जब जोड़ियां बदल गई..

जब जोड़ियां बदल गई..( कहानी ऐसी, “बदले की आग सुलग रही हो” जैसी.. )

शेखर ने जब पहली बार अपनअपनी होने वाली भाभी रूचि को देखा तो, वह बड़े ही फ़िल्मी अंदाज़ में रूचि के सामने घुटनों के बल बैठ कर,अपने सीने पर हाथ रख़ते हुए बड़े फ़िल्मी अंदाज़ मे अपने भाई अमित को चिढ़ाते हुए बोला – “हाय मैं मर जावा किन्नी सोनी भाभी है। अरे वाह भाई आपकी तो लॉटरी लग गई। दिल चाहता है। कि इन्हें अभी यहाँ से भगा कर ले जाऊं”। क्यों क्या कहते हो भाई ? ले जाऊं”? शेखर की इस शरारत भरी बात पर अमित और रुचि एक दूसरे को देखकर मुस्कुराने लगे। फिर आशा जी यानी शेखर की माँ उसका कान खींचते हुए बोली, बदमाश कहीं का, तू अपनी शरारतों से बाज़ नहीं आएगा। फ़िर वहां पर उपस्थित सभी लोग जोर से ठहाके लगाकर हंसने लगे। अब भला शेखर को कहाँ पता था। कि आज मज़ाक़ ही मज़ाक़ में उसके मुंह से निकली हुई बात, एक दिन सच साबित हो जाएगी। और जिसे आज वह भाभी समझ कर छेड़ रहा है। आगे चलकर वही लड़की भविष्य में उसकी जीवन संगिनी बन जाएगी।

आख़िर ऐसा क्या हुआ कि, शेखर को अपनी होने वाली भाभी रूचि से शादी करनी पड़ी। पूरी कहानी जानने के लिए पढ़ना ज़ारी रखे……….

यह कहानी एक ऐसी पारिवारिक और रोमांटिक कहानी का मिश्रण है। जिसमे दो परिवारों के बीच बहुत अच्छी दोस्ती है।और वे इस इस दोस्ती को रिश्तेदारी मे बदलना चाहते हैं। इस कहानि के मुख्य क़िरदार रूचि और अमित दोनों का रिश्ता तय हो जाता है। अमित का छोटा भाई शेख़र जो कि आर्मी मे है। वो कुछ दिनों की छुट्टी आता है। तो अमित की मम्मी की इच्छानुसार अमित और रूचि का रोका हो जाता है। रोका हो जाने के बाद रुचि और अमित के बीच मेल-जोल काफ़ी बढ़ जाता है। और वो दोनों एक दूजे से बेइंतहां मोहब्बत करने लगते हैं। औरअपनी शादी होने का बेसब्री से इंतज़ार करते है । पर कहानी में अचानक से एक ऐसा मोड़ आता है। जहाँ पर ऐसी परिस्तिथियाँ खड़ी हो जातीं हैं। कि, रूचि की शादी उसकी मर्ज़ी के ख़िलाफ़ अमित से न होकर उसके छोटे भाई शेख़र के साथ हो जाती है। पर रूचि को अमित के सिवाए कोई भाता ही नहीं था। तभी तो उसका अपने प्यार के प्रति इस क़दर जूनून छाया हुआ है। जिसके चलते एक हँसते खेलते घर का माहौल उदासी में तब्दील हो जाता है। जो भाई एक दूसरे के लिए जान हाज़िर करते थे।आज वो ही एक दूसरे की जान के दुश्मन बने बैठे हैं! आख़िर ऐसा क्या हुआ होगा। जो बात यहाँ तक पहुँच गई। आगे की कहानी जानने के लिए पूरी कहानी पढ़ें – – – – –

आशा करतीं हूं, कि आपको यह कहानी ज़रूर पसंद आएगी। आप सभी प्रिय पाठकों के कमेंट्स के इंतज़ार मे, लेखिका- – – – – Nisha Shahi

अस्वीकरण : आप सभी की जानकारी के लिए बता दूँ। कि यह कहानीं और इसके सभी पात्र पूर्णतया काल्पनिक है। तथा इस कहानी का एवं इसके पात्रों का किसी व्यक्ति विशेष या किसी के निजी जीवन से कोई लेना – देना नहीं है। तथा यहाँ किसी भी प्रकार के अंधविश्वाश को बढ़ावा देने की कोई मंशा नहीं है। और यह कहानीं स्वयं मेरे द्वारा लिखित है। इसमें मेरे सिवाए अन्य किसी दूसरे की भगीदारी नहीं है। यह कहानी सिर्फ़ और सिर्फ़ पाठकों के मनोरंजन हेतु प्रस्तुत की गई है।

जब जोड़ियाँ बदल गईं भाग -1

राजस्थान के एक छोटे से शहर में गौतम जी और आशा जी का सुखी परिवार रहता था। उनके दो बेटे थे। बड़ा बेटा अमित और छोटा बेटा शेखर गौतम जी और आशा जी ने दोनों बच्चों की परवरिश बहुत ही प्यार और समझदारी से की थी। जो कि उनके व्यवहार और संस्कारों में साफ़ झलकती थी।

अमित का अपना रेडीमेट गारमेंट का बिजनेस था। वह हमेशा शांत गंभीर और सोच समझकर काम करने वाला लड़का था। वहीं शेखर जो आर्मी में अच्छी पोस्ट पर था। हर समय हंसता मुस्कुराता और मजाकिया रहता, लेकिन समझदार और आज्ञाकारी भी था। दोनों भाइयों के बीच राम लक्ष्मण जैसा गहरा प्यार था।

एक दिन गौतम जी और आशा जी किसी शादी समारोह में गए। तो वहां पर उनकी मुलाकात अपने पुराने मित्र प्रदीप जी और उनकी पत्नी रेखा जी से हुई। प्रदीप जी भी उसी शहर में 10 -15 किलोमीटर की दूरी पर रहते थे। पर काम के सिलसिले में प्रदीप जी अक्सर बाहर रहते थे तो, कई सालो बाद मिलना हो रहा था। प्रदीप जी,गौतम जी की तरफ़ हाथ बढ़ाते हुए बोले – – – – – “अरे वाह इतने सालों बाद मिल रहे हैं। प्रदीप जी हंसते हुए बोले – – – – – “हाँ वाकई कई सालों बाद मिलना हो रहा है। बस काम के सील सिले में कभी फुर्सत ही नहीं मिलती। देखिये न इतना छोटा सा शहर है। फिर भी कितने सालों बाद मिलना हुआ”। दोनों परिवार थोड़ी देर में पुराने दिनों की बातें करते हुए अपने बच्चों का हाल-चाल पूछने लगे। फोन पर कभी कभार बात होती थी। लेकिन अब मिलकर जैसे उनके बीच की दूरी थोड़ी कम महसूसहो रही थी ।

प्रदीप जी की पत्नी रेखा जी आशा जी से बोली – – – – – “अरे बहन जी आपके बच्चे तो अब काफ़ी बड़े हो गए होंगे।बहुत साल पहले देखा था, दोनों को”। आशा जी ने हँसकर ज़वाब दिया – – – – – अरे बड़े दोनों बुड्ढे हो गए हैं। शादी के लायक”। इस पर रेखा जी भी आशा जी की बात पर हँसकर बोली – – – – – “अच्छा इतने बड़े हो गए हैं। वैसे दोनों अभी क्या कर रहे हैं”। आशा जी बड़ी विनम्रता से हाथ जोड़ कर बोली – – – – – “बस ईश्वर की कृपा से दोनों बेटे सेटल हैं। बड़े बेटे का अपना रेडीमेड गारमेंट का बिजनेस है। और छोटे वाला आर्मी में कैप्टन है। ईश्वर का दिया हुआ सब कुछ है। बस अब इन दोनों का घर बस जाए तो हम भी गंगा नहाएं”। रेखा जी बोली – – – – – “हां बात तो सही है। मां-बाप के लिए यह सबसे बड़ी जिम्मेदारी है”। फ़िर आशा जी रेखा जी से बोली – – – – – “अरे बहन जी आपके बच्चे भी तो काफी बड़े हो गए होंगे न” !रेखा जी मुस्कुरा कर बोली – – – – – “जी हमारे भी दो बच्चे हैं। बेटी रुचि अभी एमबीए कर रही है। और बेटा रोशन अभी 12th में पढ़ रहा है। और साथ ही जेई मैंस की तैयारी भी कर रहा है”। आशा जी बोली – – – – – “अच्छी बात है”। फ़िर साथ में खाना खाकर गौतम जी और प्रदीप जी ने एक दूसरे से हाथ मिलाया। और जल्द ही मिलने का वादा कर एक दूसरे से विदा ली। और साथ ही रेखा जी और आशा जी ने भी एक दूसरे को गले लगा कर एक दूसरे को घर आने का निमंत्रण दिया। और हाथ जोड़कर विदा ली।

दूसरे दिन सुबह की चाय की चुस्की लेते हुए। गौतम जी ने फेसबुक पर प्रदीप जी की स्टोरी देखी। तो उन्होंने आशा जी को दिखाते हुए कहा – – – – – “अरे देखो तो जरा प्रदीप जी ने कल की पार्टी की पिक फेसबुक पर डाली है”। आशा जी उत्सुकतापूर्वकफ़ोन छीनते हुए बोली – – – – – “दिखाइए तो ज़रा” और फोटो देखकर बोली “अरे वाह ! आप दोनों की फोटो तो बड़ी अच्छी आई है। और यह रेखा जी और मेरी फोटो कब ले ली उन्होंनेसच में बड़ी अच्छी आई है”।आशा जी जो गौतम जी का फोन लेकर बैठी तो, फेसबुक पेज स्वाइप पर स्वाइप करती चली गई। और अचानक से उनकी नज़र एक फोटो पर जा टिकी और वह फोटो थी। प्रदीप जी और उनकी बेटी रुचि की आशा जी ने गौतम जी को फोटो दिखाते हुए बोली – – – – – “अरे सुनो देखना ज़रा क्या यह गौतम जी की बेटी है”? प्रदीप जी ने देखा और कहा – – – – – “हां यह उनकी बेटी रुचि है। कितनी बड़ी हो गई है, न”। इस पर आशा रुचि की फोटो को निहारत हुए बोली – – – – – “और कितनी प्यारी भी है”। और एक टक होकर रुचि की तस्वीर को निहारने लगी। फिर प्रदीप जी ने आशा को हिलाते हुए बोले – – – – – “क्या हो गया ? कहां खो गई हो तुम”?

फ़िर आशा जी गौतम जी से बोली – – – – – “अच्छा सुनो न मेरे दिल में एक ख़्याल आया है। अगर तुम और अमित हां कह दो तो सच हो जाए”। गौतम जी बोले – – – – – “ऐसी क्या बात है? जिसमें मेरी और अमित की रजामंदी चाहिए”। आशा जी माथे पर हाथ रखते हुए बोली – – – – – “आप भी न कुछ नहीं समझते। अरे इतना भी नहीं जानते, कि अब बेटा शादी के लायक हो गया है। अगर मैं उसके लिए कोई लड़की पसंद करती हूं तो आपकी और अमित की रजामंदी तो होनी ही चाहिए”। गौतम जी एकदम से शौक हो गए। और बोले – – – – – “क्या बात कर रही हो ? तुमने हमारी होने वाली बहू पसंद कर ली और मुझे ख़बर तक नहीं ? यह कब और कैसे हुआ कौन है ? कहां की है” ? आशा जी गौतम जी को फ़ोन में रुचि की तस्वीर दिखाते हुए बोली – – – – – “बस अभी अभी देखी है। यह है। खानदान भी अच्छा है। आपका जाना पहचाना हुआ भी है। आप ज़रा अमित की मन की बात जानकर बात को आगे बढ़ाइए न”। गौतम जी बोले – – – – – “अरे अमित मुझसे ज़्यादा तुम्हारी सुनता है। तुम ही करो तुम्हारे लाडले से बात”।

थोड़ी देर बाद नाश्ते की मेज पर आशा जी ने अपने बड़े बेटे अमित को बातों ही बातों में रुचि की तस्वीर दिखाई और पूछा – – – “कैसी है”? अमित बोला – – – – – ये कैसा सवाल है। मैं क्या बोलूं। अच्छी है। पर है, कौन ? और आप मुझसे क्यों पूछ रहीं हैं” ? आशा जी बोली रुचि नाम है, इसका, तुम्हारे पापा के ख़ास दोस्त की बेटी हैं। न जाने क्यों मुझे तो यह तेरे लिए एक ही नज़र में भा गई”। अमित मुस्कुरा कर बोला – – – – – “कुछ भी माँ आप भी न बस एक फ़ोटो देखी और पसंद आ गई। आपने उस लड़की, की या उसके घर वालों की राय जाने बिना ही यह फैसला ले लिया कुछ भी, माँ आप भी कमाल हो”।

आशा जी बोली – – – – – – “नहीं बेटा ऐसी कोई बात नहीं है। उनकी राय भी ले लेंगे। हमें तो बस पहले तेरी रजामंदी चाहिए थी। वो क्या है, न कि आजकल के बच्चे अपने आप ही पसंद कर लेते हैं। इसलिए बेटा अगर तू पहले से ही किसी लड़की को पसंद करता है। तो बता दे हम उसी से तेरी शादी करा देंगे”। अमित मुस्कुरा कर बोला – – – – – “क्या माँ आप भी, यहां काम के बीच सांस लेने तक की फुर्सत नहीं है। अब क्या काम छोड़कर लड़कियां देखता फिरूंगा”। आशा जी बोली – – – – – “थैंक गॉड। चल अच्छा एक बार फ़िर से रुचि की तस्वीर गौर से देख ले पसंद है। या नहीं ? फ़िर हम बात को आगे बढ़ाते हैं”। अमित शर्माते हुए बोला – – – – – “माँ आप भी न कुछ भी बोलतीं हैं। आपको और पापा को जैसा ठीक लगे आप वैसा ही करें। मुझे शोरूम जाने के लिए देर हो रही है। मैं चलता हूं”।

अमित के घर से जाते ही आशा जी ने गौतम जी को प्रदीप जी से बात करने के लिए कहा। तो गौतम जी आशा जी से बोले – – – – – “देखो जी यह बातें हम मर्दों से ज़्यादा तुम औरतें अच्छे से कर लेती हो। मैं अभी प्रदीप जी से उनकी पत्नी का नंबर लेकर तुम्हारी बात करवा देता हूं”। फ़िर आशा जी ने रेखा जी को फ़ोन मिलाया। हाल -चाल जानने के बाद आशा जी ने अपने मन की बात रेखा जी को बताई कि उनकी बेटी रूचि उन्हें अपने बड़े बेटे के लिए बहुत पसंद है, आशा जी की मन की बात जानकर मानो रेखा जी की तो ख़ुशी का कोई ठिकाना ही नहीं था। क्योंकि उन्हें यह रिश्ता बहुत पसंद आया था। रेखा जी आशा जी से बोली – – – – – “बहन जी आपने तो मेरे मन की बात कह दी, हमारी तरफ़ से तो हाँ है। फ़िर भी एक बार मैं रुचि से पूछ कर आपको शाम तक बताती हूं”।

अब तो बस आशा जी को शाम होने का इंतजार था। और जैसे ही शाम के ठीक 4:00 बजे फोन की घंटी बजी तो आशा जी ने सरपट से फ़ोन उठाया और बोली, “तो रेखा जी क्या ज़वाब है। बिटिया का”, इतने में फ़ोन में सामने से आवाज़ आई। “अरे मेरी माँ यह मैंने आपको ही मिलाया है। न फ़ोन। और मैं कब से शेखर से रेखा जी हो गया”। आशा जी बोली – – – – -“अरे बदमाश तू सामने से आशा जी के बेटे शेखर का फ़ोन था। वह बोली “अरे कुछ नहीं वह मेरी एक सहेली का फ़ोन आने वाला था। तो बस उसी का इंतजार था। तू बता तू कैसा है ? कब आ रहा है ? बहुत याद आती है, तेरी। शेखर बोला मैं बिल्कुल ठीक हूँ। माँ और अगले महीने की 15 तारीख को आ रहा हूँ । क्या लाऊं तुम्हारे लिए”? आशा जी बोली – – – – – कुछ भी नहीं बस तू जल्दी से आजा मेरे लिए वही काफ़ी है”। शेखर से बात होने के बाद कुछ देर बाद फ़िर से फोन की घंटी बजी इस बार रेखा जी का ही फ़ोन था। वह सामने से खनकती आवाज़ में बोली- – – – मुबारक हो बहन जी बिटिया की भी हाँ है। अब आप लोग किसी भी दिन घर आकर बात कर जाइए” आशा जी बोली किसी भी दिन क्यों कल ही आते हैं। कल रविवार है। अमित आधे दिन के बाद ही शोरूम पर जाता है। हम दोपहर 11:00 तक पहुंचाते हैं। आपके घर।

फ़िर अगले दिन सभी लोग रुचि के घर पहुंचे। रेखा जी ने चाय पानी का अच्छा खासा इंतजाम किया हुआ था। और जैसे ही रुचि की एंट्री हाल में हुई तो सब उसे देखते ही रह गए। वह तस्वीर से भी ज़्यादा खूबसूरत लग रही थी। लंबी कद-काठी गोरा छरहरा बदन तीखे तीखे नैन नक्श। अमित की तो मानो जैसे नज़र ही नहीं हठ रही थी। कुछ देर बाद आशा जी बोली – – – -कि इन दोनों को सारी जिंदगी एक साथ बितानी है। तो क्यों ना यह दोनों अकेले में एक दूसरे से थोड़ा बहुत बातचीत कर लें। एक दूसरे को समझ ले।

फ़िर अमित रुचि के साथ, दूसरे कमरे में गया। और वहां दोनों के बीच खूब बातें हुई। अमित ने रुचि से पूछा- – – – “आजकल आप क्या कर रही हैं”। रूचि बोली – – – – -“बस M.B.A कंप्लीट ही होने वाला है। और उसके बाद एक अच्छी सी जॉब” “अमित बोला- – – – – अच्छा मैंने भी M.B.A किया हुआ है। दो साल जॉब भी की फ़िर मुझे लगा, कि क्यों न पापा का बिजनेस संभाला जाए, बस एक रेडीमेड गारमेंट का शोरूम है। अगर बाद में तुम्हारा मन करे तो तुम भी हमारे साथ बिजनेस जॉइन कर सकती हो”। रुचि मुस्कुरा दी। फ़िर जैसे ही दोनों दोनों हॉल में पहुंचे, तो उनका मुस्कराता चेहरा देख आशा जी चहकती हुई शरारत भरे अंदाज़ में बोली- – – – – क्या कहते हो ,बच्चों ? क्या हम तुम्हारी इस मुस्कराहट को हाँ समझें ? इतने में रूचि और अमित दोनों ने एक साथ हामी भरते हुए सर हिलाया। दोनों की हामी सुनने के बाद दोनों परिवारों के बीच ख़ुशी की लहर दौड़ पड़ी। और फ़िर इसी ख़ुशी में रूचि की मम्मी रेखा जी ने सभी का मुँह मीठा कराया।

रूचि की मम्मी रेखा जी बोली- – – – – – “जी वो बात ऐसी है। कि बात बढ़ने से पहले दोनों की कुंडलिया मिलता लेते तो अच्छा होता”। आशा जी बोली– – – – “जी बिलकुल यह तो ज़रूरी है। मैं कल ही अमित की कुंडली भिजवा देती हूँ । आप दोनों की कुंडलियां मिलवा लीजिए”।

रेखा जी बोली – – – – -“बात तो सही है। पर हमारे पुरोहित जी पूरे 2 महीने के लिए शहर से बाहर गए हुए हैं। वहां पर जिस जगह पर उनका प्रवचन है। वहां तो फ़ोन पर बात करना भी संभव नहीं होगा। अब 2 महीने रुकना ही पड़ेगा”। यह बात सुनते ही, आशा जी का चेहरा उतर गया। और आग्रह करते हुए बोली- – – – -” जी वो सब तो ठीक है। पर वो क्या है, न, कि, मेरा छोटा बेटा अगले महीने 15 दिनों की छुट्टी आ रहा है। मैं सोच रही थी। कि अगले महीने मंगनी रख लेते हैं। वह भी शामिल हो जाएगा। उसके बाद तो फ़िर वह सीधा शादी में ही आ पाएगा”। कुछ देर बाद सोच विचार करने के बाद रुचि की दादी जी बोली– – – – “देखो मंगनी तो कुंडली मिलाने के बाद ही होगी। पर हाँ एक रास्ता है। कि अगले महीने रोके की रस्म कर लेते हैं। आप लोग अगले महीने आकर लड़की को चुन्नी उड़कर नारियल देखकर रिश्ता पक्का कर जाओ। और फ़िर पुरोहित जी से शादी की तारीख और मंगनी की तारीख आसपास की ही रख लेंगे। इससे आपका छोटा बेटा जब शादी में आएगा तो मंगनी और शादी दोनों अटेंड कर लेगा। और अगले महीने रोके की रस्म में भी शामिल हो जाएगा। और कुंडली का मिलान भी हो जाएगा। क्यों क्या कहती हो आशा बिटिया” ?

आशा जी ने रुचि की दादी को धन्यवाद करते हुए बोली – – – – – “थैंक यू माँजी आपने तो सारी समस्या ही सुलझा दी। वो क्या है, न कि, इन दोनों भाइयों में बहुत प्रेम है। एक दूसरे के बगैर उनकी खुशी अधूरी रहती है”। इतने में गौतम जी बोले- – – – – “हमारा छोटा बेटा अगले महीनें की 15 तारीख़ को आ रहा है। तो क्यों न उसी के आस -पास की तारीख़ में कोई अच्छा सा महूर्त देख कर रोके की रसम कर लेते है”। रूचि की दादी बोली – “ठीक है, हम बतातें है,आपको”। बस फ़िर गौतम जी अपने परिवार संग सबसे विदा लेकर घर के लिए रवाना हो गए।

घर पहुंच कर आशा जी बहुत खुश हुई। और चहकती हुई अपने पति से बोली – – – – – आज मैं बहुत खुश हूं। मुझे जैसी बहू चाहिए थी। रुचि में वेसभी गुण है। परिवार भी जाना पहचाना है। अब बस रोके की रस्म हो जाए। और फिर अगले साल शादी क्या कहते हो ? तैयारी शुरू कर दें गौतम जी, आप ससुर जी बनने वाले हो” ! गौतम जी बोले- – – – -“अरे भागवान पहले कुंडली तो मिल जाने दे। उसके बाद जितना मर्ज़ी उछल लेना”। आशा जी बोली- – – – – “अरे कुंडली मिलवाना तो बस एक फॉर्मेलिटी है। रुचि तो मेरे ही घर की बहू बनेगी”। और फिर आशा जी अमित को छेड़ते हुए बोली- – – – – “क्यों अमित कैसी लगी रुचि? और उसकी बातें ? अमित शरमा कर अंदर कमरे में चला गया।

और फ़िर थोड़ी देर बाद आशा जी ने शेखर को फ़ोन लगाकर अमित के रिश्ते की ख़ुशख़बरी दी भाई के रिश्ते की ख़बर सुनते ही शेखर फ़ोन पर ही चहक उठा। और माँ से ज़िद करते हुए बोला- – – – – माँ प्लीज़ मुझे भाभी का फ़ोन नम्बर दो न मुझे उनसे बात करनी है। रेखा जी साफ़ मना करते हुए बोली- – – – – “नहीं अभी नहीं जब तुम यहाँ आओगे तो ख़ुद अपनी होने वाली भाभी से ही ले लेना उसका फ़ोन नम्बर”। शेखर निराश होकर बोला- – – – – “ओ-हो माँ भला ये क्या बात हुई। खुद तो आप मिल भी आये और में बात भी न करूं” आशा जी शेखर को समझा ते हुए बोली- – – – – – बेटा अभी तो बात ही पक्की हुई है। और तुम हो शरारती कहीं फोन में रूचि से कुछ उटपटांग बोल दिया तो और उसे बुरा लगे तो, नहीं नहीं नम्बर तो नहीं मिलेगा तुम्हे”। फ़िर सामने से शेखर बोला- – – — “चलो अच्छा कोई बात नहीं अगर नम्बर नहीं दे सकते हो तो कम से कम भाभी की फ़ोटो ही भेज दो। देंखू तो भाई से जोड़ी मेल खाती है, कि नहीं” ? इधर से आशा जी शेखर को और चिढ़ाते हुए बोली- – – – – भई हम सब ने तय किया है। कि अपनी भाभी को तो तुम रोके वाले दिन ही देख पाओगे समझ लो सरप्राइज़ है, तुम्हारे लिए !! शेखर बोला- – – – – “ये की बात हुई माँ आप लोग ऐसा क्यों कर रहे हो मेरे साथ एक ही तो भाई है मेरा” आशा जी बोली- – – – – बस कुछ दिनों की बात है। खुद आकर सामने से देख़ लेना अपनी भाभी को ! तेरी ख़ुशी दोगुनी न हो जाये तो कहना” !! सामने से शेखर ने बात को समझते हुए – – – – – “ओके माँ” कहकर फ़ोन रख दिया।

और वही दूसरी ओर जैसे ही अमित रात सोने जा रहा था। तो, अचानक से उसकी आँखों के सामने उसे रूचि का चेहरा दिखने लगा। जैसे कि, वह रुचि को मिस कर रहा हो। काफ़ी देर सोचा कि रुचि को फोन करूं कि नहीं ? फ़िर उसने उसे मैसेज किया कि- – – – – “रुचि तुम सो गई क्या”? रुचि का जवाब आया “नहीं नींद नहीं आ रही है” अमित बोला मेरा भी यही हाल है। इतने में सामने से रूचि का फोन आया। और इधर उधर की बातें होने लगी। अमित ने रूचि से पूछा कि- – – – – “क्या हम कभी-कभी इसी तरहं फ़ोन पर बातें कर सकते है” ? तभी सामने से रूचि का ज़वाब आया- – – – – “नहीं”। अमित थोड़ा घबराकर बोला- – – – – “सॉरी वह तो बस मैं ऐसे ही पूछ रहा था”। फ़िर रुचि खिलखिला कर हँस पड़ी और बोली – – – – – “अरे बाबा नहीं इसलिए कहा, कि मैं तो तुम्हें हर रोज फोन करूंगी कभी-कभी-कभार क्यों” ? रूचि की बात सुनकर अमित ने लंबी सांस भरते हुए बोला- – – – – “तुमने तो डरा ही दिया था ! पता है, रुचि तुम एकदम शेखर के जैसी हो, चंचल और नटखट” ! सामने से रूचि बोली- – – – – “शेखर कौन” ? फ़िर सामने से अमित का ज़वाब आया- – – – – “अरे जिसके लिए रोके का प्लान बना है! मेरा छोटा भाई”! रूचि लंबी साँस भरते हुए बोली – – – -“ओ अच्छा-अच्छा यानि कि मेरे होने वाले देवर जी” ! अमित सामने से बोला- – – – – “पता है, अभी माँ से तुम्हारा फ़ोन नम्बर और फ़ोटो मांग रहा था। पर माँ ने सरप्राइज़ कहकर साफ़ मन कर दिया”। इसी तरहं काफ़ी देर तक शेखर की बातें होती रही। और फ़िर दोनों ने एक दूसरे को कल फ़िर से फ़ोन करने का वादा कर विदा ली। और फिर यह सिलसिला यूं ही हर रोज़ चलता ही रहा। और अब अमित और रुचि के बीच बातें केवल फ़ोन तक ही सीमित नहीं थी। बल्कि अब तो दोनों का मिलना जुलना भी होता रहता। दोनों अक्सर कभी रेस्टोरेंट तो, कभी मूवी देखने जाते।

बस इसी तरहं न जाने कब समय बीत गया पता ही न चला। और इधर ठीक 15 तारीख़ को शेखर भी छुट्टी आ गया। और 19 तारीख़ को रोके का महूर्त निकला। शेखर जैसे ही घर पहुँचा तो अपने भाई को पकड़ कर गोल गोल घूमते हुए बोला- – – – – – मुबारक़ हो भाई आप दूल्हा बनने वाले हो। चलो भाई मुझे भाभी से मिलना है ! ज़रा हम भी तो देखें की कैसी दिखती है? मेरी होने वाली भाभी?? शेखर ने बहुत ज़िद की, कि अब तो भाभी से मिलवा दे। पर सभी घर वालों ने कहा सरप्राइज है। रोके वाले दिन ही देख लेना। आखिरकार इंतज़ार की घड़ियां ख़त्म हुईं। और रोके का दिन भी आ ही गया। पूरा परिवार रुचि के घर शगन का सामान लिए पहुंचे।

और जैसे ही सजी-धजी रुचि सबके सामने आई। तो, शेखर रूचि के आगे घुटनों के बल बैठ कर अपने सीने पर हाथ रख़ते हुए, बड़े ही फ़िल्मी अंदाज़ में ,अपने बड़े भाई अमित को चिढ़ाते हुए बोला- – – – – “हाय मैं मर जांवा ! किन्नी सोहणी भाभी है। अरे वाह ! भाई आपकी तो लॉटरी लग गई। दिल चाहता है। कि अभी यहां से भगा कर ले जाऊं। क्या बोलते हो भाई ले जाऊं”?? शेखर की इस शरारत भरी बात पर अमित और रुचि एक दूसरे को देखकर मुस्कुराने लगे। फ़िर आशा जी यानी शेखर की माँ उसका कान खींचते हुए बोली- – – – – “बदमाश कहीं का, तू नहीं सुधरने वाला।

फ़िर वहां पर उपस्थित सभी लोग जोर से ठहाके लगाकर हंसने लगे। अब रोके की रस्म शुरू करते हुए आशा जी ने रुचि के सर पर चुन्नी उढ़ाई और उसके आंचल में नारियल रखते और उपहार रखते हुए बोली- – – – – आज से रुचि हमारी हुई। वहीं गौतम जी और आशा जी ने भी अमित का तिलक किया। बस हंसी-खुशी के माहौल में रोके की सभी रस्में भली प्रकार से पूरी हो गई।

दोनों परिवारों के बीच ख़ुशियों का माहौल बना हुआ था। पर एक अनहोनी होनी अभी बाकी थी। जिससे की दोनों परिवार अनजान थे। वो अनहोनी क्या थी। क्या दोनों परिवारों की खुशियाँ यूं ही बरक़रार रहेंगी?? या फ़िर ये ख़ुशियाँ कुछ ही दिनों की मेहमान थी। आगे की कहानी जानने के लिए हमसे जुड़े रहे। और कहानी का अगला भाग ज़रूर पढ़े- – – – – – – – – – – –

जब जोड़ियाँ बदल गईं भाग –2

और इधर शेखर की 15 दिनों की छुट्टियां न जाने कब खत्म हो गई। पता ही ना चला। और वह शादी में आने का वादा कर वापस चला गया। और इधर रुचि और अमित का मिलना जुलना जारी रहा। पता ही नहीं कब दोनों मिलते-जुलते एक दूसरे के बेहद करीब आ गए। उन्हें खुद पता नहीं चला अब तो उन्हें एक दूसरे के बगैर एक पल भी रहना गवारा नहीं लगता था। रुचि रोज कॉलेज के बाद अमित से मिलती और अमित का भी यही हाल था। रूचि को देखे बग़ैर उसका मन नहीं लगता था। बस इसी तरह महीने गुजरते गए और 2 महीने कब गुजर गए पता ही नहीं चला। रुचि की माँ ने पुरोहित जी के आश्रम फ़ोन कर पता किया। कि, गुरुजी से कब मिलना हो पाएगा। तो पता चला कि उन्हें अभी एक महीना और लग जाएगा। आप चाहे तो आश्रम में आकर उनसे मिल सकती हैं। पर अभी आश्रम जाना संभव नहीं था। क्योंकि रुचि के भाई के एग्जाम चल रहे थे। तो रेखा जी ने एक महीना और इंतजार करना उचित समझा। और उधर अमित और रुचि की नजदीकियां बढ़ने लगी। दोपहर को मिलते और रात भर घंटों फोन पर बातें करते

आख़िरकार एक महीना भी गुजर गया। और गुरुजी रुचि के घर आए और कुंडलियों का मिलान कर गहरी सोचमे पड़ गए। और कुछ देर तक सोंचने के बाद बोले- – – – – “मुझे दोनों की कुंडली में थोड़ा संदेह है? मुझे एक हफ्ते का समय दीजिए। मैं बारीकी से जांच कर आपको बताता हूँ “। पुरोहित जी की बात सुनकर सभी लोग थोड़े घबरा से गए। फ़िर यह सोचकर मन को मनाया की सब अच्छा ही होगा। एक हफ्ता बीत जाने के बाद पुरोहित जी फिर से रुचि के घर आए। और बोले- – – – – “देखिए इन दोनों की कुंडली ज़रा भी मेल नहीं खा रही। यदि शादी हुई तो ज़्यादा दिन नहीं चल पाएगी। अनहोनी भी हो सकती है? इसलिए आप यह रिश्ता पक्का न करें तो अच्छा होगा”। उस वक्त रुचि घर पर नहीं थी वो कॉलेज गई हुई थी।

पुरोहित जी की बातें सुनकर रेखा जी माथा पकड़ते हुए बोली- – – – – “रिश्ता पक्का ? अरे पुरोहित जी हमने तो रोका तक कर डाला अब क्या होगा ?? और कोई उपाय नहीं है, क्या?? सारी बिरादरी को पता चल गया है। कि लड़की का रोका हो गया है। और अगले साल शादी है। अब क्या होगा” ? पुरोहित जी बोले – — इतनी भी क्या जल्दी थी 2 महीने रुक जाते। रेखा जी सर पकड़ते हुए बोली- – – – – “क्या करें पुरोहित जी लड़का और उसका परिवार इतना पसंद आ गया था। कि मैं 2 महीने का इंतजार नहीं कर पाई”। पुरोहित जी बोले- – – – – देखो यह शादी तो हो नहीं सकती। अब अगर परिवार इतना ही अच्छा लगा है। तो उन लोगों से बात करके देख लो शायद वे अपने छोटे बेटे के लिए मान जाए। हफ्ते बाद उसकी कुंडली भी मिला कर देख लेंगे”। रुचि की माँ को कुछ समझ नहीं आ रहा था। कि अब क्या करें।

जब बहुत सोच विचार करने के बाद दूसरे दिन यह बात रेखा जी ने आशा जी को बताई पहले तो उन्हें विश्वास नहीं हुआ क्योंकि उन्होंने तो कभी सपने में भी नहीं सोचा था। कि ऐसा भी कुछ होगा। वैसे तो आशा जी इन सब बातों पर ज़्यादा ध्यान नहीं देती थी। पर जब बात अपने बेटे पर आई तो उन्होंने एक बार को अपने कदम पीछे कर लिए। और बोली- – – – – चलिए कोई बात नहीं, मेरा तो बहुत मन था। कि रूचि मेरे घर की बहु बने। पर अब कर भी क्या सकते है। जैसी ईश्वर की इच्छा शायद रुचि हमारी किस्मत में ही नहीं थी”। आशा जी की बात सुनकर रेखा जी सामने से बोली- – – – – “अरे नहीं बहन जी आप ये कैसी बात कर रही हैं? आपको याद है। आपने रुचि को चुनरी उड़ते हुए कहा था। कि आज से रुचि हमारी हुई तो आप ?अपना वादा कैसे तोड़ सकती हैं”? आशा जी असमंजस में पड़ते हुए बोली- – – – – मैं कुछ समझी नहीं ? एक तरफ़ आप कहती है। कि कुंडली नहीं मिली। और फ़िर कहती हैं। कि, मैं वादा तोड़ रही हूं ? प्लीज आप मुझे खुलकर बताएंगीं ज़रा” ?

फ़िर रेखा जी बात को समझाते हुए बोली- – – – – “देखिए बहन जी सारी बिरादरी को पता है। कि आप और हम संबंधी बनने वाले हैं। बच्चों का रोका भी हो चुका है। अब अमित बेटे का तो कुछ नहीं जाएगा। क्योकिं वह लड़का है। पर रुचि ख़ामख़ा बदनाम हो जाएगी। जात बिरादरी वाले सब तो यही कहेंगे न कि शायद लड़की में ही कोई खोट होगा ? आप समझ रही है, न मेरी बात”। आशा जी बोली- – – – – “हाँ क्यों नहीं मैं समझती हूँ। कि, एक लड़की पर क्या गुजरती होगी। जब उसका रिश्ता टूटता होगा”। अब आशा जी से छटपटाते हुए रेखा जी से बोली – बहन जी चलो यह तो रही रुचि की बात। प्लीज अब आप मुद्दे पर आइए और साफ़ -साफ़ कहिए। आख़िर चल क्या रहा है ? आपके मन में? तब रेखा जी बात को समझते हुए बोली- – — – “देखिए आशा जी अब जो मे कहने जा रही हूँ। शायद आपको थोड़ा अजीब लगे। और प्लीज मेरी बात का बुरा मत मानना। और मेरी बात पर ग़ौर जरूर करना”। आशा जी घबरा कर बोली- – – – – “देखिये बहन जी अब मेरा दिल बैठा जा रहा है। अब तो बात पर से पर्दा उठाइये”।

रेखा जी संकुचाते हुए बोलीं- – – – – जी वो बात ऐसी है। कि, हमारे पुरोहित जी ने एक सुझाव दिया है। क्या आप अपने छोटे बेटे शेखर की जन्म कुंडली भिजवा सकती हैं ? एक बार रुचि की कुंडली से मिलवा लेते हैं। अगर दोनों की कुंडली मिल जातीं है। तो हम आज भी सम्बन्धी बन सकते है। और हम दोनों परिवारों की इज्जत भी रह जाएगी। और यदि कुंडली न मिले तो, आगे ईश्वर की मर्जी”। पहले तो आशा जी को बहुत बुरा लगा। कि ऐसे कैसे हो सकता है? पर फ़िर उसे रुचि का चेहरा याद आने लगा। जिसे वह कब से बहू बनाने के लिए आतुर हुए जा रही थी। आशा जी ने बड़े दुःखी आवाज़ में रेखा जी से कहा- – – – – देखिये बहन जी मै अभी कुछ भी कहने की हालत में नहीं हूँ। मैं अमित के पापा से बात करके आपको कल तक बताती हूँ”। और फ़िर रात भर आशा जी को नींद नहीं आई उन्होंने अपने पति से सलाह मशवरा किया। पहले तो वे साफ़ मना करते हुए बोले- – – – – ” नहीं-नहीं अरे भला ऐसा कहीं होता है ? कि बड़े भाई का रिश्ता तोड़ कर छोटे से जोड़ दिया जाये। तुमने देखा नहीं अमित को? वो रूचि से मिलने के बाद कितना ख़ुश रहता है”। आशा जी बोली- – – – – – अब कर भी क्या सकते हैं। पुरानी पहचान वाले लोग है। और फ़िर वो ऐसा जानबूझ कर थोड़े ही न कर रहें है। रेखा जी बता रही थी। कि इस शादी से हमारे अमित को ही नुक्सान है। मेरे कहने का मतलब समझ रहे है, न आप” ? कुछ देर तक शांत रहने के बाद गौतम जी ने हामी भर दी और कहने लगे कि – – – – – – “चलो अब क्या ही कर सकते हैं। जैसी प्रभु की इच्छा। हम कल ही शेखर की कुंडली लेकर प्रदीप जी के घर जाते हैं। तुम सही कहती हो पुरानी पहचान के लोग हैं। इतना तो मान रखना ही पड़ेगा”।

फ़िर दूसरे दिन अमित को बताएं बगैर दोनों पति-पत्नी शेखर की कुंडली लेकर रुचि के घर पहुंचे। वहां पर शास्त्री जी पहले से ही मौजूद थे। उन्होंने जैसे ही कुंडलियों का मिलान किया। उनके चेहरे पर एक बड़ी मुस्कान छा गई। और वहबड़ी प्रसन्नतापूर्वक बोले- – – – – “उत्तम अति उत्तम आहा कितनी अच्छी जोड़ी मिली है। यह जोड़ी ऐसी जोड़ी होगी जैसे कि स्वर्ग से बनकर आई हो। मेरी मानिए तो देरी मत कीजिए। चट मंगनी और पट ब्याह कर दीजिए। बिटिया लड़के के लिए अति भाग्यशाली है”। पहले तो आशा जी और प्रदीप जी का चेहरा लटक गया कि अब बड़े बेटे का सामना कैसे करेंगे फ़िर कुछ देर चुप रहने के बाद दोनों बोले- – – – – देखिए इतनी जल्दी बाजी ठीक नहीं ? यह बात कोई छोटी बात तो है,नहीं ? पहले हम अपने बड़े बेटे की राय लेते हैं। वह क्या कहता है। छोटे से भी पूछना होगा। फ़िर आपको जवाब देते हैं”। इतना कहकर दोनों वापस घर जाने के लिए उठे और कहा- – – – – “अच्छा अब हम हमें इजाजत दीजिए आपको एक-दो दिन में जवाब देते हैं”।

और जैसे ही वे दरवाजे से बाहर जाने लगे। तो वैसे ही शेखर का फ़ोन आया गौतम जी ने फ़ोन पर बात की और बोले- – – – – “बेटा ज़रा हम किसी काम से बाहर आए हैं”। घर पहुंच कर बात करेंगे। पर शेखर कहां मानने वाला था ? उसे तो अपने पिता को कुछ बताना था। जो बेहद ज़रूरी था। वह अपने पिता से बोला – – – – – “अरे पापा आपके घर पहुंचते-पहुंचते तो ख़बर बासी हो जाएगी। आपको पता है ? मेरे हाथ में इस वक्त क्या है ? मेरे हाथ में प्रमोशन लेटर है। पापा मेरा प्रमोशन हो गया है। अब आपका बेटा लेफ्टिनेंट कर्नल बन गया है। क्यों है, न दमदार ख़बर” ? गौतम जी को यकीन नहीं हो रहा था। कि यह सब क्या हो रहा है ? अभी पिछले ही साल तो इसका प्रमोशन हुआ था। उसके बाद कम से कम दो-तीन साल लगते हैं। अगला प्रमोशन मिलने के लिए कहीं यह कुंडली मिलान का प्रभाव तो नहीं ? कहीं सच में रुचि शेखर के लिए लकी तो नहीं पता नहीं ? अचानक से गौतम जी को क्या हुआ दोबारा अंदर आए। और प्रदीप जी का हाथ थामते हुए बोले- – – – – “प्रदीप जी हमें यह रिश्ता मंजूर है। आप शादी की तैयारी कीजिए। अगले साल शादी है। और हां उससे पहले हमें अपने बड़े बेटे के लिए एक अच्छी सी लड़की देखनी है। उसमें आप भी हमारी मदद कर करनी होगी। दोनों शादियां एक साथ करते हैं”।

दोनों परिवार को इस बात की भनक तक न थी। कि रुचि और अमित एक दूसरे के को कितना चाहने लगे हैं। दोनों के माता-पिता ने एक बार भी बच्चों की राय जानने की कोशिश तक नहीं की।

फ़िर जब शाम को रूचि कॉलेज से घर आई तो घर में घुस्ते ही बोली- – – – – “माँ बड़े ज़ोरो की भूख़ लगी है। प्लीज़ आप जल्दी से अच्छी सी कॉफ़ी बना दीजिए।और साथ में आपके हाथों की स्पेशल मेथी वाली मट्ठियाँ भी ऱख देना मै अभी चेंज करके आती हूँ”। रेखा जी बोली- – – – – “ठीक है, बेटा। तू जल्दी से फ़्रेश होकर आ साथ में कॉफ़ी पियेंगे। और हाँ मुझे तुमसे कुछ ज़रूरी बात भी करनी है”। रूचि ने अपनी माँ के साथ बैठकर कॉफ़ी का मज़ा लिया। और जैसे ही आशा जी उससे कुछ कहती एकदम से रूचि के फ़ोन की घंटी बजी सामने से अमित का फ़ोन था। जैसे ही रूचि ने फ़ोन उठाना चाहा आशा जी तुरंत रूचि के हाथ से फ़ोन छीनते हुए बोली- – – – – “बेटा ये क्या जब देखो फ़ोन पकड़े बैठे रहती हो। रखो इसे एक तरफ़ मुझे तुमसे कुछ ज़रूरी बात करनी है”। रूचि शर्माते हुए बोली- – – – – “माँ बस एक मिनट के लिए दो न फ़ोन वो अमित जी का फ़ोन है। शायद कुछ काम की बात होगी”। रेखा जी तंज भरे अंदाज़ में बोली- – – – – “जानती हूं कि अमित का फ़ोन है। इसी लिए मना कर रही हूँ। और वैसे भी मुझे अमित और तुम्हारे बारे में ही ज़रूरी बात करनी थी”। रूचि घबराकर बोली- – – – – “क्यों माँ क्या बात हो गई “।

रुचि को अपनी माँ की बातों में एक अजीब सी नाराजगी लगी। अपनी माँ के पास बैठ कर उनका हाथ थामते हुए रूआ सी आवाज़ में बोली- – – – – “मम्मी क्या बात है ? आप आज इतनी उखड़ी उखड़ी क्यों हो ? मैं तो बस अमित से ही बात करना चाह रही थी”। रुचि की मम्मी भावुक होकर उसके सर पर हाथ फेरते हुए बोली- – – – – “नहीं बेटा मेरी तुझसे कोई नाराजगी नहीं है।नाराज़गी तो मुझे मेरी किस्मत से है। उसने हमें बहुत बड़ी दुविधा में डाल दिया है”। मम्मी को रोता देख रुचि घबरा गई। और अपनी मम्मी की तरफ़ पानी का गिलास बढ़ाते हुए बोली- – – – – “ये लो मम्मी पानी पी लो। और थोड़ा रिलेक्स हो जाओ”। रेखा जी ने एक घूंट पानी पिया पीकर रख दिया। रूचि अपनी मम्मी से सवाल करते हुए बोली- – – – – “अब बताओ मम्मी आख़िर ऐसी क्या बात है ? तुम इतनी परेशान क्यों हो” ? रुचि की मम्मी उसका हाथ थामकर रूचि से वनती करते हुए बोली- – – – – “मेरी गुड़िया रानी आज अगर मैं तुझे कुछ मांगू तो, तुम मना तो नहीं करेगी न ? रुचि को पहले तो थोड़ा अजीब लगा। पर फ़िर वह बात को संभालते हुए बोली- – – – – “बोलो न क्या बात है ? सब आपका ही तो दिया हुआ है। चलिए मेरी हर सांस आपके नाम। अब तो बोलो की आखिर बात क्या है”? अब आगे बताइए तो क्या बात है। मेरी ड्रामा क्वीन”

तब रुचि की मम्मी ने रुचि से कहा- – – – – “वादा कर में जो मांगू तू देगी”। अब रुचि का को थोड़ा अजीब लगा रुचि घबराकर बोली- – – – – मम्मी साफ-साफ कहो आखिर बात क्या है। यू जलेबी की तरह गोल-गोल मत घुमाओ”। रेखा जी बोलीं- – – – – “रुचि वादा कर आज के बाद तुम अमित को फ़ोन नहीं करोगी ?और न ही उससे मिलोगी”। रूचि को लगा की शयद मम्मी नहीं चाहती कि शादी से पहले अमित और उसका ज़्यादा मिलना जुला हो। रूचि अपनी मम्मी को समझते हुए बोली – – – – – “ओहो मम्मी तुम भी क्या दादियों वाली बातें करती हो आजकल सब चलता है। अब तुम ही बताओ कि शादी से पहले हम दोनों एकदूसरे को अच्छी तरहं से जान ले तो इसमें क्या बुराई है” ? आशा जी बैचन भरी आवाज़ में बोली- – – – – कैसी शादी किसकी शादी देख़ रूचि बेटा अब मैं तुझ से कैसे कहूँ पर कहना भी ज़रूरी है। तू अमित को भूल जा अमित और तेरी शादी कैंसिल हो गई है”। मम्मी के मुंह से यह सारी बातें सुनकर रुचि एकदम से अपनी मम्मी का हाथ झड़कते हुए पीछे की और चली गई। और बोली- – – – – “यह क्या कह रही हैं,आप ? आप होश में तो हो ? आप लोगो ने ही तो रिश्ता पक्का किया है, हमारा ? अगले साल शादी है, हमारी”?

रुचि की मम्मी अपना सर पकड़ते हुए बोली- – – – – जानती हूं बेटी, सब पक्का हो गया था। और हम सब लोग बहुत ख़ुश भी थे। पर अब हम भी क्या करें ? मज़बूर है, हम ? रूचि अपनी मम्मी की बात काटते हुए बीच में बोल पड़ी- – – – “ऐसी भी क्या मज़बूरी आन पड़ी मम्मी कि आपने इतना बड़ा फ़ैसला ले लिया”? क्या वो मज़बूरी मेरी ख़ुशी से बढ़कर है”? रेखा जी रूचि को समझाते हुए बोली- – – – – “बेटा हम तेरे दुश्मन नहीं है, तू ख़ुश रहे इसी लिए मज़बूरी मे ये फ़ैसला लिया है, हमने”। रूचि झल्लाते हुए बोली – – – – – “मम्मी आप कब से मज़बूरी, मज़बूरी का राग गाए जा रही हो आख़िर ये कौन सी मज़बूरी है। ज़रा मुझे भी तो पता चले”। रेखा जी रूचि को शांत करते हुए बोली- – – – – “देख रूचि अब मे तुझे साफ़ शब्दो में बताने जा रही हूँ। मेरी बात को ध्यान से सुनना। कल पुरोहित जी घर आये थे। उनकी जानकारी के अनुसार अमित और तुम्हारी कुण्डली ज़रा भी मेल नहीं खाती । इस लिए ये शादी तो हो नहीं सकती”। रूचि बोली- – – – – “क्या बकवास है। कि कुण्डली मेल नहीं खा रही है ? मैं नहीं मानती कुण्डली, वुडली को हम दोनों के विचार आपस में मेल खाते हैं। मेरे लिए इतना ही काफ़ी है”।

रुचि की मम्मी उसे समझाते बोली- – – – – “बेटा बाद गंभीर है। समझने की कोशिश कर। पुरोहित जी बड़े ही जानकार हैं। और फ़िर हम तेरे दुश्मन थोड़े ही न है ? हम यह सब तेरी भलाई के लिए ही कर रहे हैं। भूल जा बेटा अमित को”। रूचि रोते हुए बोली- – – – – “मम्मी समझ तो तुम नहीं रही हो ? मैं कैसे समझाऊं” रुचि छल्लाकर अपने पापा को पुकारते पुकारने लगी- – – – – “पापा देखो न मम्मी को क्या हो गया है ? न जाने क्या अनाप-सनाप कहे जा रही है”? तब रुचि के पापा वहां आए और रुचि दौड़कर उनके सीने से लिपटकर रोने लगी। और सिसकते हुए बोली – – – – – – “पापा मम्मी को देखिए न क्या कहा जा रही है? रुचि के पापा रुचि को सोफे में बैठाते हुए बोले- – – – – “बेटा मुझे सब मालूम है। देखो अपना मन पक्का कर लो। अभी तो तुम्हारी मम्मी ने तुम्हें आधी अधूरी बात बताई है। पूरी बात मैं तुम्हें बताता हूं। प्लीज बेटा जरा ध्यान से सुनना”।

रुचि को कुछ समझ नहीं आ रहा था। कि आख़िरकार यह सब चल क्या रहा है ? रुचि के पापा उसके सर पर हाथ फेरते हुए बोले- – – – – “मेरी बच्ची हमनें ज़ल्दबाज़ी में तेरा रोका कर तो दिया। पहले पुरोहित जी से राय ले लेनी चाहिए थी। अभी परसों ही उन्हें तुम्हारी और अमित की कुंडली दिखाई तो बिल्कुल भी मैच नहीं हो रही है। पर अमित के छोटे भाई शेखर के साथ तुम्हारी कुण्डली बहुत मेल खाती है। पुरोहित जी बोल रहे थे। कि इनकी जोड़ी सोने पर सुहागा रहेगी” पापा की बात सुनकर रुचि एकदम से भड़क उठी और बोली- – – – – “यह आप क्या कह रहे हैं ? पापा, आप होश में तो हो ? अमित का छोटा भाई है, वो ? यह कैसे हो सकता है”? रुचि के पापा रुचि से बोले- – – – – जनता हूँ। अमित से छोटा है”। पर तुझ से तो पुरे दो साल बड़ा है”। रूचि बोली- – – – – “मैं कुछ नहीं जानती बस आप लोग मुझे माफ़ कर दीजिये ये सब मुझ से नहीं होगा”। रूचि के पापा उसका हाथ पकड़कर गिड़गिड़ाने हुए बोले- – – – – “देख बेटा सारी बिरादरी को पता है। कि तू श्रीवास्तव परिवार की बहू बनने जा रही है। अब अगर रिश्ता तोड़ते हैं। तो सब तुम पर ही उंगली उठाएंगे। अमित के घर वाले भी मान गए हैं। तुम शेखर से शादी के लिए हाँ कर दो मान जाओ बेटी”। रूचि अपने पापा का हाथ झटकते हुए रोती हुई अपने कमरे मे चली गई।

क्या रूचि अपने घर वालो की मज़बूरी को समझ पायेगी या फ़िर अमित को पाने के लिए कोई और क़दम उठएगी ! आगे की कहानी जानने के लिए हमसे जुड़े रहे और कहानी का अगला भाग ज़रूर पढ़े- – – – – – – – – –

जब जोड़ियाँ बदल गईं भाग –3

और उधर ठीक वैसे ही हालत अमित के घर पर भी थे। जैसे ही अमित को पूरी बात बताई गई तो वो एकदम से भड़क उठा और बोला- – – – -माँ पापा ये आप लोगो को क्या हो गया है आप आज के ज़माने में भी ये कुंडली वग़ैरा पर विश्वाश करते हो?? इस पर आशा जी अमित को समझते हुए बोली देख बेटा बात यहाँ सिर्फ कुंडली की नहीं है। बात यहाँ तेरी सलामती की है। पुरोहित जी का कहना है की रूचि के ग्रह तुझ पर भरी है। हम नहीं चाहते की कल तेरे साथ कोई अनहोनी हो”। अमित बोला- – – – – – -“मुझे कोई फ़र्क नहीं पड़ता। रूचि के साथ शादी करने के बाद चाहे मेरी जान ही क्यों न चली जाए। पर, शादी तो मे रूचि से करूँगा”। अमित के मुँह से ये सब बातें सुनकर अचानक से गौतम जी जमीन पर धड़ाम से गिर पड़े। आशा जी जोर से चिल्लाई- – – – – “अमित देख तो पापा को क्या हो गया। जल्दी से गाड़ी निकाल इन्हे डॉक्टर के पास ले जाना पड़ेगा”। अमित भी पापा की हालत देखकर घबरा गया। और उसने आनन -फानन में गाड़ी निकाली औरअपने पापा को बेहोशी की हालत में गाड़ी में बैठाया, और सीधा अस्पताल पहुँचा। और घबराते हुए डॉक्टर से बोला- – – – – “डॉक्टर देखिए न पापा को क्या हो गया कुछ बोल ही नहीं रहे है। डॉक्टर ने उनकी नब्ज़ टटोली फिर तुरंत उन्हें। I.C.U में ले गए। थोड़ी देर बाद डॉक्टर बाहर आये। अमित ने डॉक्टर से पूछा – – – – – डॉक्टर पापा कैसे है? और क्या हुआ है उन्हें” ?? डॉक्टर अमित को समजते हुए बोले देखिये लगता है। कि इन्हे किसी बात का ग़हरा सदमा लगा है। इन्हें फ़र्स्ट हार्ट अटैक आया था। अभी तो खतरे से बाहर हैं। पर कोशिश कीजियेगा कि आगे से इनके सामने कोई भी ऐसी बात न हो जिससे की इनके दिल पर ज़ोर लगे।

अब अमित अपने पापा की हालत का ज़िम्मेदार ख़ुद को मानने लगा। और तभी उसने अपना फ़ैसला बदल लिया और अपने माता-पिता की बात मानकर उसनें रुचि से दूर होने का मन बना लिया। वहीं आशा जी जो कि अस्पताल के बैंच पर बदहवास सी बैठी हुई थी। अमित उनके पास गया और उनका हाथ थामते हुए बोला- – – – – – – आई एम सॉरी माँ ये सब मेरे कारण हुआ है। आशा जी रोते हुए बोली- – – – – नहीं बेटा इसमें तेरा कोई दोष नहीं है। सब तक़दीर का खेल है। मुझे अपने पापा के पास ले चल मुझे उनसे मिलना है”। अमित माँ को गौतम जी के पास ले गया। अब उन्हें होश आ चुका था। अमित अपने पापा का हाथ थामते हुए बोला- – – – “पापा आप जल्दी से ठीक हो जाइए। फ़िर आप जो कहेंगे मैं वही करूँगा”। फिर थोड़ी देर बाद डॉक्टर राउंड पर आये और बोले—– अभी ये ठीक हैं। पर फ़िर भी हम इन्हें आज यही रहने की सलाह देंगे। कल तक कुछ इनके कुछ टेस्ट की रिपोर्ट्स आ जाये तो कल इन्हें डिस्चार्ज कर देंगे”। आशा जी अमित से बोली- – – – – ” तुम्हारे पापा की बिमारी की ख़बर प्रदीप जी को दे की नहीं” इस पर अमित ने साफ़ मना करते हुए बोला- – – – – रहने दो माँ अब पापा ठीक हैं। न, हमारे लिए ये ही काफ़ी है। बेकार में सभी पापा से मिलने आएंगे सौ सवाल करेंगे कैसे हुआ क्या हुआ। और मैं नहीं चाहता कि अब पापा के दिल को ज़रा सी भी ठेस पहुँचे। रही बात शेखर की तो उसे भी अभी मत बताना घर से दूर रहता है। बेकार परेशान हो जाएगा। फ़िर दूसरे दिन अस्पताल की सारी फोर्मेलटिस पूरी करने के बाद गौतम जी को डिस्चार्ज कर दिया गया।

वहीं रात को रुचि ने अमित को फ़ोन किया। और उससे शिकयत करते हुए बोली- – – – – – – – “थैंक गॉड अमित फाइनली तुमने मेरा फ़ोन तो उठाया मे कल से तुम्हें न जाने कितनी बार फ़ोन कर चुकी हूँ पर तुम हो कि मेरा फ़ोन ही नहीं उठाते हो”। अमित बोला—– “वो मुझे कुछ ज़रूरी काम था”। रूचि अमित को ताना मारते हुए बोली- – – – – – क्या कहा तुमने ज़रूरी काम ?क्या वो काम मुझसे भी ज़्यादा ज़रूरी था?? अरे तुम्हें कुछ ख़बर भी है की हमारी लाइफ में चल क्या रहा है। हमारा रिश्ता खतरे मे है। इसे बचाने की बजाए तुम दूसरे ज़रूरी काम कैसे कर सकते हो। प्लीज़ अमित कुछ करो अमित मे तुम्हारे बिना जीने की सोच भी नहीं सकती। तुम्हारे भाई से शादी करना तो दूर की बात है”। तो सामने से अमित ने रूचि को समझाते हुए बोला – – – – – – हाँ रुचि मुझे सब मालूम है। मेरी मानो तो तुम भी अपने मम्मी पापा का कहा मान लो”। रूचि अमित की बात को पकड़ते हुए बोली- – – – – “एक मिनट अभी तुमने ये क्या कहा कि मैं भी अपने घर वालो की बात मान जाऊं? यानि कि तुम मुझे भूलने के लिए तैयार हो ? तुम तो बड़े धोखेबाज़ निकले”। अमित रूचि को समझाते हुए बोला- – – – – “अब मे तुम्हें कैसे बताऊँ रूचि ये सब मेरे लिए भी आसान नहीं था। पर मैं भी क्या करता पापा हार्ट पेशेंट। अब अगर मेरे कारण कल उन्हे कुछ हो जाता तो ? मैं मज़बूर हूँ”। रुचि अमित पर गुस्सा करते हुए बोली- – – — “मैं कुछ नहीं जानती इन सब बातों से मुझे कोई फ़र्क नहीं पड़ता तुम तो बस मेरी बात गौर से सुनो मैं कल कॉलेज के लिए निकलूंगी तो बैग में दो -चार कपड़े लेकर निकलूंगी। तुम भी कोई बहाना बनाकर आ जाना। फ़िर हम दोनों मंदिर में शादी कर लेंगे”। अमित रुचि को समझाते हुए बोला- – — – “बचपना छोड़ दो रुचि देखो मैं अपने माता-पिता के खिलाफ़ जाने की सोच भी नहीं सकता। अच्छा यही होगा कि तुम मुझे भूल जाओ”।

इतने में रुचि अमित को ताना मारते हुए बोली- – – – – चलो ठीक है। भूल जाती हूं, तुम्हें। पर, सोच लो कि अगर कल मैं तुम्हारे भाई की पत्नी बनकर तुम्हारे घर आ गई तो क्या तुम सहन कर पाओगे देख पाओगे मुझे उसके साथ” अमित रुचि को सफाई देते हुए बोला- – – – – देखो रुचि मैंने मन बना लिया है। अब मेरे इस फैसले को भगवान भी बदल नहीं सकते” रुचि भी अमित को करारा जवाब देते हुए बोली- – – – – तो फिर ठीक है। अब मेरी भी यही ज़िद है। कि मैं तुम्हारे भाई से शादी करके तुम्हारे ही घर दुल्हन बनाकर आऊंगी”, ऐसा कह कर रुचि ने झट से फोन काट दिया।

रुचि, अमित की मज़बूरी को समझ नहीं पा रही थी। उसके मन में अमित के प्रति जहर भरता जा रहा था। और उसने झट से शेखर को फ़ोन मिलाया और शेखर से पूछा कि- – – – – “तुम्हें इस बारे में पता है। कि अमित और मेरी कुंडली नहीं मिली ? क्या तुम इन सब अंधविश्वास को मानते हो?? इधर शेखर के विचार रुचि से काफ़ी मिलते थे। वह रुचि से बोला- – – – – नहीं मैं इन बेकार की बातों पर विश्वाश नहीं करता। हाँ आज शाम को ही माँ का फ़ोन आया था। मुझे सब बताया उन्होंने। रूचि बोली- – – – – “फिर तो यह भी पता होगा कि अब तुम्हारी और मेरी जोड़ी मिलाई जा रही है। देखो अमित ने तो अपने क़दम पीछे कर लिए हैं। मैं तो उसके साथ घर से भागने को भी तैयार थी। और अब मैं यह नहीं चाहती, कि, तुम्हारे साथ कोई नाइंसाफी हो तुम अब मुझे साफ़- साफ़ बताओ कि कहीं तुम किसी और लड़की को पसंद तो नहीं करते हो”?? शेखर बोला- – – – – नहीं रुचि ऐसी तो कोई बात नहीं है। पर हाँ भाई से थोड़ी नाराजगी है। कि उन्होंने ना तुम्हारे बारे में कुछ सोचा और ना ही मेरे बारे मे – – – – – –

शेखर की इस बात पर रुचि मन ही मन ख़ुश हो गई। वह जानती थी। कि कहीं न कहीं शेखर भी अमित के फैसले से नाराज़ है। उसने अमित से बदला लेने के लिए शेखर को मोहरे की तरहं इस्तेमाल करने की सोची। उसने ततुरंत शेखर के कान भरने शुरू कर दिए। और बोली- – – – – “चलो मैं तो उसकी ज़िंदगी में चंद महीनो पहले ही आई थी। पर तुम्हारा क्या ? तुम्हें तो वह बचपन से जानता है। क्या तुम्हारी राय भी उसके लिए कोई मायने नहीं रखती ? उसने तो जैसे मुझसे अपना पल्ला झाड़कर तुम्हें पकड़ा दिया। अच्छा छोड़ो शेखर एक बात बताओ ? क्या तुम इस शादी के लिए राजी हो” ?
शेखर बोला- – – – – “तुम बताओ कि तुम क्या चाहती हो” ? रूचि बोली- – – – – – “अब मैं क्या बोलूं मुझे तो राजी ही होना पड़ेगा न ? ऐसा करो तुम भी हाँ बोल ही दो बोल दो”। सामने से शेखर बोला- – – – – “तो ठीक है। फ़िर मेरी तरफ़ से भी हाँ ही है”।

शेखर और रुचि की हाँ सुनने के बाद अब दोनों के घर वालों जैसे जान में जान आ गई हो !! कि आख़िरकार उलझी हुई बात सुलझ ही गई। धीरे-धीरे समय गुजरता गया। घर में शादियों की तैयारी होने लगी। लड़के वाले डबल तैयारी करने लगे। क्योंकि भले ही अमित के लिए लड़की देखना अभी जारी था। पर शादी तो साथ ही होनी थी। इसलिए घर मे शादी की तैयारियाँ तैयारी जोरों शोरों से चल रही थी। और बस ऐसे ही दिन महीने गुजरते चले गए।

फिर एक दिन अमित की बुआ ने अमित के लिए एक रिश्ता बताया। अमित के माता-पिता ने लड़की की फ़ोटो देखी और उन्हें लड़की भ गई। अमित की माँ अमित को फोटो देते हुए बोली- – – – – बेटा देख तो लड़की कैसी है? अमित का जवाब था,- – – – – “माँ अब छोड़ो ना यह देखना दिखाना आपको जो ठीक लगे वह करिए” अमित की माँ बोली- – – – -” अच्छा बेटा चल तू फोटो मत देख पर एक बार लड़की से मिल तो ले” अमित ने साफ़ मना करते हुए बोला—– ” प्लीज़ माँ अब मुझसे यह सब दोबारा रिपीट ना होगा समझो बात को” अमित की माँ अमित को समझाते हुए बोली- – – — “बेटा मैं तेरी हालत तेरी फीलिंग को समझ सकती हूं। पर ज़रा उस लड़की के बारे में भी तो कुछ सोच कि उसके भी तो कुछ अरमान होंगे वह तो तुझे एक बार मिलना चाहती होगी न ! और यह सब हम लोग जानबूझकर तो नहीं कर रहे हैं,न, बेटा? यह सब ऊपर वाले की मर्जी से हो रहा है।

आख़िरकार अमित अपनी माँ की बात को टाल न सका और लड़की से मिलने के लिए तैयार हो गया उसने लड़की को ठीक से देखा तक नहीं और हामी भर दी और रिश्ता पक्का हो गया इस बार अमित की माँ ने कुंडली मिलान करवाने के बाद ही बात को आगे बढ़ाया था। अब शादी को केवल एक ही महीना बचा था। शेखर भी छुट्टी आ गया था। पर रुचि अभी भी अमित को और उसकी बेवफाई को भुला नहीं पाई थी। वह जानबूझकर बार-बार शेखर को फ़ोन करती और घंटे बातें करती इधर शहर भी अपने भाई से थोड़ा कटा-कटा सा रहता अब दोनों भाइयों में पहले वाला प्यार व शरारती नहीं होती थी।

एक दिन आशा जी यानी अमित की मम्मी ने रुचि एवं संध्या के घर फ़ोन किया और कहा कि बहू के लिए शादी का जोड़ा लेना है। तो दुकान का एड्रेस देते हुए बोली- – – – – “बेटियों को लेकर आ जाइएगा अपनी पसंद का जोड़ा ले लेंगी। फ़िर क्या था ! सभी पहुंच गए कपड़ों के शोरूम, आज तो जैसे रुचि के मन की मुराद पूरी हो गई हो क्योंकि वह यही तो चाहती थी ! कि कब अमित से उसका सामना हो और वह उससे बदला ले। और वह यह भी देखना चाहती थी। कि उसकी होने वाली वाइफ संध्या आख़िर दिखती कैसी है?

जैसे ही सभी लोग मिले। एक दूसरे का हाल -चाल जानने लगे। वहीं अमित को चिढ़ाने के लिएशेखर और रुचि एक दूसरे को शरारत भरी नजरों से देखने लगे। पहले तो अमित को बुरा लगा फ़िर उसने अनदेखा कर दिया। थोड़ी देर बाद संध्या भी अपने माता -पिता संग वहां पर पहुंची। और जैसे ही रूचि की नज़र संध्या पर पड़ी तो रुचि की आंखें फटी की फटी रह गई। संध्या बेहद खूबसूरत थी। यूं तो संध्या बेशक बहुत खूबसूरत थी। लेकिन एकदम सादगी के साथ रहती थी। वह भी काफी पढ़ी लिखी और कॉलेज में लेक्चरर थी। वैसे तो शेखर अब अमित से ज्यादा घुलता-मिलता नहीं था। पर आज वह भी जैसे अमित से बदला लेने के मूड में था। और उसने आव देखा न ताव और संध्या को अपना परिचय देते हुए बोला- – – – – “हेलो जी मैं हूं आपका एकलौता देवर नाम है, शेखर वैसे आप बहुत खूबसूरत हैं। पर मेरी रुचि से थोड़ा काम ! और हाँ ! अब मैं आपकी ज्यादा तारीफ़ नहीं करूंगा एक साल पहले किसी की शिद्दत के साथ तारीफ़ की थी। तो नतीजा आज वो मेरे साथ है”!!

वहां पर उपस्थित सभी लोग हंस पड़े। लेकिन अमित को यह बात बिल्कुल अच्छी नहीं लगी। और संध्या को भी कुछ समझ में नहीं आ रहा था। तब रुचि सामने आई और अपना परिचय देते हुए बोली- – – – – “हेलो– मैं रुचि आपकी होने वाली क्या ? अब तो हो ही गई समझो। मैं आपकी देवरानी,– रुचि आप शेखर की बात का बुरा मत मानिएगा। वो क्या है, न कि उसे जरा मज़ाक करने की आदत है। वो असल में पहले अमित और मेरा रिश्ता पक्का हो गया था। पर कुंडलिया नहीं मिल पाई, इस पर संध्या ने बड़ी सादगी से जवाब दिया – जी वो मुझे पता है। मम्मी जी ने पहले ही बता दिया था, मुझे। इसलिए नो प्रॉब्लम मुझे बुरा नहीं लगा”। – – – – – – – –

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