aaghaz_e_nisha वेबसाइट में आपका हार्दिक स्वागत है। चलिए सबसे पहले ब्लॉग क्या है। इसके के बारे में जाने।
ब्लॉग यानी कि एक ऑनलाइन सूचनात्मक वेबसाइट होती है। इसके अंतर्गत एक ब्लॉगर को अपने लेख के माध्यम से किसी एक विशेष विषय की नियमित रूप से जानकारी उपलब्ध करना होता है। होतख है। ब्लॉक को वेबलॉग के नाम से भी जाना जाता है। वेबलॉग दो शब्दों को मिलकर बना है। “वेब” +” लॉग”= वेबलॉग।
किसी भी ब्लॉग के अंतर्गत लेख, फोटो एवं बाहरी लिंक शामिल होते हैं।

आईना -ए -ज़िंदग़ी
“आइना ऐसा ज़िंदगी की सच्चाई को बयां करे जैसा”
Aaghaz_e_nisha वेबसाइट के इस पेज़ में आप सभी प्रिय पाठकों का हार्दिक स्वागत है।
प्रिय पाठको हम सभी की अपनी -अपनी एक सोच होती है, विचार होते हैं। हम अपने आसपास के वातावरण बहुत कुछ सीखते हैं। हमें सबक मिलते हैं। कुछ दृश्य हमे ऐसे दिखाई देते हैं। कि हम उन्हें देखकर ख़ुश हो जाते हैं, एकदम खुश़नुमा। तो कुछ दृश्य हमें दुखी कर जाते हैं। बस यही तो ज़िंदगी का फेर बदल है। सीखने का नाम ही ज़िंदगी है।
हम अपनी छोटी-छोटी बातों से छोटी-छोटी चीजों से छोटी-छोटी हार जीत से तो कभी अपने से छोटों से तथा कभी अपने से बड़ों से हम कुछ न कुछ सिखाते रहते हैं। तो ऐसी ही बातें कुछ मेरे मन में कभी-कभी उमड़ जाया करती है। कभी-कभी क्या अक्सर उमड़ा करतीं हैं। जिन्हें मैं अपनीं लेखनी के माध्यम से आप तक पहुंचाना चाहती हूं। मैं एक लेखिका हूं, तो किसी भी चीज़ को देखकर मेरे मन में कुछ भावनाएं उमड़ने लगती है, बस उन्हीं से प्रेरित होकर मैंने अपने मन की कुछ बाते व अपनी सोच यहां पर आपके समक्ष रखी है। और साथ ही आशा करती हूं। कि आपको मेरे यह लेख अवश्य पसंद आयेंगे! अगर आपको मेरे द्वारा लिखे गए लेख पसंद आएं हो, तो कृपा कर कमेंट ज़रुर कीजिए। मेरी वेबसाइट को अपना क़ीमती समय देने के लिए सहेदिल से आपका आभार व्यक्त करती हूं! धन्यवाद!
राधे राधे 🙏🙏
विशेष जानकारी –आप सभी की जानकारी के लिए बता दूँ। कि यह सभी लेख स्वयं मेरे द्वारा लिखित है। इसमें मेरे सिवाए अन्य कोई दूसरा भागीदार नहीं है। ये सभी लेख सिर्फ़ और सिर्फ़ पाठकों के मनोरंजन हेतु प्रस्तुत किए गए है।
ईश्वर का धन्यवाद करना बेहद ज़रूरी है !!

जैसा कि हम सभी जानते हैं। कि सुख दुःख जन्म मृत्यु आना जाना जीवन का एक अहम हिस्सा है। फिर भी हम सभी इस सच्ची से भागते फिरतें हैं। क्योंकि है। तो हम इंसान ही न। जब भी हम पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ता है। तो अक्सर हम उसे सहन नहीं कर पाते हैं। हम सोचते हैं। कि हमें सदा खुशियां ही मिलती रहे। हमारा जीवन बस यूं हीं सरलता से चलता रहे।
मैंने अक्सर यह देखा है। कि अक्सर बुरे समय में हम हर एक छोटी बड़ी बात क्र लिए ईश्वर को दोष देतें हैं। और अपनी परिस्थिति के लिए, ईश्वर को कोसते हैं। कि ऐसा क्यों हुआ, ऐसा क्यों किया, यह सब मेरे ही साथ क्यों होना था मैंने भी कई बार ईश्वर से शिकायत की हर छोटी बड़ी बात के लिए उन्हें कोसा भी और मुंह से यह तक भी निकल गया। कि भगवान-वागवान कुछ नहीं होता। मुझे नहीं करनी इनकी कोई पूजा इन पर विश्वास नहीं है। पर वो कहते ना है, कि हम चाहे जितना जतन कर ले उस ईश्वर से दूर भागने की परंतु चुंबक की तरहं खींचे चले जाते हैं, फ़िर से उसी के पास क्योंकि दुख की घड़ी में उससे बड़ा सहारा और कोई नहीं होता है।
अच्छा आपने कभी गौर किया है। कि जब बे-हिसाब खुशियां हमारे पास होती है। तब की हम हर पल उस ईश्वर का धन्यवाद करे है। तब तो हम बड़े गुमान से के साथयही कहतें हैं। कि मैंनें करोड़ो की प्रॉपर्टी ली है। मेरे पास महंगी कार है। या कुछ भी जो अच्छा किया। तब वह मैंने ही किया कभी यह कहा है। कि सब ईश्वर ने किया है। ब ईश्वर की देन है। और जब हमारे अपने ही कर्मों की वजह से ठीक इसी का विपरीत होता है। यानी हमारे ऊपर कोई भी विपत्ति आती है। या हमें कोई दुःख मिलता है। तो उस वक़्त हम सारा बिल ऊपर वाले पर फाड़ देते हैं। हम उस ईश्वर को से सवाल करतें हैं। कि तूने सब कुछ ठीक क्यों नहीं किया। कि तूने हमें इतनी बड़ी सज़ा क्यों दी?
कभी सोचा है। कि उस ईश्वर को कितनी तक़लीफ़ होती होगी। जब हर रोज़ करोड़ों लोग उसे कोसते होंगे। कभी सोचना कि, यदि हमारी गलती नहीं होने पर भी कोई हम पर बेमतलब आरोप लगाता है। तो, उस वक़्त हम मरने-मारने पर उतारू हो जाते हैं। सोचो उसे ईश्वर की क्या गलती उसने तो सारी सृष्टि की रचना की है। उस ईश्वर ने तो हमें बनाया है। फ़िर हम उसे क्यों कोसते हैं।हम यह क्यों भूल जातें है कि, हम सभी यहाँ अपने-अपने कर्म लेकर आते हैं। भाग्य ऊपर वाला नहीं लिख़ता? हम स्वयं अपने कर्मों के द्वारा अपना भाग्य निर्माण करते हैं।
यदि ईश्वर को ही सब कुछ ठीक करना होता। श्री राम जी वनवास जाते ही नहीं ?क्योँकि रावण की मृत्यु श्री राम जी के हाथों होनी तय थी। इसीलिए श्री राम और रावण का युद्ध हुआ। नहीं तो यह युद्ध कभी होता ही नहीं। और वहीं दूसरी तरफ़ अगर भगवान चाहते तो, महाभारत का युद्ध होने ही क्यों देते? यदि सब कुछ ठीक करना होता करना ईश्वर के हाथों में होता तो, दुर्योधन कभी गलत मार्ग पर जाता ही नहीं। एक तरफ़ जहाँ कौरवों ने श्री कृष्ण जी से विशाल सेना माँगी। और दूसरी तरफ़ पांडवों ने स्वयं श्री कृष्ण को ही माँग लिया।
बस यही सत्य है। सुःख-दुःख जीवन के सिक्के के दो पहलू है। अगर इस संसार मे आए हैं। तो दोनों परिस्थितियों का सामना करना ही पड़ेगा। इसीलिए दुःख हो या सुख हमें ईश्वर के फैसले पर कभी उंगली नहीं उठानी चाहिए। वह परमपिता तो सबका है। हम सब उसी की संतान है। हमें परमात्मा से अपने कर्मों की माफी मांगनी चाहिए
और साथ ही अपने कर्म सदा अच्छे रखना चाहिए।