“माइका” यानी माँ का घर, कहानी ऐसी दिल को छू ले जैसी

सर्वप्रथम आप सभी प्रिय पाठकों का हमारी वेबसाइट के इस पेज़ मे हार्दिक स्वागत है।
आज मैं आपके लिए,एक ऐसी कहानी लेकर आई हूँ। जिसमें एक लड़की का अपने माइके के प्रति लगाव को दर्शाया गया है । जैसे कि सभी लड़कियों का होता है। पर कहीं न कहीं जब तक माता-पिता ख़ासकर “माँ” जीवित होती है। तभी तक माइके का दरवाज़ा, बेटियों के स्वागत के लिए ख़ुला है। पर साथ में इस कहानी में यह भी दर्शाया गया है। कि अगर हर भाभी स्वाति की तरहं समझदार हो। तो, बेटियों के स्वागत के लिए माइके का दरवाज़ा सदा के लिए खुला है।
आशा करतीं हूं, कि आपको यह कहानी ज़रूर पसंद आएगी। आप सभी प्रिय पाठकों के कमेंट्स के इंतज़ार मे, लेखिका Nisha Shahi
आप सभी की जानकारी के लिए बता दूँ। कि यह कहानीं और इसके सभी पात्र पूर्णतया काल्पनिक है। तथा इस कहानी का एवं इसके पात्रों का किसी भी व्यक्ति विशेष या किसी के निजी जीवन से कोई लेना – देना नहीं है। और यह कहानीं स्वयं मेरे द्वारा लिखित है। इसमें मेरे सिवाए अन्य किसी दूसरे की भगीदारी नहीं है। यह कहानी सिर्फ़ और सिर्फ़ पाठकों के मनोरंजन हेतु प्रस्तुत की गई है।
हर रोज़ सुबह-सुबह का समय स्वाति के लिए बहुत ही भाग-दौड़ भरा होता। क्योंकि उसके पति और बच्चों दोनों के स्कूल और ऑफिस का समय एक ही होता। जिसकी वजह से स्वाति हर रोज सवेरे के समय बेहद बिज़ी रहती। इधर उसकी सास भी अक्सर बीमार रहती थी।
और ननंद की शादी हुए , 1 साल ही हुए थे। क्योंकि जब तक स्वाति की ननंद साथ थी। तो उसकी काफ़ी मदद मिल जाया करती थी। अब स्वाति को सब कुछ अकेले ही संभालना पड़ता था । आज भी स्वाति अपने रोज़मर्रा के कामों में व्यस्त थी। तभी अचानक से फ़ोन की घंटी बजी स्वाति ने अपने पति रोहन को आवाज़ लगाई “रोहन प्लीज ज़रा देखना किसका फ़ोन है, मैं नाश्ता बना रही हूं”।
फ़ोन पर बात करने के बाद रोहन सीधा किचन में आया और स्वाति के कंधों पर हाथ रखते हुए उसका हाथ थाम कर उसे हॉल की ओर ले जाने लगा। स्वाति रोहन को समझाते हुए बोली “ओहो रोहन सुबह -सुबह ये क्या मज़ाक है। आई एम वेरी बिज़ी तुम्हें दिख रहा है,न कि मैं तुम्हारा और बच्चों का नाश्ता बना रही हूं। सुबह-सुबह ये कैसा बचपना है”।
रोहन बोला – “अरे बाबा कितने सवाल करती हो चलो मेरे साथ” और रोहन स्वाति को सोफ़े पर बिठाते हुए बोला “बैठो यहांआराम से ऐसा बोलकर रोहन ने बड़े प्यार से स्वाति को सोफे पर बैठाया और बोला स्वाति तुम्हारे बड़े भैया का फ़ोन था। स्वाति देखो अपना दिल थोड़ा मज़बूत रख़ना” स्वाति रोहन की बात से थोड़ा घबरा गई फ़िर उसे अजीब सी बेचैनी होने लगी।
और वह रोहन से बोली “बताओ तो क्या हुआ ? ” रोहन बोला “स्वाति वो एक बुरी ख़बर है”। अब स्वाति का दिल और ज़ोर से धड़कने लगा। वह घबराती हुई रोहन से बोली, “देखो रोहन पहेलियां मत बुझाओ और साफ़ -साफ़ बताओ आख़िर बात क्या है”? रोहन लंबी साँस भरते हुए बोला “स्वाति वो कैसे कहूँ तुम्हारी माँ यानी मम्मी जी अब इस दुनियां में नहीं रही, वह हम सबको छोड़कर हमेशा के लिए” कहते-कहते रोहन खुद रोआं सा हो गया।
यह सब सुनकर स्वाति सन्न रह गई। और फिर ज़ोर-ज़ोर से रोने लगी स्वाति की रोने की आवाज़ सुनकर उसकी सासू माँ देविका जी भी अपने कमरे से बाहर आ गईं। और रोहन से पूछने लगी। “क्या हुआ ?बहू क्यों रो रही है? रोहन ने बोला माँ वो मैं अभी आपके ही पास आ रहा था। ऐसा कहते हुए रोहन ने अपनी माँ को सारी बात बताई फ़िर रोहन की माँ देविका जी स्वाति के पास आकर दुःख ज़ाहिर करते हुए स्वाति को सीने से लगा लिया। और बोली “नहीं बेटा ऐसे नहीं रोते मैं तुम्हारा दर्द समझ सकती हूं। पर बेटा तुम्हें भी तो अपना ख़्याल रखना होगा”।
स्वाति रोते-रोते अपनी सास से कहने लगी। “अभी दो दिन पहले ही तो माँ का फोन आया था। माँ से बात हुई थी। वह कह रही थी, कि बच्चों की छुट्टियां कब से पढ़ रही है। बहुत दिन हुए तुम्हें देखे हुए, और तुम्हारी पसंद के गाजर का अचार भी बनाया है, आकर के ले जाना”। ऐसा बोलकर स्वाति और ज़ोर से रोने लगी। उसे रोता देख उसके दोनों बच्चे भी रोने लगे।
स्वाति की सासू माँ बोली “देखो बेटा तुम्हें रोता देख बच्चे भी दुखी हो रहे हैं। चुप हो जाओ” फ़िर स्वाति की सासू माँ ने स्वाति की तरफ़ पानी का गिलास बढ़ाकर उसे पानी पीने के लिए कहा स्वाति का पति रोहन भी बगल में आकर बैठ गया और कहने लगा, “स्वाति संभालो अपने आप को, अभी हमें रुड़की के लिए भी रवाना होना है”।
स्वाति का मायका रुड़की में था। रोहन बोला “अभी सुबह के 6:00 हैं। हम लोग अगर एक घंटे बाद भी निकलते है। तो आराम से 11-12 बजे तक आराम से पहुंच ही जाएंगे। चलो अब उठो और हम सब का सामान पैक कर लो और हाँ अपने और बच्चों के कपड़े थोड़े ज़्यादा रख लेना। अगर तुम्हें वहां थोड़े दिन और रुकने का मैं करे तो रुक जाना। शायद मैं नहीं रुक पाऊंगा, क्योंकि माँ भी साथ चलने की ज़िद कर रहीं हैं। तो मैं मां को लेकर कल वापसी हो जाऊंगा, हाँ, बीच-बीच में चक्कर लगाता रहूंगा। तुम थोड़े दिन बच्चों के साथ वहां रुक जाना वैसे भी दो दिन बाद बच्चों की छुट्टियां पड़ने ही वाली है”
स्वाति अपने आप को संभालते हुए अपनी सास से बोली “मम्मी जी वह सब तो ठीक है, पर आपकी तबीयत भी तो ठीक नहीं रहती। इतना लंबा सफ़र है। मैं आपकी सेहत के साथ कोई रिस्क नहीं लेना चाहती”।
स्वाति की सासु माँ बोली “नहीं बेटा रीति रिवाज़ तो निभानें ही पड़ते हैं। बेकार ही वहां सब तुझे तानें मारेंगे, कोई बात नहीं एक दिन की ही तो बात है, मेरी फिक्र मत कर चल अब बैग पैक कर समय पर पहुंचना है, वहां”।
स्वाति को फ़िर अपनी सास की चिंता होने लगी। और बोली “वो सब तो ठीक है। पर आप दूसरे ही दिन वापस आ जायेंगी तो यहां सब अकेले कैसे मैनेज करेंगीं। मुझे वहां पर पूरे 14-15 दिन रहना पड़ सकता है। यहां पर आपकी देख-रेख कौन करेगा”।
स्वाति की सास उसके सर पर हाथ फेरते हुए बोली “बेटा तू मेरी बिल्कुल भी चिंता मत कर रमा से मेरी बात हो गई है। वह कुछ दिनों के लिए यहाँ आ जाएगी।
उसके और हमारे घर की दूरी 30 मिनट की ही तो है, और उसके घर में देवरानी जेठानी दोनों ही है। कुछ दिनों के लिए आ जाएगी मेरे पास तू मेरी चिंता मत कर”।इतने ही में स्वाति की नंद रमा का फ़ोन आया वह स्वाति यानि अपनी भाभी से दुःख व्यक्त करने लगी, और अपनी भाभी को दिलासादेते हुए कहने लगी कि “भाभी आप माँ की चिंता बिल्कुल मत करना मैं आ जाऊंगी। अभी भैया का फ़ोन आया। तो, मुझे पता चला आपकी माँ के बारे में,
आप बिल्कुल फिक्र मत करो भैया कल माँ को लेकर वापसी हो जाएंगे। और भैया बीच-बीच में तो चक्कर लगाते ही रहेंगे। आखिर उनका भी तो कुछ फ़र्ज़ बनता है। आपकी तरफ़” अपनी नंद की बात सुनकर स्वाति ने राहत की सांस ली और जल्दी से कपड़े और ज़रूरत का सामान पैक करके सपरिवार अपने मायके के लिए रवाना हो गई।
पता ही ना चला कि कब दिल्ली से रुड़की का सफ़र तय हो गया स्वाति जैसे ही घर के गेट पर पहुंची वहां पर रिश्तेदारों एवं आस पड़ोसियों का मजमा जमा हुआ था, जैसे ही स्वाति गेट के अंदर पहुंची। सामने उसकी माँ की अर्थी रखी हुई थी। और बगल में उसकी बड़ी बहन गौरी दीदी रो रही थी। स्वाति बड़ी हिम्मत करके अंदर पहुंची, और अपनी बड़ी बहन गौरी दीदी से लिपट कर रोने लगी। दोनों बहने अपनी माँ को याद करके रोने लगी। माँ की अंतिम विदाई के बाद। मानो पूरे घर में सन्नाटा सा छा गया हो धीरे-धीरे आस पड़ोस के लोग भी सांत्वना देकर अपने-अपने घर जाने लगे भीड़ छंटनें लगी और धीरे-धीरे भाभी सभी को चाय पानी का पूछने लगी।
पता ही नहीं चला कब दोपहर से रात होने को आई। रात के खाने का इंतजाम किया गया स्वाति ने भी अपनी सास को खाना खिलाया क्योंकि उन्हें समय पर दवाई लेनी होती थी, फ़िर स्वाति ने अपना बैग खोला उसमें से अपनी सास की दवाइयाों वाला बैग निकाला और रसोई में पानी लेने के लिए चली गई।
जैसे ही पानी लेने के लिए गिलास लेने लगी तो, उसकी नज़र सामने शीशे की अलमारी पर रखे कांच के गिलास पर पड़ी उन गिलास को देखकर उसकी आंखें चमक सी गई यह वही ग्लास के सेट थे , जो वह शादी से पहले एक एग्जीविशन से लेकर आई थी। क्योंकि तब वह उसका अपना घर था, और वह तो आज भी यही समझती थी, कि यह मेरा ही घर है, उसने झट सेअलमारी खोलकर वह गिलास निकाला और जैसे ही उसमें पानी भरने लगी, कि उसी समय उसके भाई की बेटी यानी उसकी भतीजी गुनगुन ने उसके हाथों से झट से वह गिलास जैसे छीन लिया हो और वह स्वाति से कहने लगी, “बुआ यह डेली यूज़ के गिलास नहीं है। प्लीज आप कोई और गिलास ले लीजिए न”, ऐसा कहकर गुनगुन वहां से एक सेब उठकर बाहर की और चल पड़ी।
गुनगुन की ऐसी हरकत से स्वाति एकदम निःशब्द सी रह गई। गौरी दीदी यह सब देख रही थी। वह स्वाति के पास आई और बोली “कोई बात नहीं बच्ची है। भाई ने सर चढ़ा कर रखा है, इसे, इसकी बात को दिल पर मत लगा। फ़िर गौरी दीदी ने एक स्टील के गिलास में स्वाति को पानी भर कर दिया। और बोली “चल छोड़ इन सब बातों को और माँ जी को दवा देदे” ।
स्वाति ने अपनी सास को समय पर दवाई देकर बच्चों और अपनी सास को गेस्ट रूम में सुला दिया।
सब लोग हॉल में इकट्ठा होकर बातचीत कर रहे थे। कि तभी स्वाति की भाभी आई और कहने लगी। कि “सभी जेंट्स हॉल पर ही सो जाएंगे गौरी दीदी आप और स्वाति गुनगुन के कमरे में सो जाना क्योंकि मेरा कमरा तो पहले से ही रिज़र्व है। वो मेरी मम्मी भी आज यहीं रुकेंगी तो वो मेरे कमरे में ही ठहरेंगी”।
फ़िर दोनों बहने गुनगुन के कमरे में पहुंची जो कि कभी उनका कमरा हुआ करता था। दोनों बहने जैसे ही उस कमरे में दाख़िल हुई। जैसे उनकी बचपन की और जवानी की यादें ताज़ा हो गई हों, पर न जाने क्यों अब वह कमरा पराया सा लग रहा था। दीवारें वही थी। पर दीवारों पर अब उनकी तस्वीरें नहीं थी, टेबल चेयर भी वही थे, पर अब उनकी किताबें वहां नहीं थी। दोनों बहनों ने काफ़ि देर तक बात की
और स्वाति पुरानी यादें ताज़ा करते हुए बोली, ” पता है, दीदी जब आपकी शादी हुई थी, तब मैंने सोचा था, कि यह कमरा पूरी तरह से मेरा हो जाएगा। लेकिन जब आपकी विदाई हुई उसके बाद पूरा घर सूना सा हो गया था। मुझे इस कमरे में आपकी कमी खलने लगी थी। और तब मैंनें आपकी बनाई हुई पेंटिंग्स से यह सारी दीवारें भर दी थी। याद है,आपको जब आप पग फेरों पर घर आई थी, तो मैं आपसे लिपट कर कितना रोइ थी”। गौरी दीदी बोली “हाँ याद है”,स्वाति बोली “मैं आपकी सभी चीजों को बड़े सहेज कर रखती थी”। गोरी दीदी बोली “वह भी कितने अच्छे दिन थे, ना अब तो जैसे सब कुछ बदला-बदला सा लग रहा है”।
स्वाति बोली “अच्छा दीदी अब काफ़ी रात हो गई है, कल इन्हें मम्मी जी को लेकर दिल्ली के लिए रवाना भी होना है। चलो अब सोते हैं। गुड नाइट जैसे ही स्वाति सोने के लिए अपना कोना पकड़ने लगी तभी उसकी भाभी की एंट्री हुई और भाभी पूछने लगी आप लोगों कोकिसी चीज़ की ज़रूरत तो नहीं है, न तो स्वाति बोली नहीं भाभी मैं पानी का जग ले आई थी।
फिर जैसे ही भाभी अच्छा बोलकर कमरे से बाहर जाने लगी एकदम से पीछे मुड़ी और बोली “अरे-अरे स्वाति यह तो गुनगुन का कोना है। प्लीज़ तुम बीच में सो जाओ न, वो क्या है, कि न उसे इसी कोने में नींद आती है। देखेगी तो गुस्सा करेगी” इतने में स्वाति बोली “ठीक है, भाभी मैं बीच में ही सो जाऊंगी कोई नहीं पर गुनगुन है, कहां अभी तक नहीं आई”। भाभी बोली, हां बस अपने पापा के साथ लगी हुई है, पत्ते खेलने में आती ही होगी।
फ़िर थोड़ी देर बाद गुनगुन की एंट्री हुई और अपने बेड पर दोनों बुआ को देख़कर बोली “ओहो हम तीनों यहां कैसे सोएंगे। गौरी दीदी गुनगुन से बोली “कोई बात नहीं बेटा, तुम आज दोनों बुआ के बीच घुसकर सो जाओ और बचपन की यादें ताज़ा कर लो। तुम्हें याद है, बचपन में तुम कैसे हमारे बीच ज़बरदस्ती घुस कर सो जाया करती थी”।
तभी गुनगुन तपाक से बोली “क्या बुआ आप भी मुझे तो याद भी नहीं है, इतनी पुरानी बात, और वैसे भी अब मैं बड़ी हो गई हूं, अब मुझे फ़ैल कर सोने की आद़त हो गई है। चलो ख़ैर जाने दो, आज यह बेड़ आप दोनों के नाम! चलो फिरठीक है, आज मैं मम्मी के पास सो जाती हूं। आप दोनों यहां पर आराम से सो जाओ” और फ़िर वह झट से स्वाति के सर के नीचे से अपना तकिया खिंचते हुए बोली “देखो बुआ आज के लिए कमरा तो दे रही हूं। पर अपना तकिया नहीं दे सकती, आप दूसरा तकिया ले लो न” ऐसा बोलकर वह झट से कमरे से बाहर चली गई।
गुनगुन के इस बर्ताव से जैसे दोनों बहनों की नींद गायब सी हो गई हो, स्वाति बोली “सही में भैया ने इसे काफ़ी सर चढ़ा कर रखा है। अभी इतनी छोटी बच्ची भी तो नहीं रही है। एम. बी. ए कर रही है? इतनी अकल तो इसे होनी ही चाहिए कि बड़ों के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए। कुछ दिनों के लिए थोड़ा सा एडजस्ट कर लेती तो इसका क्या चला जाता”?
गौरी दीदी बोली छोड़ो जाने दो हमें रहना ही कितने दिन है, यहां। और वैसे भी अब तो माँ के जाने के बाद सब कुछ पराया-पराया सा लग रहा है। चलो अब हम ही एडजेस्ट कर लेते हैं”। स्वाति बीते दिनों याद करते हुए बोली, आपको याद है, दीदी आपकी शादी के समय गुनगुन कितनी छोटी सी थी, हमने इसे कैसे लाड प्यार से पाला था। इसे, इसकी फरमाइश करने से पहले ही हम इसके लिए हर चीज़ हाज़िर कर दिया करते थे। एक पल भी हमारे बग़ैर नहीं रहती थी। और अब देखो सब भूल गई है”।
गौरी दीदी बोली आजकल के बच्चों को रिश्तों की क़दर ही कहाँ है? परयाद है। जब हम छोटे थे। और कमला बुआ घर आया करती थी। तो हम कैसे बुआ के आगे पीछे डोलते फ़िरते थे। और बुआ की एक आवाज़ पर हाज़िर हो जाते थे। और हम बुआ की कितनी रिस्पेक्ट किया करते थे। हमनें बुआ को कभी किसी बात का पलट कर ज़वाब नहीं दिया। होगा। बुआ की हर बात सर झुका कर सुनते थे। तभी तो बुआ आज तक हमें याद करती हैं”।
तभी गौरी को याद आया और बोली “अरे हॉं बुआ से याद आया। मैंने बुआ को फोन करके मॉं की ख़बर दे दी थी। पर बुआ मेरठ में नहीं हैं। वह अपने बड़े बेटे अशोक भैया के पास मुंबई में है। बुआ कह रही थी कि शायद कल सुबह की फ्लाइट से आ जाएंगी। बातें करते करते अचानक से दोनों बहनों की नज़र दीवार पर लगी घड़ी पर पड़ी और दोनों चौंक गई अरे बाप रे 2 बजनें वाले हैं। दीदी बोली चलो अब सो जातें हैं सुबह जल्दी उठना है। फ़िर फ़ाइनली गुड नाईटबोलकर दोनों बहनें सो गई।
फ़िर अगले दिन सुबह सभी लोग जल्दी उठ गए और सभी के नहाने धोने का कार्यक्रम शुरू हो गया क्योंकि अगले कुछ दिनों तक घर में पूजा पाठ होनी थी। स्वाति की भाभी बोली “अरे क्या सब लोग नहा धो लिए। कोई रह तो नहीं गया , क्योंकि बस थोड़ी देर बाद पंडित जी आते ही होंगे”। स्वाति के भैया बोले “हाँ भागवान सब नहा धो लिए। भाभी बोली वो सब तो ठीक है, पूजा का सारा सामान चेक कर लिया आपने, भैया बोले हाँ लगभग सब आ गया भाभी ने सब कुछ फ़िर से चेक किया और माथे पर हाथ धरते हुए बोली, ये देखो इनके काम! गौमूत्र कहाँ है? उसी से ही तो सरे घर की सुधि होगी,
तुम से तो एक काम ढंग से नहीं होता है, सब मुझे ही देखना पड़ेगा, थोड़ी देर मे गौमूत्र मंगवाया गया। और पंडित जी भी आ गए। घर मे पूजा संपन्न होने के बाद भैया। अस्थि विसर्जन के लिए हरिद्वार के लिए निकलनें लगे। तो स्वाति के पति भैया से बोले “अच्छा भैया अच्छे से जाना वो क्या है, न कि मैं भी आपके साथ चलता पर माँ को लेकर दिल्ली के लिए रवाना भी होना है। पर हाँ भैया मैं बीच-बीच मे एक आध चक्कर लगाता रहूँगा। अगर मेरे लायक कोई काम हो तो ज़रूर बताइएगा”। भैया बोले “ज़रूर-ज़रूर क्यों नहीं, अच्छा अब तुम भी माँ जी को लेकर टाइम से निकलो आजकल रस्ते मे ट्रैफ़िक बहुत है। और हाँ नास्ता करके जाना”। और फ़िर स्वाति के भैया अपने बेटे हिमांशू के साथ हरिद्वार के लिए रवाना हो गए।
थोड़ी देर बाद सभी मेहमानों को नाश्ता पानी कराया गया। फ़िर स्वाति के पति रोहन स्वाति से बोले। “चलो स्वाति अब मैं भी माँ को लेकर निकलता हूँ। माँ का बैग तैयार कर दो”। स्वाति ने अपनी सास का बैग तैयार कर दिया, जिसमें उनकी दवाइयों वाला डब्बा याद करके रख दिया, और रास्ते के खाने के लिए टिफिन भी रख दिया। फ़िर स्वाति अपनी सास और पति को बाहर गाड़ी तक छोड़ने के लिए जाने लगी। तो साथ में उसकी भाभी और गौरी दीदी भी आ गई पर शायद स्वाति अपनी सास से कुछ कहना चाहती थी। क्योंकि भाभी और दीदी दोनों साथ में थीं । दीदी से तो क्या छिपा है। पर भाभी के सामने बोलना ठीक नहीं समझा।
इतने में स्वाति के बच्चे दौड़ कर आए। और अपनी दादी से लिपट गए। और बोले” “दादी आप क्यों जा रहे हो, कल जब हमनें रास्ते में वह आम का पेड़ देखा था। जिस पर आम लगे हुए थे। तो आपने बोला था। कि कल यानी आज आप हमें वहां ले जाएंगी। चलो न दादी यही पास ही तो है”।
और फ़िर बच्चों के बहाने जैसे स्वाति को अपनी बात बोलनें का मौका मिल गया हो, वह भी बच्चों की हां में हां मिलाते हुए रोहन से बोली “हॉं रोहन मेरी भी थोड़ी मॉर्निंग वॉक हो जाएगी आप बच्चों के साथ गाड़ी में आम के पेड़ के पास पहुंचिए। मैं और माँ पैदल-पैदल आते हैं।
बस 5 मिनट का ही रास्ता है। बच्चे वहां से थोड़े आम इकट्ठा करके ख़ुश हो जाएंगे। फ़िर आप लोग वहां से घर के लिए निकल जाना। मैं बच्चों के साथ वापस आ जाऊंगी”। रोहन बोले क्या तुम भी बच्चों के साथ बच्ची बनती हो। अच्छा चलो मैं निकलता हूं. तुम लोग आओ आम के पेड़ के पास मिलता हूं। वैसे भी माँ की सेहत के लिए वॉक करना अच्छा रहेगा”। और फ़िर रोहन और बच्चे गाड़ी में चले गए। स्वाति की भाभी और दीदी वापस घर की और चल पड़ी।
अपनी सासू माँ के साथ ख़ुद को अकेला पाकर अब स्वाति ने चैन की सांस ली, और अपनी सासू मां से बोली, “अच्छा मम्मी आप रास्ते में अपना ख़्याल रखना बीच में रास्ता काफ़ी उबड़-खाबड़ है। कमर की बेल्ट ज़रूर बांध लेना”। स्वाती की सासू माँ साड़ी का पल्लू ऊपर करते हुए बोली “यह देख मैने अभी से बांध ली है, बेल्ट क्यों फ़िक्र करती है, इतनी”, स्वाति बोली “अच्छा यह बताओ कि रमा कब तक आ जाएगी”।
स्वाति की सासू माँ बोली “देखो बेटा अब जब हम पहुंचेंगे उसके बाद ही आएगी, क्योंकि हम तो जल्दी-जल्दी में उसे घर की चाबी देना ही भूल गए। तू क्यों फ़िक्र करती है, दोपहर का खाना तो तूने पैक कर ही दिया है। शाम का मैं देख लूंगी। कुछ हल्का-फुल्का बना लूंगी। अपने लिए। रोहन बाहर से मंगा कर खा लेगा। देखो रमा रात तक तो आ ही जाएगी।
और कौन सा बहुत दूर है,उसका घर 20-25 मिनट तो लगते हैं, घर पहुंच कर फ़ोन कर देंगे। उसको, आ जाएगी वो। तू चिंता मत कर”। स्वाति बोली “नहीं नहीं ऐसी बात नहीं है। वो तो मैं आपसे कुछ कहना चाहती हूं”, स्वाति की सास बोली “हाँ बोलो बेटा” स्वाति बोली “मम्मी वह रामा के आने से पहले रमा का कमरा यानी जो अब पीहू का रूम है। उसे थोड़ा ठीक कर देना” सासू माँ बोली “क्या मतलब मैं कुछ समझी नहीं”? रमा तो हर बार की तरहं मेरे ही कमरे में रूकेगी न”
स्वाति बोली “नहीं मम्मी अब से रमा जब भी घर आएगी। अपने ही कमरे में रुकेगी। और हां कमरा ठीक करने से मतलब है। कि बेड से वह कार्टून वाली बेडशीट हटाकर रमा की फ़ेवरेट वाली पिंक बेडशीट बिछा देना। वह ऊपर वाली कपबोर्ड पर ही रखा है। और हां वह रमा का बड़ा वाला पिलो है,न वह भी मैंनें संभाल कर रखा है। अलमारी से निकाल लेना। और वो जो रमा का येलो वाला कॉफी मग है, वह भी मैंने किचन में पीछे वाली ड्रावर में संभाल कर रखा है। उसे उसी में कॉफी पीना पसंद है। तो उसे उसी में काफ़ी देना”। स्वाति बग़ैर सांस लिए बोले जा रही थी।
तभी स्वाति की सास उसे बीच में रोकते बोली,” बस बस सांस तो ले ले बेटा आज क्या हो गया तुझे, रामा की इतनी चिंता क्यों कर रही है। उसे कोई शिकायत नहीं है। तुझसे, और जब भी रमा घर आती है। तू इतना ख़्याल तो रखती है, उसका। हमेशा उसकी उसकी पसंद का खाना बनाती है। उसे कभी खाली हाथ नहीं भेजती। हमेशा कभी सूट तो कभी साड़ी, पैसे हर रक्षाबंधन पर सोने चांदी की चीज भी देती है। क्या बात है। बेटा तू आज इतनी बेचैन क्यों हो रही है”। अरे नहीं मम्मी ऐसी कोई बात नहीं है। इन सब चीजों पर तो उसका हक बनता है। वो तो बस ऐसे ही”..
अपनी सास की बात सुनकर स्वाति अपनें आंसुओं को रोक न पाई और उसकी आंखों से आंसूओं की धारा बहनें लगी। और वो रोते हुए बोली “नहीं मम्मी बेटियां जब भी मायके आतीं हैं, तो, वह कपड़े या जेवर लेने नहीं आतीं है। वह तो अपने माता-पिता, भाई भाभी और भतीजे भतीजियों का प्यार पानें और लुटाने आती हैं।
हमारा भी तो फ़र्ज़ बनता है। कि हम अपनी बहन बेटियों का घर में खुलकर स्वागत करें। और जब भी वह अपने घर आए तो उसे उसका कमरा वैसे ही मिले जैसा वह कुछ सालों पहले छोड़कर गई थी। मानतीं हूं कि शादी के बाद पति का घर ही लड़कियों का घर होता है। पर मायके में भी तो उसका कुछ अपना होता है, न , वो बचपन की प्यारी मीठी यादें लाड़ दुलार, हंसना रोना मायके में उसकी आधी ज़िंदगी गुज़र जाती है। फ़िर शादी के बाद वह पराई क्यों हो जाती है? वह ख़ुद ही अपने आप को, और अपनी सोच को बदल लेती है। मेरा घर की जगह माँ का घर कहना सीख जाती है। और अगर दुर्भाग्यवश माँ न रहे तो वह घर भाभी का घर कहलाता है। और इस बात में कोई बुराई भी नहीं है। यह तो जीवन का नियम है। आना-जाना तो लगा ही हुआ है।
बस में ले देकर आपसे एक बात करना चाहती हूं, कि रमा जितने दिन रहे। उसकी पसंद ना पसंद का ख़ास ख़्याल रखा जाए”, स्वाति की बातें सुनकर उसकी सास की आंखों में भी आंसू भर आए और उन्होंने उसे सीने से लगा। लिया और बोली “मेरी बच्ची तूने तो आज मेरा मन जीत लिया। अब मै तसल्ली से मर सकूंगी। कि मेरे मरने के बाद भी मेरी बेटी का मायका बना रहेगा, माँ के बाद उसकी भाभी माँ जो है, उसका मान-मनुहार करने के लिए”! स्वाति अपनी सास के मुंह पर हाथ रखते हुए बोली “क्या मम्मी ऐसी मरने वाली बातें क्यों करती हो आपको पता है, न कि अभी अभी तो मैं माँ को खोया है। अब आपकी छत्रछाया हमारे सर पर बनी रहे। बस और कुछ नहीं चाहिए”। बातें करते-करते कब दोनों सास बहू आम के पेड़ के पास आ पहुंची। पता ही न चला।
सामने से पीहू और गुड्डू दोनों दौड़ते हुए आए,और आमों से भरी थाली दिखाते हुए बोले “देखो दादी कितने सारे आम इकट्ठा किए हैं, हमने”! स्वाति बोली अरे “वाह इतने सारे आम! चलो एक थैली दादी को दे दो आज रमा बुआ आएंगी। उन्हें आम पुदीने की चटनी बड़ी पसंद है”, पीहू ने “ओके मम्मा” बोलकर कच्चे आम की एक थैली गाड़ी में रख दी।
रोहन बोला “अच्छा चलो अब तुम बच्चों को लेकर घर जाओ हम भी निकालते हैं, देखता हूं टाइम मिलेगा तो बीच में एक दो चक्कर लगा जाऊंगा। मैंने तुम्हारे भैया से बात कर ली है। मेरे लायक कोई सेवा हो अपनी निःसंकोच मुझे बताएं। तुमअपना और बच्चों का ख़्याल रख़ना”।
स्वाति नें सर हिलाकर हामी भरी फ़िर स्वाति को कुछ याद आया वह रोहन से बोली “अच्छा सुनो रास्ते में फ्रेश पके हुए आम की पेटी ले लेना”। स्वाति की बात को बीच में काटते हुए रोहन बोला “तुम और बच्चे यहां हो एक पेटी आम लेकर क्या करना है? मां और मैं कितना ही खा लेंगे”? फ़िर रोहन की बात बीच में काटते हुए स्वाति भी बोल पड़ी, “क्यों भूल गए क्या रमा घर आ रही है। और आप नहीं जानते क्या कि उसे आपके हाथों का बना मैंगो शेक कितना पसंद है। प्लीज जब तक वह घर पर रहे। उसे अपने हाथों से बना हुआ मैंगो शेक ज़रूर पिलाते रहना”।
रोहन बोले “अच्छा बाबा अच्छा ले जाऊंगा। आम की पेटी, तुम्हारी नंद रानी के लिए”, फ़िर स्वाति ने रोहन से एक और आग्रह किया “अच्छा सुनो न एक बात और वो क्या है, कि न स्वाति को चौराहे वाली दुकान के समोसे बहुत पसंद है। उसके लिए लेते जाना, रोहन हाथ जोड़कर बोल ठीक है, बाबा ठीक है,लेता जाऊंगा। अच्छा अब हम चले कि और भी कुछ बाकी है”। स्वाति स्वाति अपने बालों को कान के पीछे करते हुए बोली “नहीं नहीं” ।
और अपनी सासु माँ से बोली “मम्मी बस थोड़े दिनों की बात है, यहां भाई के घर में हवन वगैरह हो जाए तो आती हूं। आप अपनी दवाइयां टाइम से लेती रहना, वैसे मैं फ़ोन करके आपको याद दिलाती रहूंगी। चलो अब आप लोग निकलो दोपहर होते-होते रास्ते में ट्रैफिक बहुत मिलता है”। उसने पति और सास को बाय-बाय किया। और बच्चों को लेकर चल पड़ी अपनी भाभी की घर की ओर।
और जैसे ही स्वाति ने घर में एंटर किया, तो वह क्या देखती है। यह क्या भाभी तो माँ के कमरे मे सारा सामान बिख़ेर कर उनकी अलमारी और संदूक खोलकर बैठी हुई थी।
गौरी दीदी हॉल में बैठकर अपने पति से फ़ोन पर बातें कर रही थी। दीदी ने स्वाति को देखा तो, बोली” स्वाति आ गई तुम रोहन और माँ जी को छोड़कर” स्वाति बोली “जी दीदी”,
स्वाति ने गौरी दीदी से बोली – कि “दीदी जरा माँ के रूम में चलो न। देखो तो भाभी को, मॉं का पूरा कमरा फैला कर बैठीं है”। गौरी दीदी बोली “चल देखते हैं”।
जैसे ही दोनों मॉं के कमरे में पहुंची। भाभी बोली “अरे आप दोनों कहॉं थी। मैं तो अकेली ही सफ़ाई करने लग पड़ी”। गौरी दीदी बोली भाभी इतनी भी क्या जल्दी थी। थोड़े दिन और रुक जाती अभी तो लोगों का आना-जाना लगा हुआ है। पहले उनको अटेंड करो। भाभी बोली अरे लोग तो आते जाते रहेंगे। तुम्हारे भैया है, न संभालने के लिए। और वैसे भी मुझसे ज़्यादा तुम्हारे भैया की पहचान वाले लोग हैं। खैर छोड़ो आओ तुम दोनों भीतर आओ देखो न मॉं जी की कितनी सारी दवाईयों की बोतले पड़ी है। यह सब फैंकनीं है।
और यह कुछ पुरानी चादरें और कुछ पुराने कपड़े वगैरा भी फ़ैकने हैं। गौरी दीदी बोली अरे भाभी कपड़े वगैरा फ़ैकने की क्या ज़रूरत है। किसी जरूरतमंद को दे दो। उनके काम आ जाएंगे। भाभी झट से बोली – अब कहां ढूंढते फ़िरें किसी जरूरतमंद को, गौरी दीदी कपड़ों की पोटलिया बनाते हुए भाभी से बोली – भाभी इन पोटलियों को किनारे रख दो। तेरहवीं के बाद मैं ले जाऊंगी। सड़क में बहुत जरूरतमंद मिलते हैं। किसी का तन ही ढ़क जाएगा। इसमें क्या बुराई है।
कुछ देर तक चुप रहने के बाद भाभीसफ़ाई देते हुए बोली – दीदी मैं तो बस इसलिए जल्दी-जल्दी कमरा साफ कर रही थी। वो क्या है, कि न,बेचारा हिमांशु गेस्ट रूम में सोता है। अगर कोई मेहमान आ जाए तो उसे हाल में शिफ्ट होना पड़ता है। बस इसीलिए सोचती हूं। कि जल्द से जल्द ये कमरा साफ़ करके हिमांशु का परमानेंट रूम बना दूं। क्यों ठीक है, न। दोनों बहने ने सर हिला कर हामी भर दी।
बस कमरे में बातचीत चल ही रही थी कि अचानक से बुआ की आवाज आई दोनों बहने बुआ जी की आवाज सुनकर बाहर की और दौड़ी और बुआ जी को लिपटकर जोर-जोर से रोने लगी। न जाने क्यों बुआ से मिलकर मॉं के होने का एहसास होने लगा था। बुआ भी भावुक हो गई। दोनों बहनें बुआजी से मिलकर बस सोये ही जा रही थी तब बुआ जी दोनों को चुप करते हुए बड़े प्यार से बोली बेटा देखो बुआ का रो रो कर गला सुख गया पानी नहीं पिलाओगी बुआ को। स्वाति भागकर रसोई से बुआ जी के लिए पानी का गिलास ले आई।
कुछ देर बाद आराम करने के बाद बुआ जी हॉल में पहुंची। जहां पूरा परिवार इकट्ठा था। कुछ देर इधर-उधर की बातें करने के बाद जब शाम को लोगों का आना-जाना थोड़ा कम हुआ तो बुआ जी ने स्वाति के भैया से बोली – “आकाश तुमसे कुछ बात करनी थी। देखो मेरी बात को ज़रा गौर से समझना। देखो आना जाना तो जीवन काअहम् हिस्सा है। अब जाने वाले को रोका तो नहीं जा सकता। शायद भाभी का इतना ही लिखा हुआ था। पर अब उनकी चीज़ जो वह छोड़कर गई है। वही याद है। उनकी उनके बच्चों के लिए आशीर्वाद है। भाभी के जो भी जेवर हैं। वह इन बहू बेटियों का ही है। उनमें थोड़ा-थोड़ा तुम तीनों उनकी याद समझ कर रख लेना”।
आकाश भैया बुआ के सामने दोनों हाथ जोड़ते हुए बोले – “बुआ मुझे तो आप इन मामलों से दूर ही रहने दो। पहले माँ संभालती थी। अब आगे से तुम्हारी बहु को ही देखना है। तो अच्छा यही होगा। कि आप ये सब बातें शीला से ही करें,ये डिपार्टमेंट तो इन बहु बेटियों का है। इन्हें ही निपटनें दो”। ऐसा बोलकर आकाश भैया बाहर चले गए।
“बुआ गहरी सांस लेते हुए बोली ठीक है। बेटा जैसा तुझे ठीक लगे”। अब बुआ शीला भाभी को समझाते हुए बोली – “देखो बहू अब भाभी के बाद तुम दोनों से ही से इन दोनों का मायका है। मुझे आज भी वह दिन याद है। जब मेरी मॉं का देहांत हुआ था। तब भाभी यानी तुम्हारी माँ ने मेरी मॉं के सारे ज़ेवर मेरे सामने रख कर कहा था। कि दीदी तुम्हें जो भी अच्छा लगे ले सकती हो। इन पर पहला अधिकार आपका है। और यह बात करते-करते कांता बुआ भावूक हो गई। और अपने आंसू पौछते हुए बोली – अब तुम्हारा भी फ़र्ज़ बनता है। कि तुम भी भाभी के सारे जेवर ले आओ और अपनी ननंदों को उनकी माँ की निशानी दे दो”।
बुआ जी शीला भाभी की और देखकर बोली – “अब तुम बताओ बहु इस पर तुम्हारी की राय है”। इस पर शीला भाभी बोली – हाँ बुआ जी आपकी यह बात तो सही है। पर यह भी तो देखो न कि इनके भैया ने दोनों बहनों की शादी में किसी बात की कोई कसर नहीं छोड़ी और इनकी शादी में पूरे ज़ेवरों का सेट चढ़ाया था, हमनें, और फ़िर मॉं जी की सेवा उनकी दवाइयों का खर्चा सब कुछ हमनें ही तो देखा है। अब इसके आगे मैं क्या कहूं। आप ख़ुद ही समझदार हैं।
फ़िर क्या था। बुआ जी तपाक से बोली से बोल उठी। सरला बहु यह तू कैसी बात कर रही है? आकाश ने कब अपने खर्चे पर कार्रवाई इन दोनों की शादी ? देखो बहु मुझसे कुछ नहीं छिपा है। भैया भाभी ने इन तीनों भाई बहनों की शादी हो, या पढ़ाई सब में एक सा ही खर्चा किया था। आख़िर तुम कौन सी ग़लतफ़हमी पाले बैठी हो? और रही बात भाभी के इलाज़ और दवाइयों के खर्चों की तो भैया अपनी पेंशन और प्रॉपटी छोड़ कर गए थे। मुझे नहीं लगता कि कभी तुमनें अपने पल्ले से कुछ निकला हो उनकी ख़ातिर। अरे तुम तो शुक्र मनाओ कि तुम्हें इतनी अच्छी नंन्दे मिली है। वर्ना तो आजकल के ज़माने में लड़किया माँ बाप की प्रॉपटी में बराबर की हक़दार है। यहाँ तो सिर्फ़ कुछ ज़ेवरों की बात है। और ये बात भी मैंने ही रखी है। इन बच्चियों के मन में तो दूर तक ये ख़्याल भी न होगा।
फ़िर शीला भाभी सकपकाते हुए बोली “अरे नहीं बुआ जी आप तो बुरा मान गई। ऐसी कोई बात नहीं है। मैं तो बस ऐसे ही बोल रही थी। अब हमारी दोनों ननंदें अपनी-अपनी घर गृहस्थी में सुखी है। ख़ुश हैं। तो उन्हें थोड़ा ही न यहां से कुछ चाहिए होगा। और वैसे भी वो जो मॉं जी के गले में चैन थी। वह तो मॉं जी जाने से पहले ही गुनगुन के गले में डाल गई थी। और जो उनके गले का हार और हाथों के कंगन है। वह भी स्पेशली गुनगुन की शादी के लिए दूंगी, ऐसा अक्सर कहा करती थीं। और हॉं वह उनकी पुरानी नथ वह तो बहू की ही होती है। इसके अलावा उनकी कानों की कुछ बालियां टॉप्स और सोने की कुछ अंगूठियां है। कुछ चांदी का समान भी है। वो सब मैं ले आती हूं।
और शीला भाभी सरपट अपनी सास के कमरे में जाकर कुछ अंगूठियां और चांदी का सामान ले आई और अंगूठियां दिखाकर बोली इनमें से यह हीरे वाली अँगूठी को छोड़कर आप लोगों को जो पसंद है। एक-एक ले लो क्योंकि यह हीरे वाली तो मेरी गुनगुन को बहुत पसंद है”। शीला भाभी की ऐसी ओछी बात सुनकर बुआ जी को गुस्सा आ गया। और जैसे ही बुआ जी आंखें तानकर कुछ कहने ही वाली थी। कि स्वाति ने बुआ जी का हाथ थाम लिया और आंखों ही आंखों में इशारा कर बुआ जी को कुछ भी कहने के लिए मना कर दिया। और स्वाति अपनी भाभी से बोली-“भाभी हमें सोने चांदी का कोई लालच नहीं है। हमें तो बस मॉं का आशीर्वाद उनकी एक निशानी के रूप में चाहिए। भाभी आपको जो भी पसंद हो वो दे दीजिए”। शीला की आंखों में जैसे चमक सी आ गई। उसने दोनों नंदों को सोने की एक-एक अंगूठी दे दी।
स्वाति को धीरे-धीरे यह एहसास होने लगा था। कि जब तक मॉं थी। तो मायका था। अब मॉं नहीं है। तो सब पराया सा लगता है। जब मॉं थी। तो महीने भर की छुट्टियां भी कम लगती थी। और अब तो यह कुछ दिन काटने भी सालों के बराबर लग रहे हैं । फ़िर आख़िरकार जैसे तैसे यह दिन भी कट ही गए। और तेरहवीं का दिन भी आ गया स्वाति के पति रोहन भी एक दिन पहले ही पहुंच गये थे। जैसे तैसे तेरहवीं की रस्में निपटाकर भैया भाभी ने दोनों बहनों को एक-एक साड़ी और कुछ रुपए देकर विदा कर दिया। स्वाति अपने पति और बच्चों के साथ अपने घर की और निकल पड़ी रास्ते भर उसके मन में बस यही बात चल रही थी। कि जब तक मॉं है। तो बेटी घर की शहजादी है। जब तक मॉं है। तो मायका सजा हुआ है। तीज़ त्योहारों पर बेटियों के लिए मॉं का दरवाज़ा खुला हुआ है।
written by Nisha Shahi