“रंगों के त्यौहार होली के कई आकर्षक शुभकामना सन्देश एवं कविताऍं“

@Aaghaz_e_nisha
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यह बात तो सच है। कि हम सभी भारतवासी अपने हर एक तीज त्यौहार को बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं। और साथ ही इस बात पर यकीन रखते हैं। कि खुश़ियां बांटने से बढ़ती है। इसीलिए हम सभी तीज त्योहारों पर अपने खास मित्रों एवं परिजनों को शुभकामना संदेश भेजते हैं। यहां पर मैंने अपने प्रिय पाठकों के लिए रंगो के महापर्व होली से सम्बंधित कुछ कविताऍं ,आकर्षक शुभकामना संदेश एवं होली से जुडी कुछ जानकारी आपके सामने प्रस्तुत की है,और मैं आशा करती हूं, कि आपकोये सभी पोस्ट अवश्य पसंद आयेंगे! अगर आपको मेरे द्वारा लिखे गए पोस्ट पसंद आएं हो, तो कृपा कर कमेंट और शेयर ज़रुर कीजिएगा। मेरी वेबसाइट को अपना क़ीमती समय देने के लिए सहेदिल से आपका आभार व्यक्त करती हूं! धन्यवाद!
राधे राधे 🙏🙏
सनातन धर्म के अनुसार फाल्गुन माह की पूर्णिमा पर होलिका दहन किया जाता है। और दहन के दूसरे दिन रंग भरी होली खेली जाती है। सभी मित्र एवं रिस्तेदार एक दूसरे को गुलाल लगाकर बड़े उत्साह के साथ इस त्यौहार को मनातें हैं। होलिका दहन यानी होली से जुड़ी कुछ पौराणिक कथाएँ और मान्यताएँ हैं। –
हममें से अधिकांश लोग होली पर्व को मनाने का कारण होलिका एवं प्रहल्लाद से की कथा से जोड़ते हैं। पर इसके अलावा भगवान् शिवजी एवं कामदेव तथा राजा रघु से जुड़ी कथाएँ भी हैं। जो होलिका दहन से जुड़ी हैं।
होलिका दहन से जुड़ी ये कथाएँ और मान्यताएँ हमें बुराई पर अच्छाई की जीत का संदेश देती है। तथा समानता और एकता की शिक्षा भी मिलती है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार हिरण्यकश्यपु राक्षसों का राजा था। उसका पुत्र प्रह्लाद, भगवान विष्णु का परम भक्त था। राजा हिरण्यकश्यपु भगवान विष्णु को अपना शत्रु मानता था। जब उसे पता चला किउसका पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का परम भक्त है। तो उसने प्रह्लाद भगवान विष्णु की उपासना न करने का आदेश दिया। लेकिन प्रह्लाद नहीं माना।
हिरण्यकश्यपु भगवान् विष्णु और उनके भक्तों से इतनी नफ़रत करता था। कि उसने अपने पुत्र तक को नहीं छोड़ा और वह प्रह्लाद को तरहं-तरहंयातनाएं देने लगा। हिरण्यकश्यपु ने प्रह्लाद को कभीऊँची चट्टान से नीचे गिराया, तो कभी हाथी के पैरों से कुचलवानें की कोशिश की, लेकिन भगवान श्री विष्णु जी की कृपा से प्रह्लाद हर बार बचता गया।
हिरण्यकश्यपु की एक बहन थी। जिसका नाम होलिका था। होलिका ऐसा वरदान मिला हुआ था। कि वह अग्नि में नहीं जलेगी। हिरण्यकश्यपु के कहने पर होलिका प्रह्लाद का अंत करने के लिए, होलिका प्रह्लाद को अपनी गोद में बैठाकर अग्नि में प्रवेश कर कई। किंतु भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद का बाल भी बांका न हुआ।
और इस प्रकार भगवान् विष्णु जी की कृपा से भक्त प्रह्लाद के प्राण बच गए। और होलिका जल गई। तभी से बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में होलिका दहन की प्रथा चली आ रही हैं। और यही कारण है। कि प्रतिवर्ष बड़ी धूमधाम के साथ होली का त्यौहार त्योहार मनाया जाता है।























