Best moral stories in Hindi (बच्चों के लिए शिक्षाप्रद नैतिक कहानियाँ,)

कहानियाँ ऐसी जो एक सीख दे जाएं।

कुछ कहानिया ऐसी होती है। जो हम बचपन से सुनते चले आ रहे है। और वो आज भी पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है। जैसे कि: पौराणिक कथाएँ, लोक कथाएँ, दन्त कथाएँ। एवं “नैतिक कहानियाँ” आइये नैतिक कहानियों की बात करतें हैं।

.ऐसी लघु कहानियाँ जो वास्तविक स्तिथियों को दिलचस्प एवं रोमांचक तरीके से दर्शाती है।

.नैतिक कहानियाँ दुनियाँ के अलग अलग भागों एवं भाषाओं में उपलब्ध है।

.नैतिक कहानी के माध्यम से बच्चों को एक बेहतरीन सीख़ देने में मदद मिलती है।

.नैतिक कहानियां छोटी और सरल भाषा में होती है। जो बच्चों को आसानी से समझ आ जाती है।

आज की आम भाषा में बच्चें नैतिक कहानियों को ” moral stories” के नाम से जानते हैं। हमारे इस पेज में आपको कई दिलचप्स और रोमांचक बाल कहानियां पढ़ने को मिलेंगी जो कभी हम सभी की दादी नानी सुनाया करतीं थीं।

Disclaimer,(अस्वीकरण )

इस पेज़ में प्रस्तुत सभी कहानियाँ, कुछ बचपन की सुनी सुनाई है। तो कुछ कहानियाँ जो विभिन्न स्रोतों द्वारा जुटाई गईं है। जो कि पाठको के मनोरंजन के लिए यहाँ प्रस्तुत है।

1.बोलने वाली गुफ़ा

एक जंगल में एक शेर रहता था। एक दिन वह शिकार की तलाश के लिएनिकला और घूमते घूमते थक गया। और अब वह आराम करने के लिए जगहं तलाशने लगा। की अचानक से उसे एक बड़ी सी गुफ़ा दिखाई दी। शेर ने अंदर झांकर देखा उसे को दिखाई नहीं दिया। शेर को लगा कि कोई न कोई तो इस गुफ़ा में अवश्य होगा। लेकिन उसे वह गुफ़ा इतनी पसंद आई कि उसका मन करने लगा कि क्यों ना हमेशा के लिए इसी गुफ़ा में रहा जाए। वह गुफ़ा एक सियार की थी। जब थोड़ी ही देर में शाम हो गई। और सियार अपनी गुफ़ा के बाहर पहुंचा तो उसे गुफ़ा के बाहर शेर के पैरों के निशान दिखाई दिए। सियार बहुत होशियार था। वह सावधान हो गया। क्योंकि वह शेर का शिकार नहीं बनना चाहता था! गुफ़ा में शेर है, या नहीं, यह पता करने के लिए सियार ने एक चाल चली। वह ज़ोर से चिल्लाया, “ओ गुफ़ा ! अगर तुमने हर रोज़ की तरहं मुझसे बात नहीं की, तो मैं यहाँ से चला जाऊँगा।”

शेर ने सियार की आवाज़ सुनी तो उसके मन में लालच आ गया। उसने सोचा कि रहने के लिए घर तो मिल गया है। और अब तो, शिकार भी ख़ुद चलकर आ गया है। और उसनें गुफ़ा के बदले ज़वाब देने का निश्चय किया। उसने दहाड़ मार दी। शेर की दहाड़ सुनकर चतुर सियार समझ गया। कि उसकी गुफा के अंदर शेर छिपा बैठा है। और वह तुरंत अपनी जान बचाकर भाग गया।

सबक़

इस कहानी से हमें यह सबक़ मिलता है। यदि हमें किसी बात पर संदेह हो तो हमें सूझबूझ के साथ अपनी बुद्धि का प्रयोग करना चाहिए।

2. ज़िद्दी मेमना

एक बकरी एक हरे भरे से जंगल में अपने बच्चे के साथ रहती थी। जो की बेहद ज़िद्दी और शरारती था। एक दिन सुबह, उछलते-कूदते मेमका घने जंगल की ओर जाने । उसकी माँ उसे मना करते हुए बोली, कि “बेटा घने- अंधेरे जंगल में अकेले मत जाओ, अभी तुम छोटे हो, वहाँ बहुत सारे जंगली और खतरनाक जानवर होंगे। बेटे, वहाँ अकेले मत जाओ।”

पर वह उसने अपनी माँ की बात नहीं सुनी और माँ से बोला – “माँ, चिंता मत करो। अब मैं बड़ा हो गया हूँ। मैं ज्यादा दूर नहीं जाऊँगा,”ऐसा बोलकर नन्हाँ मेमना उछल-कूद करते हुए घनें जंगल की और बढ़ चला। और खेल में मग्न हो गया। और उसे पता ही नहीं चला कि वह जंगल में कितने दूर आ गया है। जल्द ही अंधेरा हो गया। अब वह वापस अपनी माँ के पास जाना चाहता या, लेकिन बेचारा डरा-घबराया मेमनाघर का रास्ता भूल गया। वह ग़ुम हो चुका था। और उसे समझ में नहीं आ रहा था, कि वह क्या करे। वह अपनी माँ को पुकारते हुए चिल्लाने लगा।

उसे अपनी माँ की और अपनें आरामदायक घर की याद सताने लगी। उसे महसूस हुआ कि उसनें अपनी माँ की बात न मानकर बहुत बड़ी गलती कर दी। तभी, एक भेड़िया वहाँ आ पहुँचा। और मेमने को देखर सोचनें लगा ,”अरे! आज रात तो मैं इसी मेमने का स्वादिष्ट गोश्त खाऊँगा !”भेड़िए ने झपटकर मेमने को दबोच लिया। बेचारे मेमने को अपनी माँ की बात न मानने का दंड भुगतना पड़ा।

सबक़:

इस कहानी से हमें यह सबक़ मिलता है। कि माता-पिता हमेशा अपने बच्चों का भला चाहतें है। इसलिए उनकी हर बात हमेशा माननी चाहिए।

3.झूठा दोस्त

एकबार की बात है। हिरण और एक कौवा आपस में पक्के दोस्त थे। एक दिन कौवे ने हिरण को एक सियार के साथ देखा सियार बहुत चालाक जानवर माना जाता है। कौवे ने अपने दोस्त हिरण को समझाया कि सियार की दोस्ती तुम्हारे लिए ठीक नहीं तुम्हें उस पर भरोसा नहीं करना चाहिए। हिरण ने कौवे की बात को अनसुना कर, उसकी सलाह पर ध्यान नहीं दिया। और सियार के कहने पर उसके साथ एक खेत में चला गया। और हिरण वहां लगे जाल में फंस गया। सियार उसे कहने लगा मैं तो किसान को बुलाने जा रहा हूं। थोड़ी देर बाद किसान आएगा, और तुम्हें मार डालेगा। और वह मुझे भी तुम्हारे मांस का कुछ हिस्सा देगा।

हिरण चिल्लाने लगा कौवे ने अपने दोस्त के चिल्लाने की आवाज़ सुनी, तो तुरंत उसकी सहायता के लिए आ गया। उसने हिरण से कहा कि वह ऐसे लेट जाए जैसे वह सचमुच मर गया हो, थोड़ी ही देर में सियार की आवाज़ सुनकर किसान वहां आ पहुंचा। उसने देखा कि एक जाल में हिरण फंस कर मरा पड़ा है। उसने जाल खोल दिया। और जाल के ख़ुलते ही हिरण को भागने का मौका मिल गया। और वह तुरंत उछलकर वहां से तेजी से भाग गया। गुस्साए किसान ने सियार की ख़ूब पिटाई की और उसे वहां से भगा दिया।

सबक़

इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है। कि दोस्ती हमेशा सोच समझ कर करनी चाहिए। .

4 . चूहा बन गया शेर

एक दिन एक साधु रास्ते से गुज़र रहा था। तभी उसने देखा कि एक बिल्ली चूहे को खदेड़ रही थी। साधु ने अपनी अलौकिक शक्तियों से उस चूहे को बिल्ली बना दिया। और उसकी जान बच गई। एक दिन उसी बिल्ली के पीछे एक कुत्ता दौड़ पड़ा अब साधु को उस पर फ़िर से दया आ गई, तो उसने उसको कुत्ता बना दिया। और एक बार फ़िर से उसकी जान बचाई। एक बार उस कुत्ते पर शेर ने हमला कर दिया, तो साधु ने तुरंत उस कुत्ते को शेर बना दिया।

पर गांव वाले इस नए शेर का रहस्य जानते थे। और सभी गांव वाले उसका मज़ाक़ उड़ाते थे। क्योंकि उनके लिएतो वह एक पिद्दी सा चूहा ही था। जो आजकल शेर बना फ़िरता था। अब इस शेर ने सोचा कि जब तक यह साधु जीवित रहेगा, सब लोग उसका ऐसा ही मजाक उड़ाते रहेंगे। क्यों न में इस साधु को मर कर खा जाऊं। साधु ने इसशेर को अपनी और आते देखा तो उसके इरादे समझ गया। साधु बोला जाओ तुम फ़िर से चूहा ही बन जाओ तुम एहसान फ़रामोश हो, और शेर बनने के लायक नहीं हो, और इस प्रकार वह शेर फिर से सिकुड़ कर दोबारा से चूहा बन गया।

सबक़

इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है। कि बुरे वक़्त में जो हमारा साथ देता है। उसके साथ कभी छल नहीं करना चाहिए

5.ऊँट, सियार और शेर

एक जंगल में एक शेर रहता था। एक तेंदुआ एक सियार और एक कौवा उसके सेवक थे। एक दिन उन्हें राह भटका हुआ एक ऊँट मिला। शेर ने अपने सेवको से कहा, “उसे बोल दो कि वह हमारे साथ सुरक्षित रह सकता है। और उसे यहां ले आओ शेर के तीनों सेवक ऊँट को शेर के पास लेकर आ गए। शेर ने ऊंट से वडा करते हुए कहा “तुम हमारे साथ निडर होकर रहो” ऊंट मान गया। और वहीं रहने लगा एक दिन शेर की हाथी से लड़ाई हुई। और हाथी ने उसे बुरी तरह से घायल कर दिया। कमज़ोरी के कारण अब शेर शिकार करने लायक नहीं था। उसने अपने सेवकों से कहा कि उसको भोजन की आवश्यकता है। उसके लिए कोई जानवर लेकर आए। तेंदुआ सियार और ऊंट ने हर जगह तलाश किया लेकिन उन्हें कोई जानवर नहीं मिला। सियार बड़ा चतुर और धूर्त था। सियार कौवे को एक और ले जाकर बोला। हमारे पास ऊंट तो है, उसको ही मर डालतें हैं। और उससे ही अपना पेट भर लेते हैं। कौवा सियार को डांटते हुए बोला कि “तुम ऐसा कैसे सोच सकते हो? तुम्हें पता नहीं कि हमारे राजा ने उसकी जान बचाने का वादा किया है। इस पर सियार ने ज़वाब दिया यह सब तुम मुझ पर छोड़ दो। मैं राजा को ऊंट को मार डालने के लिए मना लूंगा।


सियार शेर के पास जाकर बोला। माफ़ करना महाराज हमें तो एक भी जानवर नहीं मिला। मेरी आपसे विनती है। कि इस ऊंट को ही मार कर खा लेते हैं। शेर क्रोधित होकर बोला अगर तुमने दोबारा से यह बात कही तो मैं सबसे पहले तुम्हें ही खा जाऊंगा। मैंने उसकी सुरक्षा का वचन दिया है। आप सही कहते हैं, महाराज। लेकिन ऊंट को हमने अपना मेहमान माना था। अगर वह आपका आभार मानते हुए ही हमारा भोजन बनने के लिए तैयार हो जाए। तो उसकी बात मानने में कोई पाप नहीं है।

शेर मान गया। सियार ने अपने साथियों से कहा दोस्तों हमारे राजा बहुत दयनीय स्थिति में है। और वह इतने कमज़ोर हो गए हैं। कि, वह शिकार तक नहीं कर पा रहे हैं। हमारे पास अवसर है। कि हम अपने आप को उनका भोजन बनाकर उनकी सहायता करें। चलो हम अपने-अपने शरीर उन्हें दे देते हैं। वे सभी आंखों में आंसू भरकर शेर के पास आए और बोलने लगे। महाराज हमने जंगल का कोना-कोना छान मारा। हमें कोई जानवर नहीं मिला।

सबसे पहले कौवा बोला “महाराज मेरा आपसे अनुरोध है। किआप मुझे ही मार कर खा जाए”। अब निष्ठा दिखाने की बारी सियार की थी। “सियार शेर से बोला महाराज मेरी विनती है, कि आप मुझे भी खा लीजिए”। फिर तेंदुआ भी पीछे कहां रहता तेंदुआ भी बीच में बोल पड़ा “अरे महाराज मुझे मौका दीजिए मैं कि अपनी जान देखकर आपका पेट भर सकूं”। यह सब सुनकर ऊंट सोच में पड़ गया। यह सारे सेवक तो अपने राजा से अपनी-अपनी बात कह चुके हैं। लेकिन अभी तक शेर ने किसी को भी नहीं खाया। मुझे भी शेर से अपनी बात कह देनी चाहिए। ऊंट भी आगे जाकर शेर से अनुरोध करने लगा। उसनें जैसे ही शेर से अनुरोध किया कि महाराज आप मुझे खा लीजिए सियार तेंदुआ और कौवा तुरंत उस पर झपट पड़े। और पल भर में ऊँट के टुकड़े-टुकड़े कर डाले। उसके बाद शेर सहित सारे जानवर मिलकर उसे खा गए।

सबक़

इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है। कि पहले पूरी बात जान लेनी चाहिए। और कोई भी फ़ैसला जल्दबाज़ी में नहीं करना चाहिए। नहीं तो लेने के देने पड़ जातें हैं।

6. चिड़िया की ज़िद

एक बार की बात है। एक चिड़िया अपनी चोंच से विशाल समंदर में से पानी की बूंद बार-बार बाहर लेकर फेंक रही थी। तभी वहां से एक अन्य पक्षी गुज़रा। और उसनें चिड़िया से पूछा की बहन तुम यह क्या कर रही हो? तो, चिड़िया बोली कि “इस समंदर ने मेरे बच्चे डूबो दिए। अब मैं इसे पूरी तरहं सुख दूंगी। और अपने बच्चों को वापस ले आऊंगी”! फ़िर दूसरे पक्षी ने कहा, कि”बहन यह तो पागलपन है। पूरा जीवन गुज़र जाएगा तुम्हारा ! पर तुम इस समंदर को नहीं सुख़ा पाओगी! यह पागलपन छोड़ दो” पहली चिड़िया बोली- देना है, तो साथ दीजिए सलाह नहीं चाहिए! फिर वह पक्षी क्या करता।

तो वह भी चिड़िया का साथ देते हुए समंदर से बूंद बूंद पानी बाहर फेंकने लगा उसके बाद एक विशाल पक्षियों का झुंड वहां से गुज़र रहा था। उनका भी यही सवाल था कि यह क्या पागलपन है। चिड़िया का भी यही जवाब था। कि देना है। तो साथ दीजिए सलाह नहीं चाहिए। और फ़िर क्या इसी तरह हजारों पक्षी काम पर लग गए। और विष्णु जी के वाहन गरुण जी के कानों तक भी यह बात पहुंची। अब वह भी चिड़िया की प्रजाति से जुड़े थे, तो उनका शामिल होना भी ज़रूरी था।

तो वे विष्णु जी के पास गए। और पूरी बात बताते हुए बोले- प्रभु मुझे उस चिड़िया की मदद करने के लिए जाना है। विष्णु जी बोले तुम चले जाओगे तो मेरा यहां काम रुक जाएगा। वैसे भी यह पागलपन है। तुम लोग उस विशाल समुद्र को कैसे सुख़ा पाओगे। तब गरुड़ जी बोले भगवान देना है, तो साथ दीजिए सलाह नहीं चाहिए। फिर क्या था स्वयं विष्णु जी लग गए कार्य पर और समुद्र सूख जाने के डर से थर-थर कांपने लगा और उसने स्वयं प्रकट होकर क्षमा मांगते हुए चिड़िया के बच्चे लौटा दिए।

सबक़

इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है। कि हमें किसी के बुरे समय में सलाह न देकर उस वक्त उसका साथ देना चाहिए ताकि उसकी हिम्मत और हौंसला बढ़ाया जा सके!!

7.सोचने का नज़रिया बदलें

एक समय की बात है। एक राहंगीर तपती दोपहर में, किसी काम से, दूसरे शहर जा रहा था। तभी, अचानक एक गांव के बीच में ही, उसकी मोटरसाइकिल बंद पड़ गई! उसने लोगों से पूछा, कि, “यहां आस-पास कोई गैराज या कोई वर्कशॉप है? जहां पर मोटरसाइकिल ठीक हो सके”! तब, कुछ लोगों ने बताया कि, “यही कोई एक डेढ़ किलोमीटर दूर पर होगा”। उसने गांव वालों का धन्यवाद कर किया और आगे बढ़ने लगा। चलते-चलते उसे पसीना आने लगा, क्योंकि, धूप बहुत तेज़ थी। तभी, उसे सड़क किनारे एक छायादार पेड़ दिखाई दिया। और वह कुछ देर पेड़ की छांव में सुस्ताने लगा। वहां पर आसपास काफी घर थे।

तभी अचानक, सामने के एक घर का गेट खुला। वहां से एक आदमी आया, और कहने लगा। कि, “क्या बात है, भाई यहां क्यों खड़े हो”? राहंगीर ने पूरी बात बताई। कि, “मेरी मोटरसाइकिल अचानक बीच रास्ते में ख़राब हो गई बस उसे ही बनवाने जा रहा था, पर, धूप बड़ी तेज है! तो सुस्ताने की खा़तिर पेड़ की छांव पकड़ ली। फ़िर वह ग्रामीण बोला कि “हां भाई गर्मी तो बहुत है! अगर आपको प्यास लगी है, तो आपके लिए पानी ले आऊं”! इतने में राहंगीर बोला कि “हां प्यास तो लगी है, अगर आपको परेशांनी न हो तो थोड़ा, पानी पिला ही दीजिए”! “अभी आता हूं”, कहकर ग्रामीण अपने घर के भीतर चला गया।

राहंगीर के मन में उस व्यक्ति के प्रति अच्छी सोच जागृत हो गई। वह मन ही मन सोचनें लगा कि, “कितना अच्छा व्यक्ति है! मेरे लिए पानी लेने गया है”, परंतु जब वह व्यक्ति 5-10 मिनट तक नहीं आया, तब एक बार फ़िर से उस ग्रामीण के प्रति राहंगीर की सोच बदल गई। और वह मन ही मन सोचने लगा कि, “कैसा अजीब इंसान है! पानी का बोल कर गया और भूल गया, जब पानी पिलाना ही नहीं था, तो, पूछा ही क्यों”? तब अचानक से गेट खुलने की आवाज़ आई, सामने से वह ग्रामीण आता दिखाई दिया उस ग्रामीण के हाथ में एक बड़ा सा गिलास था। वह राहंगीर के पास पहुंचा और माफ़ी मांगते हुए, कहने लगा, “माफ कीजिए आने में ज़रा देर हो गई, लेने तो मैं पानी ही गया था, पर फ़िर ख़्याल आया कि धूप बड़ी तेज है। आपको पसीना भी बहुत आ रहा है, तो क्यों ना आपके लिए नींबू की शिकंजी बनाई जाए!

तो एक बार फ़िर से उस राहंगीर की सोच, उस ग्रामीण प्रति बदल गई। और वह सोचने लगा, कि “मैं भी कितना ख़राब हूं, इतने अच्छे व्यक्ति के बारे में न जाने क्या-क्या सोच रहा था? यह तो काफी सज्जन इंसान निकले”! और फ़िर धन्यवाद करते हुए उस राहंगीर ने जैसे ही शरबत का गिलास मुंह से लगाया! तो, उसके मुंह का स्वाद बिगड़ गया! क्योंकि नींबू पानी में चीनी ही नहीं थी। वह एकदम, बेस्वाद, खट्टा पानी लग रहा था।

तब फ़िर से एक और बार उस राहंगीर की सोच उस ग्रामीण के प्रति बदली! और मन ही मन सोचने लगा। कि, “कैसा बेवकूफ इंसान हैं है, बेस्वाद सा नींबू पानी पिला दिया इससे अच्छा तो सादा पानी ही ले आता”। तभी अचानक से ग्रामीण ने अपनी जेब से दो पुड़िया निकाली और कहने लगा “अरे रुकिए भाई साहब! मैं चीनी और शिकंजी मसाला साथ लाया हूं। मैंने सोचा कि आप न जाने शक्कर लेते हो या नहीं? और लेते भी हो तो कितनी? और आपको नींबू पानी में मसाला अच्छा लगता होगा? या, नहीं?बस यही सोचकर यह सामग्री अलग से ले आया! यदि आप को चीनी से परहेज न हो, तो, आप चीनी मिला लीजिए। और साथ में ही यह मसाला भी घोल लीजिए”। फ़िर क्या था! उस राहंगीर की सोच फ़िर से बदली वह सोचने लगा, कि “यह कितने सज्जन पुरुष है! यह मेरे बारे में इतना सोच रहे थे। और मैं ना जाने क्या-क्या सोचने लगा। रांहगीर ने नींबू पानी पिया और ग्रामीण का धन्यवाद करते हुए आगे बढ़ गया।

सबक़

इस कहानीं से हमें यह सीख मिलती है। कि, सामने वाले के बारे में बिना सोचे समझे,अपनी सोच को इतनी जल्दी नहीं बदलना चाहिए! और साथ ही हमें अपने सोचनें का नज़रिया बदलना चाहिए!

8. शेर और चतुर खरगोश


एक जंगल में एक बहुत शक्तिशाली शेर रहता था। और वह पूरे जंगल में निडर होकर घूमता रहता था। और जो भी जानवर उसे दिख जाता वह से मारकर खा लेता। इस बात से जंगल के सारे जानवर बहुत चिंतित थे। एक दिन सारे जानवर एक साथ शेर के पास पहुंचे और कहने लगे। “आप हमारे राजा है। हम नहीं चाहते कि आपको शिकार करने के लिए इधर-उधर भटकना पड़े। तो हम लोगो ने सोचा है। कि प्रतिदिन एक जानवर आपके पास भोजन के लिए भेज दिया करेंगे। शेर राजी हो गया और बोला लेकिन याद रखना। हर दिन दोपहर खाने के समय से पहले एक जानवर मेरी गुफा में पहुंच जाना चाहिए। वरना मैं तुम सबको मार डालूंगा। इसके बाद जंगल में शांति हो गई। अब वादे के अनुसार शेर के पास बारी-बारी हर रोज़ एक जानवर पहुँच जाता शेर का ग्रास बनने के लिए।

फ़िर एक दिन एक छोटे और दुबले-पतले ख़रग़ोश की बारी आई। लेकिन वह बहुत चतुर था। उसने तय किया कि जैसे भी हो आज तो अपनी जान बचानी ही है। और वह शेर की गुफ़ा की ओर चल पड़ा। रास्तें में उसे एक गहरा कुँवा मिला। उसने कुँवें में झाँका तो उसे अपनी परछाई दिखाई दी। तभी चतुर ख़रग़ोश के दिमाग़ की बत्ती जली। और उसे एक विचार सुझा।

तब तक शेर अपनी गुफा से बाहर आ चुका था। खरगोश को देखकर बहुत जोर से दहाड़ने लगा। खरगोश डर के मारे कंपते हुए बोला महाराज देरी से आने के लिए क्षमा करें। देरी के लिए मैं या मेरे साथी जानवर दोषी नहीं है। आपके भोजन के लिए मेरे साथ चार और खरगोश भेजे गए थे। पर रास्ते में हम लोगों को एक बहुत शक्तिशाली शेर मिल गया। उसने हमको रोक लिया। और पूछने लगा कि कहां जा रहे हो ? तब हमने उसे पूरी बात बताई। तो वह बहुत गुस्सा होने लगा। और वह कहने लगा, कि इस वही इस जंगल का असली राजा है। और तो और वह तो आपको नकली राजा तक कहनें लगा ! और उसने झपटकर उन चरों खरगोश को पकड़कर खा लिया। और मुझे आपसे आपके पास भेज दिया।

शेर गुस्से से दहाड़ मारते हुए बोला। “यह कौन सा नकली राजा आ गया है?जो मेरी जगह लेना चाहता है? वह हैरानी से बोला “मुझे अभी उसके पास ले चलो” खरगोश उस शेर को कुएं के पास ले गया। और शेर से बोला महाराज कुँए के अंदर झांकिए आपको इस कुँए के अंदर वह दूसरा शेर दिख जाएगा। और जैसे ही शेर ने कुएं में झाँककर देखा। तो, उसे अपनी परछाई दिखाई दी। और वह समझा कि सच में दूसरा शेर है। और वह गुस्से में दहाड़ मरकर कुँए में कूद गया। और डूब कर वही मर गया। और इस प्रकार चतुर खरगोश ने अपने साथ-साथ पूरे जंगल के प्राणियों की जान बचा ली।

सबक़

कई बार बुद्धि के सहारे हम अपने से शक्तिशाली शत्रु को भी हरा सकते है।

9. चुहियाँ की शादी

बहुत समय पहले की बात है। एक साधु अपनी पत्नी के साथ नदी के तट पर रहता था उन दोनों की कोई संतान नहीं थी उनकी बड़ी इच्छा थी। कि कम से कम एक संतान उनके यहां ज़रूर हो। एक दिन साधु जब तपस्या में लीन था। तब एक चील ने अपने पंजे में फंसी एक चुहिया उसके ऊपर गिरा दी। साधु ने उस चुहिया को घर ले जाने का निश्चय किया उससे पहले उसने अपनी सिद्धि से उसे एक लड़की के वेश में बदल दिया। उस लड़की को देखकर साधु की पत्नी ने पूछा कौन है यह ? और इसे कहां से लाए हो? साधु ने पत्नी को पूरी बात बताई। उसकी पत्नी बहुत प्रसन्न हुई। और वह बोली तुमने इसे जीवन दिया है। इसलिए तुम ही उसके पिता हुए। और मैं इसकी माँ हुई। हमारे यहां कोई संतान नहीं थी। इसलिए भगवान ने इसे हमारे पास भेजा है।

धीरे-धीरे वह एक सुंदर युवती बन गई। और जब वह 16 साल की हुई। तो, साधू और उसकी पत्नी ने निश्चय किया की अपनी प्यारी बेटी का विवाह दुनियाँ के सबसे ताक़तवर व्यक्ति से करवाएंगे। तब साधु ने सूर्य देवता का आह्वान किया। जब सूर्य देवता उसके सामने आए तो साधु ने उनसे उनकी बेटी से विवाह करने का अनुरोध किया। पर लड़की को यह विचार अच्छा नहीं लगा। और उसने कह दिया क्षमा कीजिए पिताजी लेकिन मैं सूर्य देवता से विवाह नहीं कर सकती। क्योंकि वह बहुत गर्म है। निराश साधु ने सूर्य देवता से कहा कि अब वही उनकी लड़की के लिए कोई सुयोग्य वर सुझाएँ। तब सूर्य देव ने कहा बादलों के देवता से आपकी लड़की की जोड़ी सही बैठेगी। क्योंकि वे ही मेरी धूप और गर्मी से उसकी रक्षा कर सकते हैं।

साधु ने अब बादल देवता से उसकी लड़की से विवाह करने का अनुरोध किया। इस बार भी लड़की ने विवाह से इनकार कर दिया। और बोली में इस काले बादल से विवाह नहीं कर सकती।और इसके अलावा बादलों की गरज से मुझे भी डर भी लगता है। साधु उदास साधु उदास हो गया। और उसने बादल देवता से अनुरोध किया कि वह ही कोई सुयोग्य वर्ष हो जाए बदल देता ने कहा। पवन देवता के साथ इसकी जोड़ी अच्छी रहेगी क्योंकि वह आसानी से मुझे उड़ा सकते हैं। साधु ने पवन देवता से विवाह का अनुरोध किया। इस बार भी लड़की ने इनकार कर दिया और बोली मैं ऐसे अस्थिर से विवाह नहीं कर सकती जो हर समय यहां वहां उड़ता फ़िरता हो। अब साधु काफ़ी परेशान हो गया। साधु ने पवन देवता से कहा कि अब आप ही कोई सुयोग्य वर सुझाने में मेरी मदद करें।

पवन देव ज़वाब देते हुए बोले- पर्वतों के राजा बहुत मज़बूत, ताकतवर और स्थिर है। वह बहती हुई हवा को भी आसानी से रोक सकते हैं। उनसे आपकी बेटी की जोड़ी सही बैठेगी। अब साधु पर्वत राज के पास गया। और उसे अपनीबेटी के साथ विवाह करने का अनुरोध किया लेकिन अफ़सोस कि इस बार भी लड़की ने विवाह करने से इनकार कर दिया। और कहा “मैं ऐसी व्यक्ति से विवाह नहीं कर सकती जो इतना कठोर हो” और ठंडा हो। लड़की ने साधु से किसी नरम वर को खोजने को कहा। साधु ने पर्वतराज से सलाह मांगी। पर्वतराज ने जवाब दिया। कि मुसक राज साथ ही आपकी बेटी की जोड़ी अच्छी रहेगी। क्योंकि वे नर्म भी है। और देखा जाये तो मुझ से अधिक ताकतवर भी हैं। क्योंकि वे आसानी से किसी भी पर्वत में बिल बना सकते है। और आख़िरकार इस बार इस बार लड़की को वर पसंद आ गया। साधु काफ़ी हैरान हुआ और बोला भाग्य का खेल कितना निराला है। तुम मेरे पास एक चुहियां के रूप में आई थी। और मैं ही अपनी दिव्य शक्ति से तुम्हें लड़की का रूप दिया था। चुहियां के रूप में जन्म लेने के कारण तुम्हारे भाग्य में चूहे से ही विवाह करना लिखा था। और वही हुआ भाग्य में जो लिखा था। वही हुआ साधु ने फ़िर से अपनी दिव्य शक्तियों द्वारा लड़की को दोबारा से चूहियां बना दिया।

सबक़

इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है। कि हमारे लिए जो ईश्वर ने तय किया है वही होता है।

10.आवाज़ गूँजती है

एक दिन किसी गलती पर एक माँ ने माँ ने अपने छोटे से बच्चे को डाँट लगा दी। छोटा बच्चा अपनी माँ से नाराज़ होकर अपनी माँ पर चिल्लाते हुए कहने लगा। तुम बहुत ख़राब हो, मैं तुमसे नफ़रत करता हूं।
फ़िर थोड़ी देर बाद उस बच्चे को लगा। कि मैंने आज माँ को भला बुरा कहा, शायद अब माँ मुझे खूब मारेगी या फटकारेगी। और वह डर के मारे घर से भाग गया। वह पहाड़ियों के पास जाकर ज़ोर-ज़ोर से चीखकर अपनी भड़ास निकलते हुए ऊँची आवाज़ मे बोलने लगा।

मैं तुमसे नफ़रत करता हूं। मैं तुमसे नफ़रत करता हूँ। औरफ़िर वही आवाज़ पहाड़ो से टकराते हुए वापस से गूंजने लगी। मैं तुमसे नफ़रत करता हूं। मैं तुमसे नफ़रत करता हूं। बच्चा दर गया क्योंकि उसने पहली बार पहाड़ों की गूँज सुनी थी। और वह उस डर से बचने के लिए घर की ओर अपनी माँ के पास भागा। और अपनी माँ से बोला माँ घाटी में एक बड़ा ही गन्दा बच्चा है। जो चिल्लाकर कहता है। मैं तुमसे नफ़रत करता हूं। और वह बार-बार यही बात दोहराता रहता है। कि मैं तुमसे नफ़रत करता हूँ । उसकी माँ सारी बात समझ गई। कि यह ज़रूर पहाड़ी के पास वाली घाटी मे जाकर चिल्लाया होगा। और इसकी ही आवाज़ वापस टकराकर, इसी के पास आई होगी।

और फ़िर माँ ने अपने उस डरे हुए छोटे से बच्चे को समझाते हुए कहा, कि वह वापस फ़िर उसी पहाड़ी पर जाए। और इस बार फ़िर से चिल्ला कर कहे, कि मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ। मैं तुमसे बहुत प्यार करताहूँ। माँ की बात मानकर छोटा बच्चा फ़िर से उसी पहाड़ी के पास वाली घाटी पर गया। और और ज़ोर से चिल्लाया। मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ। मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ। औरफ़िर पहले की तरहं वही आवाज़ वापस गूंजती हुई टकराकर कर उस बच्चों के पास वापस आई। मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ। इस बार बच्चा बहुत ख़ुश हुआ।

सबक़

इस कहानि से हमें यहाँ सीख मिलती है। कि मानव व्यवहार भी इसी प्रकार काम करता है। कि जैसा भाव हम दुसरो के लिए रखते है। वही हमारे पास वापस लौटता है। एक पहाड़ की गूँज की तरहं।

11. पिता की सीख

एक किसान के चार बेटे थे। कहने को तो वे सेज भाई थे पर चारो में एक नहीं बनती थी। चारों भाई आपस में हमेशा लड़ते-झगड़ते रहते थे। और तो और वे एक दूसरे के पास खड़े होना तक पसंद नहीं करते थे। किसान को अपने चारों बेटों की चिंता सताती रहती थी। उसके चारों बेटों में एकता का अभाव था। यही सोच सोच कर वह परेशान रहता था। एक दिन उसने अपने बेटे को सबक सिखाने का निश्चय किया। एक दिन उसने चारों बेटों को अपने पास बुलाया और लकड़ियों का एक गठ्ठर देकर उनसे इसे तोड़ने को कहा। प्रत्येक बेटे ने पूराज़ोर लगाकर देख लिया। लेकिन कोई भी उस लकड़ी के गठ्ठर को नहीं तोड़ पाया।

अब किसान ने उसे लकड़ियों के गठ्ठर को खोला और उसमें से चारों बेटों को एक-एक लकड़ी थमा दी। किसान ने अब अपने बेटों से उन लकड़ियों को तोड़ने को कहा। चारों लड़कों ने अपने-अपने हाथ की लकड़ी आसानी से तोड़ दी। किसान ने अपने बेटों से कहा मेरे बेटों में चाहता हूँ। कि तुम इससे सबक सीखो जब लकड़ियां साथ में एक गठन में बंधी हुई थी। तो तुम में से इन्हें कोई नहीं तोड़ पाया। और अब जब इन्हें अलग-अलग कर दिया गया तो तुम सब ने इसे आसानी से तोड़ दिया तुम लोग भी इन्हीं लड़कियों की तरह हो अगर एकजुट हो जाओगे तो तुम्हें कोई हानि नहीं पहुंच पाएगा। किसान के बेटो को समझ आ गई। और वे चरों भाई ख़ुशी -ख़ुशी एकसाथ मिलजुल कर रहने लगे।

सबक़

इस कहानि से हमें यह सीख मिलती है। कि हम सभी को आपस में मिलजुलकर रहना चाहिए। क्योंकि एकता में ही बल है।

12. हर कोई अपने भाग्य का खाता है।

एक बार एक युवक को नारदमुनि ने दर्शन दिए। और उससे कहा यदि तुम्हारे मन में कोई सवाल हो तो पूछो। फ़िर उस युवक ने नारदमुनि से पूछा। कि “हे मुनिवर कृपा कर बताएं कि मेरे भाग्य में कितना धन है”? नारदमुनि ने कहा-मैं भगवान विष्णु से पूछकर कल बताऊंगा |
फ़िर दूसरे दिन नारद मुनि ने उस मनुष्य से कहा – तुम्हारे भाग्य में प्रतिदिन का एक (1)रुपया है। उसने हाथ जोड़कर नारदमुनि का धन्यवाद किया। और बहुत ख़ुश रहने लगा, क्योंकि एक रूपये में उसकी लगभग सभी जरूरतें पूरी हो जाती थी।

एक दिन युवक के मित्र ने उससे कहा। मैं तुम्हारी सादगी, और मेहनत से बहुत ख़ुश और प्रभावित हूं। और अपनी बहन की शादी तुमसे करना चाहता हूँ।

युवक बोला- मेरी कमाई प्रतिदिन एक रूपया है। इसको ध्यान में रखना। तुम्हारी बहन को इसी में से ही गुज़र बसर करना पड़ेगा। मित्र ने कहा मुझे कोई आपत्ति नहीं है। और मुझे अपनी बहन के लिए यह रिश्ता मंजूर है।

अगले दिन से उस युवक की कमाई “ग्यारहं” (11 )रुपया हो गई। वह घबरा गया। कि भला नारद मुनि की बात झूठी कैसे हो गई ? उसने नारद मुनि को पुकारा तो नारद मुनि प्रकट हो गए। युवक ने नारदमुनि से पूछा कि हे, मुनिवर मेरे भाग्य में तो एक रूपया लिखा है। फ़िर मुझे “ग्यारहं” रुपये क्यो मिल रहे है”? नारदमुनि ने युवक से पूछा – “अच्छा ये बताओ कि क्या हाल ही में तुम्हारा रिश्ता या सगाई हुई है” ? युवक ने हाँ मे सर हिलता हुए नारद मुनि से कहा – “हाँ कल ही मेरा रिस्ता पक्काहुआ है”,
नारद मुनि मुस्कुराते हुए बोले “तुम्हें यह दस रुपये उस कन्या के भाग्य के मिल रहे है, जिससे तुम्हारी शादी होने वाली है”। इसको जोड़ना शुरू करो तुम्हारे विवाह में काम आएँगे”। नारदमुनि बात सुनकर युवक बहुत ख़ुश हुआ। और कुछ दिनों बाद बड़ी धूमधाम से उस कन्या के साथ उसकी शादी हो गई।

कुछ दिनों बाद उसकी पत्नी गर्भवती हुई। और उसकी कमाई फिर से बढ़कर इकत्तीस (31) रूपये हो गई। फ़िर उसने नारदमुनि से पूछा। “हे मुनिवर मेरी और मेरी पत्नी के भाग्य के 11 रूपये मिल रहे थे। लेकिन अभी 31 रूपये क्यों मिल रहे है? क्या मै कोई अपराध कर रहा हूँ? या यह सब किसी गलती के कारण हो रहा है”? मुनिवर ने कहा- तुम्हें यह बीस रूपए तुम्हारे बच्चे के भाग्य के मिल रहे है। युवक बहुत ख़ुश हुआ।

सबक़

हर मनुष्य ऊपर से अपना भाग्य लेकर आता है। और अपने भाग्य का खाता है। लेकिन अज्ञानी मनुष्य अहंकार करता है। कि मैने बनाया, मैंने कमाया, मैने खिलाया ,मेरा है, मेरी मेहनत है, मै कमा रहा हूँ, सब मेरी वजहं से हो रहा है।

मगर हममें से किसी को नहीं पता कि हम किसके भाग्य का खा रहे हैं??

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