मंत्र, चालीसा एवं आरती संग्रह

मंत्र, चालीसा एवं आरती संग्रह

मंत्र, चालीसा एवं आरती का महत्त्व

जैसा कि हम सभी जानते हैं कि हमारे सनातन धर्म मे मंत्र चालीसा और आरती तीनों ही बहुत महत्त्वपूर्ण हैं। इन सभी का ईश्वरीय आराधना भक्ति में विशेष योदान है। मंत्रो का जाप करना। चलिसा का पाठ और आरती करने से भक्तों पर ईश्वर की असीम कृपा बरसती है।

मंत्र:

मंत्र संस्कृत भाषा मे शब्द या वाक्यांश होते हैं। जिनका जाप करने से सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। और नियमित रूप से मन्त्रों का जाप करने से मन शांत तथा अपने आराध्य देव के प्रतिचित्त एकाग्र होता है। और मनुष्य को दिव्यता का आभाष होता है।

चालीसा:

चालीसा में चालीस चौपाइयाँ होती हैं। जिसके द्वारा किसी विशेष देवता का की महिमा का गुणगान होता है। चालिसा का पाठ करने से भक्त को अपने आराध्य देव की कृपा प्राप्त होती हैं। और भक्त क्र जीवन में सकारात्मक बदलाव आते है।

आरती :

सनातन धर्म में आरती का विशेष महत्त्व है। सनातन धर्म के तैंतीस करोड़ देवी देवताओं की आरती का व्याख्यान है। किसी भी देवी – देवता के व्रत एवं पूजा की सम्पन्नता के बाद आरती करना अति आवश्य्क है। जिसमे अपने आराध्य देवता के सम्मुख घी का दीपक एवं कपूर और कई अन्य सुगन्धित वस्तुओं को मिलाकर एक हवंन सामग्री तैयार कर उसे जलाकर, देवी देवताओं की आरती कर उन्हें प्रसन्न किया जाता है।

श्री गणेश जी चालीसा, मंत्र एवं आरती

श्री गणेश जी चालीसा, मंत्र एवं आरती

सभी प्रिय पाठकों का@aaghaz_e_nisha website में हार्दिक स्वागत है। सनातन धर्म के अनुसार प्रथम पूज्य गणेश जी की पूजा आराधना करने से व्यक्ति के जीवन में आ रही समस्त परेशानी एवं सभी विघ्न दूर होतें हैं। तथा व्यक्ति को सुख विभव एवं सफलता की प्राप्ति होती है। गजानन की भक्ति प्रतिदिन करनी चाहिए। पर पौराणिक कथाओं के अनुसार गणपति गजानन जी को बुधवार का दिन अति प्रिय है। कहा जाता है कि बुधवार के दिन यदि गणेश जी को दूर्वा चढ़ाई जाए जो कि उन्हें अत्यंत प्रिय है। गणपति उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं। तथा किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत से गणेश जी के पूजन से किया जा जाता है। कहते हैं,कि गणेश जी सारे विघ्न हरते हैं। इसलिए उन्हें विघ्नहर्ता भी कहा जाता है! ऐसे ही उनके 108 नाम और मंत्र हैं जिनका जाप करने से भक्तजनों को कई पाप संकटों से छुटकारा मिलता है। यदि आप भी गणपति जी के भक्त हैं। एवं गणपति जी की पूजा आराधना करके उनकी आरती तथा उनके मंत्र जाप एवं चालीसा पढ़कर आप भी अपना जीवन संवारना चाहते हैं। तो आप सही जगह आए हैं।
यहां पर आपको गणपति जी के 108 नाम, उनके बीज मंत्र, गणपति चालीसा एवं गणपति जी की आरती
उपलब्ध है।
हमें सेवा का अवसर प्रदान करने के लिए आपका शहर दिल से धन्यवाद…
।।जय श्री राधे राधे।।

श्री गणेश के महामंत्र एवं बीज मंत्र

वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ।
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥

गणेश जी का यह महामंत्र गणेश जी को अति प्रिय है। जो सबसे अधिक लोकप्रिय एवं सुप्रसिद्ध एवं अत्यंत पवित्र है। इस मंत्र का अर्थ है – कि जिनकी सुंड घुमावदार है, और जिनका शरीर विशाल है, जो करोड़ सूर्यों के समान तेजस्वी हैं, वही भगवान मेरे सभी काम बिना बाधा के पूरे करने की कृपा करें।

ओम गं गणपतये नमः

सनातन धर्म के अनुसार ओम गं गणपतये नमः का यह बीज मंत्र
भगवान श्री गणेश जी का बेहद प्रभावशाली बीज मंत्र है, इस मंत्र का जाप कर आप अपनी सभी कामनाओं को पूर्ण कर सकते हैं। बीज मंत्र से मिलकर बने मंत्र ‘ओम गं गणपतये नमः’ का जप करने से सभी कामनाओं की पूर्ति होती है।साथ ही आर्थिक प्रगति, धन, वैभव तथा अपार सुख की प्राप्ति होती है…

श्री गणेश चालीसा

गणेश चालीसा का पाठ करने से लाभ

गणेश चालीसा का पाठ करने से बुद्धि और ज्ञान में वृद्धि होती है।


गणेश चालीसा का पाठ करने से सुख और समृद्धि में वृद्धि होती है।


गणेश चालीसा का पाठ
करने से विघ्न और बाधाएं दूर होती हैं।

॥ दोहा ॥

जय गणपति सद‌गुण सदन,
कविवर बदन कृपाल ।
विघ्न हरण मंगल करण, जय जय गिरिजालाल ।।

॥चौपाई ॥


जय जय जय गणपति गणराजू ।
मंगल भरण करण शुभः काजू
।।

जै गजबदन सदन सुखदाता ।
विश्व विनायका बुद्धि विधाता ।।

वक्र तुण्ड शुची शुण्ड सुहावना ।
तिलक त्रिपुण्ड भाल मन भावन ।।

राजत मणि मुक्तन उर माला ।
स्वर्ण मुकुट शिर नयन विशाला ।।

पुस्तक पाणि कुठार त्रिशूलं ।
मोदक भोग सुगन्धित फूलं ।।

सुन्दर पीताम्बर तन साजित ।
चरण पादुका मुनि मन राजित ।।

धनि शिव सुवन षडानन भ्राता ।
गौरी लालन विश्व-विख्याता ।।

ऋद्धिसिद्धि तव चंवर सुधारे ।
मुषक वाहन सोहत द्वारे ।।

कही जन्म शुभ कथा तुम्हारी ।
अति शुची पावन मंगलकारी ।।


एक समय गिरिराज कुमारी ।
पुत्र हेतु तप कीन्हा भारी ।।

भयो यज्ञ जब पूर्ण अनुपा।
तब पहुंच्यो तुम धरी द्विज रूपा ।।

अतिथि जानी के गौरी सुखरी ।
बहुविधि सेवा करी तुम्हारी ।।

अति प्रसन्न हवे तुम वर दीन्हा ।
मातु पुत्र हित जो तप कीन्हा ।।

मिलहि पुत्र तुहि, बुद्धि विशाला ।
बिना गर्भ धारण यहि काला ।।

गणनायक गुण ज्ञान निधाना ।
पूजित प्रथम रूप भगवाना ।।

अस कही अन्तर्धान रूप हवे ।
पालना पर बालक स्क्रूरूप हवे ।।

बनि शिशु रुदन जबहि तुम ठाना ।
लखि मुख सुख नहि गौरी समाना ।।

सकल मगन, सुखमंगल गावहि ।
नाभ ते सुरन, सुमन वर्षावहि ।।

शम्भु, उमा, बहुदान लुटावहि ।
सुर मुनिजन, सुत देखन आवहि ।।

लखि अति आनन्द मंगल साजा ।
देखन भी आये शनि राजा ।।

निज अवगुण गुनि शनि मन माहीं ।
बालक, देखन चाहत नाहीं ।।

गिरिजा कछु मन भेद बढायो ।
उत्सव मोर, न शनि तुही भायो ।।

कहत लगे शनि, मन सकुचाई ।
का करिहो, शिशु मोहि दिखाई ।।

नहि विश्वास, उमा उर भयऊ ।
शनि सों बालक देखन कहयऊ ।।

पदतहि शनि हग कोण प्रकाशा ।
बालक सिर उड़ि गयो अकाशा ।।

गिरिजा गिरी विकल हवे धरणी ।
सो दुःख दशा गयो नहीं वरणी ।।

हाहाकार मच्यो कैलाशा ।
शनि कीन्हों लखि सुत को नाशा ।।

रत गरुड़ चढ़ि विष्णु सिधायो ।
काटी चक्र सो गज सिर लाये ।।

बालक के धड़ ऊपर धारयो ।
प्राण मन्त्र पढ़ि शंकर डारयो ।।

नाम गणेश शम्भु तव कीन्हे ।
प्रथम पूज्य बुद्धि निधि, वर दीन्हे ।।

बुन्द्रि परीक्षा जब शिव कीन्हा ।
पृथ्वी कर प्रदक्षिणा लीन्हा ।।

चले षडानन, भरमि भुलाई ।
रचे बैठ तुम बुद्धि उपाई ।।

चरण मातु-पितु के धर लीन्हें ।
तिनके सात प्रद‌क्षिण कीन्हें ।।

धनि गणेश कही शिव हिये हरपे नभ ते।
सुरन सुमन बहु बरसे ।।

तुम्हरी महिमा बुद्धि बड़ाई ।
शेष सहसमुख सके न गाई।।

मै मतिहीन मलीन दुखारी ।
करहूं कौन विधि विनय तुम्हारी ।।

भजत रामसुन्दर प्रभुदासा ।
जग प्रयाग, ककरा, दुर्वासा ।।

अब प्रभु दया दीना पर कीजे ।
अपनी शक्ति भक्ति कुछ दीजे ।।

॥ दोहा ॥

श्री गणेशा यह चालीसा,
पाठ करे कर ध्यान ।

नित नव मंगल गृह बसे,
लहे जगत सन्मान ।।

सम्बंध अपने सहस्त्र दश,
ऋषि पंचमी दिनेश ।

पूरण चालीसा भयो,
मंगल मूर्ती गणेश ।।

गणेश जी की आरती (जय गणेश देवा )

जय गणेश जय गणेश,जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा।।

पान चढ़े फूल चढ़े, और चढ़े मेवा।
लड्डुअन का भोग लगे, संत करें सेवा।।

जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा।।

अंधन को आंख देत, कोढ़िन को काया।
बांझन को पुत्र देत निर्धन को माय।।

जय गणेश, जय गणेश जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा।।

जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा।।

सूर श्याम शरण आए, सफल कीजै सेवा।
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा।।

जय गणेश, जय गणेश जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा।।

दिनन की लाज राखो, शंभु सुतकारी।
कामना को पूर्ण करो जाऊं बलिहारी।।

जय गणेश, जय गणेश जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा।।

गणेश जी की आरती (सुख करता दुःख हर्ता )

सुख करता दुखहर्ता, वार्ता विघ्नाची
नूर्वी पूर्वी प्रेम कृपा जयाची
सर्वांगी सुन्दर उटी शेंदु राची
कंठी झलके माल मुकताफळांची

जय देव जय देव, जय मंगल मूर्ति
दर्शनमात्रे मनःकमाना पूर्ति
जय देव जय देव

रत्नखचित फरा तुझ गौरीकुमरा
चंदनाची उटी कुमकुम केशरा
हीरे जडित मुकुट शोभतो बरा
रुन्झुनती नूपुरे चरनी घागरिया

जय देव जय देव, जय मंगल मूर्ति
दर्शनमात्रे मनःकमाना पूर्ति
जय देव जय देव

लम्बोदर पीताम्बर फनिवर वंदना
सरल सोंड वक्रतुंडा त्रिनयना
दास रामाचा वाट पाहे सदना
संकटी पावावे निर्वाणी रक्षावे सुरवर वंदना

जय देव जय देव, जय मंगल मूर्ति
दर्शनमात्रे मनःकमाना पूर्ति
जय देव जय देव

शेंदुर लाल चढायो अच्छा गजमुख को
दोन्दिल लाल बिराजे सूत गौरिहर को
हाथ लिए गुड लड्डू साई सुरवर को
महिमा कहे ना जाय लागत हूँ पद को

जय जय जय जय जय
जय जय जी गणराज विद्यासुखदाता
धन्य तुम्हारो दर्शन मेरा मत रमता
जय देव जय देव

अष्ट सिधि दासी संकट को बैरी
विघन विनाशन मंगल मूरत अधिकारी
कोटि सूरज प्रकाश ऐसे छबी तेरी
गंडस्थल मद्मस्तक झूल शशि बहरी

जय जय जय जय जय
जय जय जी गणराज विद्यासुखदाता
धन्य तुम्हारो दर्शन मेरा मत रमता
जय देव जय देव

भावभगत से कोई शरणागत आवे
संतति संपत्ति सबही भरपूर पावे
ऐसे तुम महाराज मोको अति भावे
गोसावीनंदन निशिदिन गुण गावे

जय जय जी गणराज विद्यासुखदाता
धन्य तुम्हारो दर्शन मेरा मत रमता
जय देव जय देव

आरती शिवजी”

जय शिव ओंकारा, भज शिव ओंकारा।

ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, अर्द्धाङ्गी धारा।

एकानन चतुरानन पंचानन राजै।

हंसासन गरूड़ासन वृषवाहन साजै।

दो भुज चार चतुर्भुज दसभुज अति सोहै।

त्रिगुन रूप निरखते त्रिभुवन जन मोहे।

अक्षमाला वनमाला मुण्डमाला धारी।

त्रिपुरारी कंसारी कर माला धारी।

श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे।

सनकादिक करुणादिक भूतादिक संगे।

करके मध्ये कमंडलु चक्र त्रिशुलधर्ता ।

सुखकारी दुखहारी जगपालन कर्ता ।

ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका।

प्रणवाक्षर में शोभित ये तीनों एका।

त्रिगुण स्वामी जी की आरती जो कोई नर गावे ।

कहत शिवानन्द स्वामी सुख सम्पत्ति पावे ।

हनुमान चालीसा एवं आरती

हनुमान चालीसा दोहा और चौपाई

दोहा :

श्री गुरु चरन सरोज रज, निज मनु मुकुरु सुधारि।
बरनऊं रघुबर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि।।
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार।
बल बुद्धि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार।।

चौपाई :

जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।
जय कपीस तिहुं लोक उजागर।।

रामदूत अतुलित बल धामा।
अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा।।

महाबीर बिक्रम बजरंगी।
कुमति निवार सुमति के संगी।।

कंचन बरन बिराज सुबेसा।
कानन कुंडल कुंचित केसा।।

हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै।
कांधे मूंज जनेऊ साजै।।

संकर सुवन केसरीनंदन।
तेज प्रताप महा जग बन्दन।।

विद्यावान गुनी अति चातुर।
राम काज करिबे को आतुर।।

प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया।
राम लखन सीता मन बसिया।।

सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा।
बिकट रूप धरि लंक जरावा।।

भीम रूप धरि असुर संहारे।
रामचंद्र के काज संवारे।।

लाय सजीवन लखन जियाये।
श्रीरघुबीर हरषि उर लाये।।

रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई।
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई।।

सहस बदन तुम्हरो जस गावैं।
अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं।।

सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा।
नारद सारद सहित अहीसा।।

जम कुबेर दिगपाल जहां ते।
कबि कोबिद कहि सके कहां ते।।

तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा।
राम मिलाय राज पद दीन्हा।।

तुम्हरो मंत्र बिभीषन माना।
लंकेस्वर भए सब जग जाना।।

जुग सहस्र जोजन पर भानू।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू।।

प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं।
जलधि लांघि गये अचरज नाहीं।।

दुर्गम काज जगत के जेते।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते।।

राम दुआरे तुम रखवारे।
होत न आज्ञा बिनु पैसारे।।

सब सुख लहै तुम्हारी सरना।
तुम रक्षक काहू को डर ना।।

आपन तेज सम्हारो आपै।
तीनों लोक हांक तें कांपै।।

भूत पिसाच निकट नहिं आवै।
महाबीर जब नाम सुनावै।।

नासै रोग हरै सब पीरा।
जपत निरंतर हनुमत बीरा।।

संकट तें हनुमान छुड़ावै।
मन क्रम बचन ध्यान जो लावै।।

सब पर राम तपस्वी राजा।
तिन के काज सकल तुम साजा।

और मनोरथ जो कोई लावै।
सोइ अमित जीवन फल पावै।।

चारों जुग परताप तुम्हारा।
है परसिद्ध जगत उजियारा।।

साधु-संत के तुम रखवारे।
असुर निकंदन राम दुलारे।।

अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता।
अस बर दीन जानकी माता।।

राम रसायन तुम्हरे पासा।
सदा रहो रघुपति के दासा।।

तुम्हरे भजन राम को पावै।
जनम-जनम के दुख बिसरावै।।

अन्तकाल रघुबर पुर जाई।
जहां जन्म हरि-भक्त कहाई।।

और देवता चित्त न धरई।
हनुमत सेइ सर्ब सुख करई।।

संकट कटै मिटै सब पीरा।
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा।।

जै जै हनुमान गोसाई।
कृपा करहु गुरूदेव की नाई।।

जो सत बार पाठ कर कोई।
छुटहि बंदि महा सुख होई।।

जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा।
होय सिद्धि सखी गौरीसा।।

तुलसीदास सदा हरि चेरा।
कीजै नाथ हृदय मंह डेरा।।

दोहा

पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप।।

आरती जय जगदीश हरे

ओ३म् जय जगदीश हरे,

स्वामी जय जगदीश हरे ।

भक्त जनन के संकट क्षण में दूर करे।

जो ध्यावे फल पावे दुख विनसे मन का।

सुख सम्पत्ति घर आवे कष्ट मिटे तन का।

मात-पिता तुम मेरे शरण गहूँ मैं किसकी।

तुम बिन और न दूजा आस करूं जिसकी ।

तुम पूरण परमात्मा तुम अन्तर्यामी ।

पारब्रह्म परमेश्वर तुम सब के स्वामी।

तुम करुणा के सागर तुम पालन कर्ता।

मैं मूरख खल कामी कृपा करो भर्ता ।

तुम हो एक अगोचर सबके प्राणपति ।

किस विधि मिलूं दयामय तुमको मैं कुमति।

दीनबन्धु दुःखहर्ता तुम रक्षक मेरे।

करूणा हस्त उठाओ द्वार पड़ा तेरे।

विषय विकार मिटाओ पाप हरो देवा।

श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ सन्तन की सेवा।

ओ३म् जय जगदीश हरे ॥

अस्वीकरण:

यहाँ पर प्रस्तुत सभी जानकारियाँ हमनें धार्मिक पुस्तकों एवं पत्र पत्रिकाओं एवं विभिन्न सोर्स के माध्यम से एकत्र की है, और यह केवल आपकी सहायता के लिए उपलब्ध कराई है। इनसे संबंधित सत्यता की पुष्टि @aaghaz_e_nisha website नहीं करती है। इस कंटेंट को जनरुचि के ध्यान में रखकर यहां आपके समक्ष प्रस्तुत किया गया है। जिसका कोई ज्योतिषी प्रमाण नहीं है। यदि कहीं पर आपको कोई त्रुटि एवं संदेह लगे तो, कृपा कर आप अपने किसी ज्योतिषी या पंडित जी की सलाह अवश्य लें।
हमारी वेबसाइट को अपना कीमती समय देने के लिए आप सभी पाठकों का बहुत-बहुत आभार, धन्यवाद..
🙏राधे राधे 🙏

Scroll to Top