मेरी सोच, मेरे विचार

आइना _ए _ज़िंदगी

आइना ऐसा ज़िंदगी की सच्चाई को बयां करे जैसा

Aaghaz_e_nisha वेबसाइट के इस पेज़ में आप सभी प्रिय पाठकों का हार्दिक स्वागत है।

प्रिय पाठको हम सभी की अपनी -अपनी एक सोच होती है, विचार होते हैं। हम अपने आसपास के वातावरण बहुत कुछ सीखते हैं। हमें सबक मिलते हैं। कुछ दृश्य हमे ऐसे दिखाई देते हैं। कि हम उन्हें देखकर ख़ुश हो जाते हैं, एकदम खुश़नुमा। तो कुछ दृश्य हमें दुखी कर जाते हैं। बस यही तो ज़िंदगी का फेर बदल है। सीखने का नाम ही ज़िंदगी है। हम अपनी छोटी-छोटी बातों से छोटी-छोटी चीजों से छोटी-छोटी हार जीत से तो कभी अपने से छोटों से तथा कभी अपने से बड़ों से हम कुछ ना कुछ सिखाते रहते हैं। तो ऐसी ही बातें कुछ मेरे मन में कभी-कभी उमड़ जाया करती है। कभी-कभी क्या अक्सर उमड़ा करतीं हैं। जिन्हें मैं अपनीं लेखनी के माध्यम से आप तक पहुंचाना चाहती हूं। मैं एक लेखिका हूं, तो किसी भी चीज़ को देखकर मेरे मन में कुछ भावनाएं उमड़ने लगती है, बस उन्हीं से प्रेरित होकर मैंने अपने मन की कुछ बाते व अपनी सोच यहां पर आपके समक्ष रखी है। और साथ ही आशा करती हूं। कि आपको मेरे यह लेख अवश्य पसंद आयेंगे! अगर आपको मेरे द्वारा लिखे गए लेख पसंद आएं हो, तो कृपा कर कमेंट ज़रुर कीजिए। मेरी वेबसाइट को अपना क़ीमती समय देने के लिए सहेदिल से आपका आभार व्यक्त करती हूं! धन्यवाद!
राधे राधे 🙏🙏


विशेष जानकारी –आप सभी की जानकारी के लिए बता दूँ। कि यह सभी लेख स्वयं मेरे द्वारा लिखित है। इसमें मेरे सिवाए अन्य कोई दूसरा भागीदार नहीं है। ये सभी लेख सिर्फ़ और सिर्फ़ पाठकों के मनोरंजन हेतु प्रस्तुत किए गए है।

क्या कहूं? कहां से कहूं? पर कहना भी जरूरी है, न जाने कौन सा कीड़ा काट खाया है, हमें! कि मुझे लिखने का जुनून है।खिड़की के पास दो पल क्या बैठी बाहर नज़र पड़ी। तो, देखा कि, बाहर मस्त हवा चल रही थी। मार्च का महीना शाम की गुनगुनी सी ढ़लती धूप थी। रस्सी पर कपड़े लहरहा रहे थे। ऐसा लग रहा था, कि मानो वे मंद मंद मुस्कुरा रहे हों । दिन भर की कड़ी धूप थी। अचानक ठंडी बयार चलने लगी, तो मानो जैसे वह भी मुस्कुरा रहे थे। अच्छा, एक बात और गौर कीजिएगा! कभी देखना गर्मी की भरी दोपहर में कपड़ों को सूखने डालो तो, थोड़ी देर बाद में रूआं से दिखते हैं। उनके रंग भीउड़े-उड़े से रहते हैं। और वे पापड़ से नज़र आते हैं!

और भैया सर्दी के मौसम का कहना ही क्या! कभी सर्दी के मौसम में देखना जब हफ्तों भर सूरज के दर्शन नहीं होते। तो बेचारे ये कपड़े सिले-सिले से ही पड़े रहते हैं। ऐसा लगता है। कि मानो इन्हें भी सर्दी ज़ुकाम हो गया है। और कभी जब सर्दी में मस्त कड़क धूप निकली हो, और सूर्य की किरणें सीधे इन कपड़ो पर पड़ती है। तो हर एक कपड़ा अपने आप में कमाल सा दिखता है। बस अंदर से फील करने की ज़रूरत है! जीवन के हर एक हिस्से में कहानी है,

चलिए अब जब कपड़ों की बात चल ही गई है! तो, हर किसी के साथ तो मैं नहीं कह सकती लेकिन मिडिल क्लास के साथ यह ज़रूर होता होगा और हर किसी के साथ होता होगा, कि जब भी कोई नया कपड़ा आता है। तो उसको कैसे सहेज कर रखा जाता है, एकदम से उसको संभाल संभाल कर शॉपिंग बैग से निकाला जाता है। उसके बाद उसको पहनने के बाद बड़ी सावधानी के साथ कुछ खाया पिया जाता है। कपड़ों को उतारने के बाद इधर-उधर नहीं फेंका जाता है।

और जैसे ही उसको पहली बार धोने की बारी आती है, तो उसके लिए एक खास डिटर्जेंट मंगाया जाता है, जैसे ईजी वॉश में धोया जाता है। उसके बाद उसको मशीन में ड्रायर भी नहीं किया जाता है, कि कहीं कपड़े को कोई चोट न पहुंच जाए, कपड़े सुखाने वाली रस्सी को बार-बार पोंछा जाता है! फ़िर बड़े प्यार से छांव में उसे सुखाया जाता है! और यह सिलसिला उसके साथ दो-तीन बार ही, हो पता है उसके बाद फिर उसको उसकी औकात दिखा दिया जाता है, वह सीधा मशीन के अंदर कपड़ों की ढ़ेरी में चला जाता है! और बेचारा कपड़ा अपने रूटीन में आ जाता है।

यह तो थी कपड़ों की कहानी ऐसी ही कईं रोचक कहानियों के साथ हमसे जुड़े रहे।

6. ये बाल धुप में सफ़ेद नहीं हुए

इंसान बूढ़ा नहीं होता है। बल्कि उसकी सोच बूढी होती है। अक्सर किसी बुज़ूर्ग व्यक्ति को बूढ़ा कहकर सम्बोधित किया जाता है। अब यहाँ गलत है। या सही ! इस चक्कर में न पढ़कर, हमें इस बात पर ग़ौर करना चाहिए कि – ये बुढ़ापा ऐसे ही थोड़े ही न आया होगा। बल्कि हम सभी के लिए सोचने वाली बात ये है, कि जितनी अधिक वयक्ति की उम्र होगी। उतना अधिक तज़ुर्बा होगा।

भई मेरा मानना तो यह है कि ,किसी भी उम्रदराज़ बुजुर्ग़ को, बूढ़ा कहने की बजाए तजुर्बेदार कहना उचित रहेगा। वो कहावत तो सुनी ही होगी -की ये बाल धूप मे सफ़ेद नहीं हुए है? या फ़िर हमने अब तक तुम से ज़्यादा दीवाली देखी है। ये कहावतें ऐसे ही नहीं बनी। इसके ज़रिए यह दर्शाया जाता है क . की जितनी अधिक उम्र होकि उतना अधिक तज़ुर्बा होगा।

आमतौर पर अक्सर ये देखा जाता है। की नियम के अनुसार इंसान रिटायर हो जाता है। और ये सही भी है काफी लम्बे समय तक काम करने के बाद कुछ वक़्त ख़ुद के लिए भी ऱखना चाहिए। अब ये हम पर निर्भर करता है की हम ,इसे किस तरह से देखते है।

मेरा मानना तो यही है की आप अपने काम से रिटायर रहिये। अपनी स्फूर्ति और आत्मविश्वाश को रिटायर मत होने दीजिये। जब तक अपने डैम पर चला जाये चलते रहिए। समय से पहले बुढ़ापे की लाठी मत खोजिए ? यदि आप सक्षम है।तो जन-सेवा में मन लगाइए। औरजितना संभव हो सके, इस सोच से दूरी बनाइये, कि कोई आपकी सेवा करे। जब तक सरीर साथ दे तब तक अपना कार्य स्वयं करें।

अब आप कहेंगे की सारी उम्र भाग-दौड़ में गुज़ार दी। की अब बुढ़ापे में भी आराम न करे ? ग़लत बल्कि हमे इसका विपरीत यहासोच रखनी चाहिए -कि सारी ज़िंदगी जीवन यापन की भाग दौड़ में गुज़ार दी क्यों न अब स्वयं को थोड़ा वक्त दिया जाए! सभी के लिए आज तक जीते आए अब खुद के लिए जिया जाए! सुबह कसरत कीजिए धर्म कर्म के कार्य कीजिए जरूरतमंदों को अच्छी सलाह दीजिए अंत समय के आनंद के लिए प्रभु की सेवा भजन कीजिए..

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