेश कुछ देर मौन रहा और नीलम को मानते हुए कहने लगा कि “मेरी मज़बूरी को समझो ज़रा इनकी तरफ देखो, इनकी मां इन्हें छोड़कर चली गई। अगर अब मैं इन्हें कहां छोड़कर आऊं। ये बच्चे हैं, मेरे”! नीलम बोली “मैं कुछ नहीं जानती” कुछ देर बाद रमेश बोला चलो “अच्छा गुस्सा मत हो, मैं देखता हूं कुछ करता हूं। घर से दो गली छोड़कर ही रमेश के बड़े भैया का घर था। वो रमेश की तरहं बहुत पैसे वाले तो नहीं थे पर हाँ रमेश अक्सर उनकी पैसो से मदद किया करता था। उसने सोचा की क्यों न कुछ दिनों के लिए बच्चों को भैया के घर में छोड़ आऊं। बाद में मामला शांत होने के बाद नीलम को मनाकर इन्हें वापस घर ले आऊंगा। रमेश ने अपने भैया से बात करके बच्चों को उनके घर पहुँचा दिया।

रमेश नीलम के प्यार में इतना अंधा हो चुका था। कि उसे अपने बच्चों से दूर होने का कुछ मलाल न था। दिन बीतते गए 15 दिन होने को आए एक दिन अचानक रमेश के बड़े भैया तीनों बच्चों को स्कूटर में बिठाकर रमेश के घर पहुंचे जहां पर रमेश और नीलम कहीं बाहर जाने के लिए तैयार हो रहे थे। नीलम ने जैसे ही बच्चों को देखा उसका माथा ठनक गया। और कमरे में जाकर दरवाजा बंद कर लिया। रमेश ने जैसे तैसे भैया यानी को पानी पिलाया और कहने लगा “भैया मैं तो भाभी को कह कर आया था। कि बच्चों को 1 महीने के लिए रख लेना पर अभी तो 15 ही दिन हुए हैं”। ऐसा बोलकर रमेश की नज़रें झुकती चली गई,

तब रमेश के बड़े भैया तपाक से बोले “देख रमेश माना कि मुझ पर तेरे बहुत एहसान हैं। और में यह भी अच्छी तरहं जनता हूँ , कि जब-जब मैंने तुझसे मदद माँगी तब-तब तूने मेरा पूरा साथ दिया,पर ये तू भी जनता है, और मै भी कि मेरी हर ज़रूरत ज़ायज़ थी, और आज तेरी ज़रूरत.. अब आगे मै क्या ही बोलूं तू ख़ुद ही समझदार है, देख मै यहाँ तेरा साथ नहीं दे सकता। यह तेरे बच्चे हैं, तेरी जिम्मेदारी है,और तू कहीं ना कहीं इनका भविष्य बर्बाद कर रहा है। रखने को तो मैं इन्हें आजीवन रख़ लूँ , पर उनकी पढ़ाई लिखाई रखर-खाव कल कोई ऊंच-नीच हो गई तो मै समाज को क्या मुँह दिखाऊंगा बस अब इसके आगे मैं कुछ नहीं जानता तेरे बच्चे हैं, आगे तू जान” ऐसा बोलकर रमेश के बड़े भैया बच्चों को छोड़कर अपने घर चले गए।

बेचारे बच्चे पहले से ही सहमे हुए थे। उनकी समझ मे कुछ नहीं आ रहा था। कि आख़िर ये सब चल क्या रहा है? जैसा कि सबको पता है, कि बेटियां पिता की लाडली होती है। रमेश की एक बेटी थी, नैना वह पापा से जा लिपटी पर रमेश ने उसे भी झटक दिया, और एक कमरे में तीनों को बैठा कर बोला तुम तीनों यहीं पर रहना दूसरे कमरे में मत आना तुम्हारा खाना पीना सब यहीं पर आ जाएगा। बस फ़िर क्या था, दिन, हफ़ते, महीने साल गुज़रते गए। उन तीनों बच्चों का जीवन इस एक कमरे ही बितने लगा। बच्चे बीच-बीच मे अपनी माँ के बारे मे पूछते तो ज़वाब मिलता मर गई तुहार माँ।

सौतेली मां नीलम खाना बनाती और पति के हाथ कमरे में रखवा देता। और जब रमेश घर पर नहीं होता तो कमरे के बाहर से ही खाना सरका देती। वो उन बच्चों से सीधे मुंह तक बात नहीं करती वो तो उन्हें देखना तक गंवारा नहीं समझती थी। क्योंकि नीलम के मन में इस बात का गुस्सा भरा पड़ा था। कि इन बच्चों की माँ अपने आप तो फ्री होकर तो चली गई, और मेरे भरोसे अपने इन बच्चों को छोड़ गई। कुछ दिनों तक तो काम वाली बाई बच्चों का थोड़ा ख़्याल रखती। पर बाद में नीलम ने उसे भी से निकाल दिया। क्योंकि नीलम को शक हो गया था, कि काम वाली उसके घर की बातें बाहर फ़ैलाती है।

बस इसी तरहं कई साल बीत गए आये दिन रमेश की तरक्की होती गई घर में पैसों की कोई कमी नहीं थी। अब तो नीलम ने पुराना माकन बेचकर पास के ही गाँव में एक बहुत बड़ा मकान बना लिया था। नीलम का जीवन काफ़ी ऐसो आराम के साथ बीत रहा था। अब तो नीलम की माँ का भी उसके घर आना-जाना हो गया था। नीलम की ज़िंदगी में सब कुछ ठीक चल रहा था। पर उसकी ख़ुद की गोद अब तक सुनी थी। कई सालों बाद भी कोई बच्चा नहीं हुआ था। उसे, पर वह अपने भाई के बच्चों पर खूब प्यार व पैसा लुटाती थी। अब तो नीलम के भाई-भाभी भी कई-कई दिन पड़े रहते नीलम के घर।

पर वहीं, दूसरी तरफ़ रमेश के तीनों बच्चे तंगी की ज़िंदगी गुजरने को मज़बूर थे। नीलम उन बच्चों को ज़रूरत के हिसाब सेआधी ही चीज़ें दिया करती थी। उसके बावज़ूद भी तीनों बच्चे पढ़ने में बहुत होशियार थे। और अब काफ़ी बड़े और समझदार हो गए थे। कुछ दिनों बाद नीलम को पता की वह माँ बननें वाली हैं। तब उसकी ख़ुशी का कोई ठिकाना ही नहीं था। रमेश नीलम का खूब ख्याल रखता। नीलम की देख-रेख के लिए उसकी माँ कुछ महीनों के लिए नीलम के पास आ गई। जो माँ नीलम की पसंद यानि रमेश के ख़िलाफ़ थी। आज उसी को सर आँखों पर बिठाए हुए थी।

और इधर रमेश की बेटी नैना अब काफ़ी बड़ी हो गई थी। और उसनें इसी साल बारहवीं की परीक्षा पास की थी। उसे और आगे पढ़ने का मन था। पर नीलम के कहने पर रमेश ने साफ़ इंकार कर दिया। अब वह घर के काम में हाथ बटानें लगी थी। वह सारा दिन घर का काम करती। और फिर सीधा अपने कमरें में चली जाती। ऊपर से नीलम की खरी खोटी भी सुनती। नीलम हमेशा उसके काम में नुक़्स निकालती रहती। फ़िर कुछ महीनों बाद नीलम को एक बेटा हुआ। अब तो नीलम की ख़ुशी का कोई ठिकाना ही नहीं था। उसने बड़ी धूमधाम से उसका नामकरण किया और उसका नाम पवन रखा गया। वह अपने बेटे को खूब लाड़ -दुलार करती और जितना हो सके उन बच्चों से दूर रखती। पर वे तीनों बच्चे अपने छोटे भाई से बहुत प्यार करते थे। जब भी मौका मिलता वे उसे बड़े प्यार से दुलारते

नीलम का बेटा थोड़ा बड़ा हुआ तो उसकी एक बेटी भी हुई। पर अफ़सोस कुछ ही महीनो में गुजर गई। अब तो नीलम अपने बेटे का खूब ख़्याल रखती। रमेश की पहली पत्नी से तीनों बच्चे पढ़ने में काफ़ी होशियार थे। बड़े बेटे नें मेहनत से एक अच्छी सरकारी नौकरी पा ली। और वह एक लड़की को पसंद भी करने लगा था। और उसने रमेश से आग्रह किया कि “पापा मैं एक लड़की को पसंद करता हूं। आप छोटी मां को लेकर जाइए न शादी की बात कीजिए उसके घर वालों से”।

पर नीलम ने साफ़ मना कर दिया। और अपने पति को भी नहीं जाने दिया क्योंकि घर में नीलम की ही चलती थी। जैसे तैसे शादी हो ही गई। वह अपनी पत्नी और बहन को लेकर सरकारी मकान में चला गया। छोटे बेटे की भी बैंक में नौकरी लग गई। और पोस्टिंग दूसरे शहर में हो गई थी। अब वह भी घर छोड़ कर जा चुका था। अब नीलम बहुत ख़ुश थी। कि घर खाली हो गया। अब पूरा का पूरा घर मेरा है। समय बीतता गया। और नीलम को पता ही न चला की उसने अपने इकलौते बेटे को पैसे ही पैसों में पाल कर इतना बिगाड़ दिया कि वह नशा करने लगा इतने बड़े स्कूल में पढ़ने के बावजूद भी वह किसी काबिल न बन पाया।

वक्त गुज़रता गया। रमेश की उम्र हो चली थी। और अब उसकी नौकरी का कार्यकाल भी समाप्त हो चुका था। और अब रमेश रिटायर हो गया। अब उसे पेंशन मिलने लगी। पहले तो मोटी कमाई आया करती थी। पर अब बंधी बंधाई पेंशन पर निर्भर रहना पड़ता था। अब नीलम ने अपने पति के रिटायरमेंट के सारे पैसे अपने बेटे पवन के बिजनेस में लगा दिए। और उसने उसे एक इलेक्ट्रॉनिक की दुकान खोल कर दी। पर उससे वह भी न संभाली गई। फ़िर उसने उसे किसी पहचान वालों की मदद से काम के लिए बड़े शहर भेजा। वहां पर उसकी एक प्राइवेट कंपनी में जॉब लग गई। पर वह शराब का आदी हो चुका था। की कंही भी टिक कर काम कर पाना मुश्किल था।

नीलम ने सोचा कि शायद शादी करके यह कुछ सुधर जाएगा। पर कहां? यह सब तो उसका भ्रम था। वह शादी के बच्चा होने के बाद भी नहीं सुधरा। और उधर दूसरी तरफ़ अब रमेश बीमार रहने लगा। और उसनें खाट पकड़ ली थी। नीलम ने बेटे बहु से बात करी और कहा कि “तुम्हारे पापा की सेहत में कुछ सुधार नहीं हो रहा है। शायद शहर में अच्छा इलाज हो जाएगा। हम भी तुम्हारे पास शहर आ जाते हैं”। और फ़िर नीलम रमेश को लेकर बेटे के पास कुछ दिनों के लिए शहर चली गई।

अब नीलम बेटे के पास आकर काफ़ी ख़ुश थी। कुछ दिनों तक तो सब ठीक रहा पर कुछ ही दिनों बाद पवन अपनी माँ नीलम से बोला “माँ ज़रा पांच हज़ार तो देना मकान का किराया देना है। वैसे तो किराया दस हज़ार है। पांच हैं, मेरे पास”। नीलम ने झट से पांच हज़ार पवन को दे दिए। फ़िर एक दिन मौका देखकर पवन अपनी माँ से बोला “माँ तुम्हे शहर कैसा लगता है”? नीलम बोली बहुत अच्छा लगता है, और क्यों न लगे सारी सुविधाएँ जो है यहाँ पर? अस्पताल स्कूल कॉलेज आख़िर क्या नहीं है यहाँ”?

पवन झट से बोला “तो, क्यों न माँ हम यहीं पर अपना एक फ्लैट ले ले”, नीलम बोली “बेटा चाहती तो मैं भी यही हूँ। पर मैंने सुना है। कि यहाँ पर मकान की क़ीमत आसमान छू रही है। तू इतननी बड़ी रकम लाएगा कहाँ से”? पवन बोला “माँ मेरे पास एक सुझाव है। देखो मेरी बातों पर ग़ौर करना देखो माँ मेरी नौकरी और बच्चों का स्कूल यहीं पर है. पापा भी बीमार रहते है। और गाँव जाना तो अब सम्भव नहीं है। क्यों न हम गाँव वाला घर बेच कर यहाँ एक अच्छा सा ख़ुद का फ़्लेट लें ले कुछ देर बाद सोचने के बाद नीलम ने हामी भर दी। और पवन ने अपने नाम से तीन कमरों का एक फ़्लेट ले लिया। और बाकि के रुपये घूमने फ़िरने और मौज-मस्ती में उड़ा दिए।

फिर कुछ दिनों बाद पता चला की पवन ने नौकरी छोड़ दी क्योंकि उसे पता था। कि पिताजी की अच्छी खासी पेंशन है। गुज़ारा तो हो ही जाएगा। वह नीलम से सारे पैसे ले लेता। और आए दिन उसे खरी खोटी सुनाता। उसने उन्हें एक छोटा सा कमरा दिया हुआ था। और कहता तुम लोग यही रहना कुछ ज़रूरत हो तो आवाज़ दे देना। बच्चे खाना दे जाएंगे।

जैसा कि नीलम शुरू से ही तेज़ स्वभाव की थी। उसने बहू साधना को आवाज़ लगाई। नीलम की बहू का नाम साधना था। ” साधना ओ साधना यह पवन क्या कह रहा है। दिमाग़ तो ठीक है न इसका ? हम क्या भिखारी हैं? जो हमें ऐसे अलग-थलग कर रहा है”? तभी पवन अपनी माँ को आँखे दिखाता हुआ तपाक से बोला “आप यह बात कह रही हैं ? मैं तो वही कर रहा हूं। जो आपने और पापा ने आज से लगभग 35 साल पहले किया था! इसमें क्या नई बात है ? ऐसा कहकर वह बाहर चला गया। और बहू अपने कमरे में चली गई। और पोता पोती स्कूल पढ़ने चले गए तब नीलम के सामने 40 साल पहले की पूरी पिक्चर आ गई। वह मन ही मन सोचने पर मज़बूर हो गई ,कि यह मैंने क्या किया कि जिस बेटे को इतना लाड प्यार दिया, आज वही मुझे बेइज्जत कर रहा है ? शायद यह कहीं ना कहीं मेरे ही कर्मों का फल है। यदि मैं उस वक्त उन बच्चों को गले से लगा लेती तो आज मेरा जीवन कुछ और ही होता।

नीलम इसी गहरी सोच में थी। कि उसने अचानक से एक चीख़ सुनी और वह चीख थी। बगल में दीवान पर लेटे उसके बीमार पति रमेश की, जैसे उसकी आंखें बाहर की और आ गई हो क्योंकि रमेश पिछले 5-7 सालों से बिस्तर पर ही था। और इन 5 सालों में उसने जैसे नरक भोगा हो! अचानक से चारों ओर शांति सी छा गई और रमेश ने हाथ पैर ढीले छोड़ दिए और उसकी धड़कने बंद हो गई नीलम ने उसे काफ़ी हिलाया – डुलाया पर अब रमेश प्राण त्याग चुका था। नीलम घबरा गई थी। वह चिल्लाई बहू बेटे को बुलाया और रमेश का अंतिम संस्कार कर उसे विदा किया अब नीलम चुप चुप रहने लगी पति की पेंशन भी आधी मिलने लगी. अब नीलम के पास अपनी किस्मत को कोसने के अलावा कोई चारा नहीं बचा था।

कहानी अभी बाकि है..

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