मेरी सोच, मेरे विचार

आइना _ए _ज़िंदगी

आइना ऐसा ज़िंदगी की सच्चाई को बयां करे जैसा

Aaghaz_e_nisha वेबसाइट के इस पेज़ में आप सभी प्रिय पाठकों का हार्दिक स्वागत है।

प्रिय पाठको हम सभी की अपनी -अपनी एक सोच होती है, विचार होते हैं। हम अपने आसपास के वातावरण बहुत कुछ सीखते हैं। हमें सबक मिलते हैं। कुछ दृश्य हमे ऐसे दिखाई देते हैं। कि हम उन्हें देखकर ख़ुश हो जाते हैं, एकदम खुश़नुमा। तो कुछ दृश्य हमें दुखी कर जाते हैं। बस यही तो ज़िंदगी का फेर बदल है। सीखने का नाम ही ज़िंदगी है। हम अपनी छोटी-छोटी बातों से छोटी-छोटी चीजों से छोटी-छोटी हार जीत से तो कभी अपने से छोटों से तथा कभी अपने से बड़ों से हम कुछ ना कुछ सिखाते रहते हैं। तो ऐसी ही बातें कुछ मेरे मन में कभी-कभी उमड़ जाया करती है। कभी-कभी क्या अक्सर उमड़ा करतीं हैं। जिन्हें मैं अपनीं लेखनी के माध्यम से आप तक पहुंचाना चाहती हूं। मैं एक लेखिका हूं, तो किसी भी चीज़ को देखकर मेरे मन में कुछ भावनाएं उमड़ने लगती है, बस उन्हीं से प्रेरित होकर मैंने अपने मन की कुछ बाते व अपनी सोच यहां पर आपके समक्ष रखी है। और साथ ही आशा करती हूं। कि आपको मेरे यह लेख अवश्य पसंद आयेंगे! अगर आपको मेरे द्वारा लिखे गए लेख पसंद आएं हो, तो कृपा कर कमेंट ज़रुर कीजिए। मेरी वेबसाइट को अपना क़ीमती समय देने के लिए सहेदिल से आपका आभार व्यक्त करती हूं! धन्यवाद!
राधे राधे 🙏🙏


विशेष जानकारी –आप सभी की जानकारी के लिए बता दूँ। कि यह सभी लेख स्वयं मेरे द्वारा लिखित है। इसमें मेरे सिवाए अन्य कोई दूसरा भागीदार नहीं है। ये सभी लेख सिर्फ़ और सिर्फ़ पाठकों के मनोरंजन हेतु प्रस्तुत किए गए है।

1. ईश्वर का धन्यवाद


जैसा कि हम सभी जानते हैं। कि सुख दुःख जन्म मृत्यु आना जाना जीवन का एक अहम हिस्सा है। फिर भी हम सभी इस सच्ची से भागते फिरतें हैं। क्योंकि है। तो हम इंसान ही न। जब भी हम पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ता है। तो अक्सर हम उसे सहन नहीं कर पाते हैं। हम सोचते हैं। कि हमें सदा खुशियां ही मिलती रहे। हमारा जीवन बस यूं हीं सरलता से चलता रहे।

मैंने अक्सर यह देखा है। कि अक्सर बुरे समय में हम हर एक छोटी बड़ी बात क्र लिए ईश्वर को दोष देतें हैं। और अपनी परिस्थिति के लिए, ईश्वर को कोसते हैं। कि ऐसा क्यों हुआ, ऐसा क्यों किया, यह सब मेरे ही साथ क्यों होना था मैंने भी कई बार ईश्वर से शिकायत की हर छोटी बड़ी बात के लिए उन्हें कोसा भी और मुंह से यह तक भी निकल गया। कि भगवान-वागवान कुछ नहीं होता। मुझे नहीं करनी इनकी कोई पूजा इन पर विश्वास नहीं है। पर वो कहते ना है, कि हम चाहे जितना जतन कर ले उस ईश्वर से दूर भागने की परंतु चुंबक की तरहं खींचे चले जाते हैं, फ़िर से उसी के पास क्योंकि दुख की घड़ी में उससे बड़ा सहारा और कोई नहीं होता है।


अच्छा आपने कभी गौर किया है। कि जब बे-हिसाब खुशियां हमारे पास होती है। तब की हम हर पल उस ईश्वर का धन्यवाद करे है। तब तो हम बड़े गुमान से के साथयही कहतें हैं। कि मैंनें करोड़ो की प्रॉपर्टी ली है। मेरे पास महंगी कार है। या कुछ भी जो अच्छा किया। तब वह मैंने ही किया कभी यह कहा है। कि सब ईश्वर ने किया है। ब ईश्वर की देन है। और जब हमारे अपने ही कर्मों की वजह से ठीक इसी का विपरीत होता है। यानी हमारे ऊपर कोई भी विपत्ति आती है। या हमें कोई दुःख मिलता है। तो उस वक़्त हम सारा बिल ऊपर वाले पर फाड़ देते हैं। हम उस ईश्वर को से सवाल करतें हैं। कि तूने सब कुछ ठीक क्यों नहीं किया। कि तूने हमें इतनी बड़ी सज़ा क्यों दी?

कभी सोचा है। कि उस ईश्वर को कितनी तक़लीफ़ होती होगी। जब हर रोज़ करोड़ों लोग उसे कोसते होंगे। कभी सोचना कि, यदि हमारी गलती नहीं होने पर भी कोई हम पर बेमतलब आरोप लगाता है। तो, उस वक़्त हम मरने-मारने पर उतारू हो जाते हैं। सोचो उसे ईश्वर की क्या गलती उसने तो सारी सृष्टि की रचना की है। उस ईश्वर ने तो हमें बनाया है। फ़िर हम उसे क्यों कोसते हैं।हम यह क्यों भूल जातें है कि, हम सभी यहाँ अपने-अपने कर्म लेकर आते हैं। भाग्य ऊपर वाला नहीं लिख़ता? हम स्वयं अपने कर्मों के द्वारा अपना भाग्य निर्माण करते हैं।

यदि ईश्वर को ही सब कुछ ठीक करना होता। श्री राम जी वनवास जाते ही नहीं ?क्योँकि रावण की मृत्यु श्री राम जी के हाथों होनी तय थी। इसीलिए श्री राम और रावण का युद्ध हुआ। नहीं तो यह युद्ध कभी होता ही नहीं। और वहीं दूसरी तरफ़ अगर भगवान चाहते तो, महाभारत का युद्ध होने ही क्यों देते? यदि सब कुछ ठीक करना होता करना ईश्वर के हाथों में होता तो, दुर्योधन कभी गलत मार्ग पर जाता ही नहीं। एक तरफ़ जहाँ कौरवों ने श्री कृष्ण जी से विशाल सेना माँगी। और दूसरी तरफ़ पांडवों ने स्वयं श्री कृष्ण को ही माँग लिया।

बस यही सत्य है। सुःख-दुःख जीवन के सिक्के के दो पहलू है। अगर इस संसार मे आए हैं। तो दोनों परिस्थितियों का सामना करना ही पड़ेगा। इसीलिए दुःख हो या सुख हमें ईश्वर के फैसले पर कभी उंगली नहीं उठानी चाहिए। वह परमपिता तो सबका है। हम सब उसी की संतान है। हमें परमात्मा से अपने कर्मों की माफी मांगनी चाहिए
और साथ ही अपने कर्म सदा अच्छे रखना चाहिए।

2. शहर की देखा देखी

वह हरा भरा गांव वह ऊंची- नीची पगडंडिया वह अमरूद के बाग़ खेत खलिहान ताज़ी हवा भोले भाले लोग गांव का स्कूल जी हाँ,मैं बात कर रही हूं। अपने गांव की। उत्तराखंड का एक छोटा सा शहर जो कि कभी एक छोटा सा प्यारा सा गांव हुआ करता था, वहां की साधारण सी दिनचर्या सादा भोजन। बच्चों के हाथ में चिप्स चॉकलेट की जगह देसी घी के बने लड्डू होते थे, घर में बनाए गए आलू के चिप्स स्नैक्स के रूप मे बच्चे बड़े शौक से खाते थे। उस वक्त आजकल की तरहां रेडी टू ईट फ्रोज़न फ़ूड नहीं होते थे। चावल से बनाई गई चकली होती थी। जो घर पर ही बनाई जाती थी। नूडल्स की जगह नमकीन सेवईं खाई जाती थी। तब के बच्चे हष्ट-पुष्ट हुआ करते थे। हर किसी के घर में फलों से लदे पेड़ हुआ करते थे।

घर-घर में मौसमी सब्जियां उगाई जाती थी। जैसे किसी के घर में तुरई ज़्यादा हो गई। या किसी के घर में लौकी लदी पड़ी है। तो पड़ोसी आपस में मिल बाटकर खा लिया करते थे, इस तरहां मिल बांटकर अलग-अलग सब्ज़ी का मजा लिया करते थे। पड़ोसी भी रिश्ते निभाने में कभी पीछे नहीं हटते थे। अगर पड़ोसी का बच्चा कभी स्कूल से भूख प्यासा आए और घर में पसंद की दाल सब्जी न मिलने पर उदास हो जाए। तो दौड़कर पड़ोस वाली चाची ताई के घर जाकर कहता चाची, आज आपने कढ़ी बनाइ है, न! ज़रा एक कटोरी देना। मैं घर से आपके लिए तुअर की दाल ले आता हूं। आज मेरा दाल खाने का मन नहीं है, तो सामने से चाची कहती हां-हां बेटा बिल्कुल अभी लाती हूं। मैं तेरे लिए,

तो ऐसी होती थी। गांव की ज़िंदगी। वह सर्दियों का मौसम आज भी याद है. सारी आंटियां धूप में बैठकर स्वेटर बनाया करती थी। एक स्वेटर जैसे एक ही दिन में तैयार हो जाता था। वह कैसे? ऐसे की आज बंटी का बनेगा। तो, कल सीमा का यानी कि एक के पास आगे का पल्ला, एक के पास पीछे का पल्ला, एक के पास आस्तीन तो एक के पास एक आस्तीन। तो, दूसरी के पास दूसरी आस्तीन। इस तरहां से हो गया न, एक दिन में एक स्वेटर तैयार! जहां हर काम मिल बांटकर होता था।

पर धीरे-धीरे लोग काम की तलाश में शहर आने लगे शुरू-शुरू में तो उन्हें गांव की याद सताने लगी। फ़िर जैसे धीरे-धीरे वे शहर की चकाचौंध में खो से गए अब जब भी वे शहर से गांव आते तो उन्हें गांव की सौंधी मिट्टी भी धूल लगने लगती। शहर की देखा देखी में गांव में भी पक्की सड़क बनवाई गई। सड़क बन गई। चलो अच्छी बात है, पर इससे गांव और शहर का फांसला थोड़ा कम हो गया। जो कि पहले तो अच्छा लगा किंतु बाद में घातक साबित होता गया शहर की देखा देखी में धीरे-धीरे लोगों ने जमीनो से पेड़ों को काटकर बड़े-बड़े मकान बनवाए। दुकानें बनवाई।

जो सब्जियां खेत में हरी भरी लगी हुई दिखती थी। अब दुकानों में मुरझाई सी पड़ी मिलतीं हैं, अब वहां पर बच्चे गिल्ली डंडा कबड्डी नहीं खेलते। सबके हाथों में स्मार्टफोन नज़र आता है। गांव और शहर का फांसला कम क्या हुआ, गांव कब शहर में बदलता गया पता ही नहीं चला। अब तो पड़ोस भी अपना सा नहीं लगता। पहले सबके आंगन खुला हुआ करते थे, अब तो बड़े-बड़े गेट लग गए हैं। अब तो सभी की खिड़कियां भी बंद रहती हैं, किसके घर में खाने में क्या पका है। उसकी ख़ुशबू भी बंद दरवाज़े में ही कहीं खो सी गई है, हम शहर के आकर्षण में ऐसे फंसे की प्यारे से गांव को सिटी बना दिया। अब तो गांव कविता और किताबों में ही दिखते हैं, या फ़िर कहीं ऊंचे पहाड़ों में ही मिलते हैं।
शहर की देखा देखी में शायद वो प्यारा सा “गांव” जैसे कहीं खो सा गया..

3.ज़िंदगी का सफ़र


हम सब यही जानते हैं कि ईश्वर ने हमें यह ज़िंदगी दी है। हमें इस जीवन को हंसी खुशी जीना चाहिए। अच्छा हममें से कितने लोग सही मायने में जानते हैं। कि आख़िर सही मायने में ज़िंदगी क्या है? सब का तो पता नहीं, पर जहां तक मेरा मानना है। तो मैं कहूंगी, कि,


ज़िंदगी एक यात्रा है। और हम सभी यहां पर सफ़र कर रहे हैं। इस सफ़र में बहुत उतार-चढ़ाव आते हैं। जीवन रूपी यह बस जिसमें हम सभी सवार हैं। कभी-कभी यह बहुत हिचकोले खाती है। साधारण सी रफ्तार से चलने वाली ज़िंदगी, में अचानक से दुःखों की ढलान आ जाती है। तो वहीं अचानक से डर की चढ़ाई भी आती है। यह चढ़ाई चढ़ते-चढ़ते अक्सर बेबसी से सांसे फूलतीं जाती है। कभी सुख के एहसास से ज़िंदगी की गाड़ी मक्खन सी दौड़ी चली जाती है! यह जिंदगी है। साहब!

ज़िंदगी का कोई पता नहीं यारों ये न जाने कब किसको किससे जोड़ती जाती है। ये हर रोज़ कितने रिश्ते तोड़ती है। और पल भर में कितने रिश्ते जोड़ती जाती है। किसी की इससे अपने आप बन जाती है। तो किसी की सांसे थम जातीं है। कहनें को तो एक छोटा सा शब्द है। “ज़िंदगी” पर एक बहुत बड़ा सबक है। ज़िंदगी एक किताब है, जिसका हर एक पन्ना पढ़ना बेहद ज़रूरी है। जिंदगी कभी एक कलम है। हम जैसी सोच के साथ इसे लिखेंगे यह वैसी ही कहानी तैयार हो जाएगी। जिंदगी कभी जीत है। तो कभी हार है। जिसकी कोई मिसाल नहीं, यही बेमिसाल है, ज़िंदगी। एक सबक है। ज़िंदगी जिसने इसे खास अंदाज से जीना सीख लिया। उसकी फ़िर गुलाम है, ये ज़िंदगी।

4. ज़िम्मेदारी कोई बोझ नहीं ?


बल्कि जिम्मेदारी तो इंसान को और मज़बूत बनाती है, क्योंकि जिम्मेदारी एक ऐसा उपटन है!
जिसे धारण करने से इंसान का भविष्य निखरता है, वह एक ज़िम्मेदार इंसान बनता है, जिम्मेदारी एक ऐसे टॉनिक के समान है, जो इंसान के अंदर स्पूर्ति का संचार करता है, उसे कभी थकनें नहीं देता। हमें ज़िम्मेदारी को प्रसाद की तरह ग्रहण करना चाहिए, ज़िम्मेदारी एक ऐसा सौभाग्य है, जो हर किसी के हिस्से में नहीं आती, यह तो उसी को मिलती है, जो इसे निभानें की काबिलियत रखता है, यदि आपके हिस्से में भी कभी ज़िम्मेदारी आए तो इसका दिल से स्वागत कीजिएगा। और पूरी ईमानदारी के साथ निभाईयेगा फ़िर देखिए आपको आपकी मंजिल कैसे नहीं मिलती, ज़िम्मेदारी आपको देर तक सोने नहीं देती। यह आपको गलत रास्ते पर जाने नहीं देती। आप निरंतर प्रयास करना सीख जाते हैं, यह एक ऐसा हथौड़ा है, जो इंसान को पीट-पीट कर कुंदन बना देता है।

ज़िम्मेदारी एक ऐसा गुण है। जो हमें अपने जीवन में एक के बाद एक कई सफलताएं दिलाता है। और ये हमें अपने कार्यों के प्रति सचेत और ईमानदार बनाता है। ज़िम्मेदारी से हम अपने लक्ष्यों को धैर्य पूर्वक प्राप्त कर सकते हैं। और अपने जीवन को सार्थक व सफ़ल बना सकते हैं।

जिम्मेदारी का अर्थ है। अपने कार्यों के प्रति उत्तरदायित्व को समझना यह हमें अपने कार्यों को धैर्य पूर्वक समय पर और ईमानदारी से पूरा करने के लिए प्रेरित करता है। ज़िम्मेदारी से हम अपने जीवन को व्यवस्थित और अनुशासित बनाना सीख़ जाते हैं।

सच मानिए! ये जो ज़िम्मेदारी हैं न! यह हमें अपने जीवन में सफ़ल बनाती है, हमें अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने में हमारी सहायता करती है, और हम अपने जीवन को सार्थक बनाने में सक्षम हो पाते है। ज़िम्मेदारी से हम अपने परिवार, समाज, और देश के प्रति भी उत्तरदायित्व को निभा पाने में सफ़ल हो पाते हैं!

जिम्मेदारीवो महत्वपूर्ण गुण है, जो हमें अपने जीवन में सफ़ल बनाती है। यह हमें अपने कार्यों के प्रति सचेत और ईमानदार बनाती है। हमें अपने जीवन में जिम्मेदारी को अपनाना चाहिए और अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए निरंतर कार्यरत रहना चाहिए..

यदि आपके हिस्से में भी कभी ज़िम्मेदारी आए तो इसका दिल से स्वागत कीजिएगा। और पूरी ईमानदारी के साथ निभाईयेगा फ़िर देखिए आपको आपकी मंजिल कैसे नहीं मिलती,

5. कहानीं कपड़ों की

क्या कहूं? कहां से कहूं? पर कहना भी जरूरी है, न जाने कौन सा कीड़ा काट खाया है, हमें! कि मुझे लिखने का जुनून है।खिड़की के पास दो पल क्या बैठी बाहर नज़र पड़ी। तो, देखा कि, बाहर मस्त हवा चल रही थी। मार्च का महीना शाम की गुनगुनी सी ढ़लती धूप थी। रस्सी पर कपड़े लहरहा रहे थे। ऐसा लग रहा था, कि मानो वे मंद मंद मुस्कुरा रहे हों । दिन भर की कड़ी धूप थी। अचानक ठंडी बयार चलने लगी, तो मानो जैसे वह भी मुस्कुरा रहे थे। अच्छा, एक बात और गौर कीजिएगा! कभी देखना गर्मी की भरी दोपहर में कपड़ों को सूखने डालो तो, थोड़ी देर बाद में रूआं से दिखते हैं। उनके रंग भीउड़े-उड़े से रहते हैं। और वे पापड़ से नज़र आते हैं!

और भैया सर्दी के मौसम का कहना ही क्या! कभी सर्दी के मौसम में देखना जब हफ्तों भर सूरज के दर्शन नहीं होते। तो बेचारे ये कपड़े सिले-सिले से ही पड़े रहते हैं। ऐसा लगता है। कि मानो इन्हें भी सर्दी ज़ुकाम हो गया है। और कभी जब सर्दी में मस्त कड़क धूप निकली हो, और सूर्य की किरणें सीधे इन कपड़ो पर पड़ती है। तो हर एक कपड़ा अपने आप में कमाल सा दिखता है। बस अंदर से फील करने की ज़रूरत है! जीवन के हर एक हिस्से में कहानी है,

चलिए अब जब कपड़ों की बात चल ही गई है! तो, हर किसी के साथ तो मैं नहीं कह सकती लेकिन मिडिल क्लास के साथ यह ज़रूर होता होगा और हर किसी के साथ होता होगा, कि जब भी कोई नया कपड़ा आता है। तो उसको कैसे सहेज कर रखा जाता है, एकदम से उसको संभाल संभाल कर शॉपिंग बैग से निकाला जाता है। उसके बाद उसको पहनने के बाद बड़ी सावधानी के साथ कुछ खाया पिया जाता है। कपड़ों को उतारने के बाद इधर-उधर नहीं फेंका जाता है।

और जैसे ही उसको पहली बार धोने की बारी आती है, तो उसके लिए एक खास डिटर्जेंट मंगाया जाता है, जैसे ईजी वॉश में धोया जाता है। उसके बाद उसको मशीन में ड्रायर भी नहीं किया जाता है, कि कहीं कपड़े को कोई चोट न पहुंच जाए, कपड़े सुखाने वाली रस्सी को बार-बार पोंछा जाता है! फ़िर बड़े प्यार से छांव में उसे सुखाया जाता है! और यह सिलसिला उसके साथ दो-तीन बार ही, हो पता है उसके बाद फिर उसको उसकी औकात दिखा दिया जाता है, वह सीधा मशीन के अंदर कपड़ों की ढ़ेरी में चला जाता है! और बेचारा कपड़ा अपने रूटीन में आ जाता है।

यह तो थी कपड़ों की कहानी ऐसी ही कईं रोचक कहानियों के साथ हमसे जुड़े रहे।

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